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पश्चिमी देशों के रुख से घबराहट: अफगानिस्तान की बिगड़ती हालत ने बढ़ा दी है पाकिस्तान की चिंता

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 13 Dec 2021 07:39 PM IST

सार

एक सरकारी सूत्र ने अखबार को बताया कि पाकिस्तान के सैनिक और असैनिक अधिकारी विदेशी नेताओं से अपनी बातचीत में बार-बार उनसे यही कह रहे हैं कि अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ देना दुनिया के लिए खतरनाक होगा। उस हाल में अफगानिस्तान अस्थिरता के दौर में फंस जाएगा, जिससे वहां आतंकवादी गुटों को फिर से सिर उठाने का मौका मिलेगा…

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अफगानिस्तान में बढ़ती अनिश्चितता से पाकिस्तान की चिंताएं गहरा रही हैं। पाकिस्तान को सबसे ज्यादा फिक्र पश्चिमी देशों के रुख से है। उसे लग रहा है कि अगर पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान को संभालने की कोशिश नहीं की, तो वहां हालात बेकाबू हो जा सकते हैं। इसे देखते हुए पाकिस्तान सरकार ने अफगानिस्तान को सहायता दिलाने के लिए पश्चिमी देशों के साथ कूटनीतिक प्रयास तेज करने का फैसला किया है। ये बात पाकिस्तान सरकार के एक अंदरूनी दस्तावेज से सामने आई है।

अमेरिका की अफगानिस्तान में खत्म हो सकती है दिलचस्पी

पाकिस्तान के अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक पाकिस्तान सरकार ने अफगानिस्तान की स्थिति का एक ताजा जायजा लिया है। उसमें कही गई बातों की जानकारी इस अखबार को सरकारी सूत्रों ने दी। इसके मुताबिक पाकिस्तान सरकार को चिंता इस बात की है कि पश्चिमी देश अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ देने का नजरिया अपना रहे हैं। एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक कई पश्चिमी राजनयिक भी इस बात से सहमत हैं। उन्हें भी अंदेशा है कि जल्द ही अमेरिका की अफगानिस्तान में दिलचस्पी खत्म हो सकती है।

एक सरकारी सूत्र ने अखबार को बताया कि पाकिस्तान के सैनिक और असैनिक अधिकारी विदेशी नेताओं से अपनी बातचीत में बार-बार उनसे यही कह रहे हैं कि अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ देना दुनिया के लिए खतरनाक होगा। उस हाल में अफगानिस्तान अस्थिरता के दौर में फंस जाएगा, जिससे वहां आतंकवादी गुटों को फिर से सिर उठाने का मौका मिलेगा। पाकिस्तान सरकार के जायजे में कहा गया है- ‘पाकिस्तान सहित अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी देशों को वहां के शरणार्थियों का नया बोझ उठाना पड़ सकता है। ये देश यह बोझ उठाने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए ये शरणार्थी समस्या यूरोप तक पहुंचेगी।’ पाक अधिकारियों के मुताबिक ऐसी संभावित मुश्किलों का जिक्र करते हुए वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे अफगानिस्तान से मुंह न मोड़ें।

कुछ दिन पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस्लामाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान उन खतरों का जिक्र किया था, जो अफगानिस्तान में आर्थिक संकट गहराने से पैदा होंगे। उन्होंने कहा था कि वहां जो मानवीय संकट खड़ा होगा, उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।

फ्रीज रकम को छोड़ने की गुजारिश

विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान खास कर अमेरिका से गुजारिश कर रहा है कि वह अफगान सेंट्रल बैंक के 9.5 बिलियन डॉलर रकम को अफगानिस्तान को दे दे। अमेरिका ने बीते अगस्त में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद इस रकम को फ्रीज कर दिया था। बताया जाता है कि पाकिस्तान के इस आकलन से कतर भी सहमत है। अफगान वार्ताओं में कतर की अहम भूमिका रही है।

खबरों के मुताबिक अगले 19 दिसंबर को इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) के विदेश मंत्रियों की होने वाली बैठक में भी यही मसला प्रमुख मुद्दा होगा। इस बैठक की मेजबानी पाकिस्तान कर रहा है। विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि अफगानिस्तान के मसले पर ओआईसी की ऐसी बैठक सिर्फ दूसरी बार होने जा रही है। पहली बैठक 41 साल पहले हुई थी, जब सोवियत संघ ने अपनी फौज अफगानिस्तान में भेज दी थी। 19 दिसंबर की बैठक में पाकिस्तान धनी इस्लामी देशों को यह समझाने की कोशिश करेगा कि वे अफगानिस्तान को उदारता से आर्थिक मदद दें।

विस्तार

अफगानिस्तान में बढ़ती अनिश्चितता से पाकिस्तान की चिंताएं गहरा रही हैं। पाकिस्तान को सबसे ज्यादा फिक्र पश्चिमी देशों के रुख से है। उसे लग रहा है कि अगर पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान को संभालने की कोशिश नहीं की, तो वहां हालात बेकाबू हो जा सकते हैं। इसे देखते हुए पाकिस्तान सरकार ने अफगानिस्तान को सहायता दिलाने के लिए पश्चिमी देशों के साथ कूटनीतिक प्रयास तेज करने का फैसला किया है। ये बात पाकिस्तान सरकार के एक अंदरूनी दस्तावेज से सामने आई है।

अमेरिका की अफगानिस्तान में खत्म हो सकती है दिलचस्पी

पाकिस्तान के अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक पाकिस्तान सरकार ने अफगानिस्तान की स्थिति का एक ताजा जायजा लिया है। उसमें कही गई बातों की जानकारी इस अखबार को सरकारी सूत्रों ने दी। इसके मुताबिक पाकिस्तान सरकार को चिंता इस बात की है कि पश्चिमी देश अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ देने का नजरिया अपना रहे हैं। एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक कई पश्चिमी राजनयिक भी इस बात से सहमत हैं। उन्हें भी अंदेशा है कि जल्द ही अमेरिका की अफगानिस्तान में दिलचस्पी खत्म हो सकती है।

एक सरकारी सूत्र ने अखबार को बताया कि पाकिस्तान के सैनिक और असैनिक अधिकारी विदेशी नेताओं से अपनी बातचीत में बार-बार उनसे यही कह रहे हैं कि अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ देना दुनिया के लिए खतरनाक होगा। उस हाल में अफगानिस्तान अस्थिरता के दौर में फंस जाएगा, जिससे वहां आतंकवादी गुटों को फिर से सिर उठाने का मौका मिलेगा। पाकिस्तान सरकार के जायजे में कहा गया है- ‘पाकिस्तान सहित अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी देशों को वहां के शरणार्थियों का नया बोझ उठाना पड़ सकता है। ये देश यह बोझ उठाने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए ये शरणार्थी समस्या यूरोप तक पहुंचेगी।’ पाक अधिकारियों के मुताबिक ऐसी संभावित मुश्किलों का जिक्र करते हुए वे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे अफगानिस्तान से मुंह न मोड़ें।

कुछ दिन पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस्लामाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान उन खतरों का जिक्र किया था, जो अफगानिस्तान में आर्थिक संकट गहराने से पैदा होंगे। उन्होंने कहा था कि वहां जो मानवीय संकट खड़ा होगा, उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।

फ्रीज रकम को छोड़ने की गुजारिश

विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान खास कर अमेरिका से गुजारिश कर रहा है कि वह अफगान सेंट्रल बैंक के 9.5 बिलियन डॉलर रकम को अफगानिस्तान को दे दे। अमेरिका ने बीते अगस्त में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद इस रकम को फ्रीज कर दिया था। बताया जाता है कि पाकिस्तान के इस आकलन से कतर भी सहमत है। अफगान वार्ताओं में कतर की अहम भूमिका रही है।

खबरों के मुताबिक अगले 19 दिसंबर को इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) के विदेश मंत्रियों की होने वाली बैठक में भी यही मसला प्रमुख मुद्दा होगा। इस बैठक की मेजबानी पाकिस्तान कर रहा है। विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि अफगानिस्तान के मसले पर ओआईसी की ऐसी बैठक सिर्फ दूसरी बार होने जा रही है। पहली बैठक 41 साल पहले हुई थी, जब सोवियत संघ ने अपनी फौज अफगानिस्तान में भेज दी थी। 19 दिसंबर की बैठक में पाकिस्तान धनी इस्लामी देशों को यह समझाने की कोशिश करेगा कि वे अफगानिस्तान को उदारता से आर्थिक मदद दें।

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