वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 20 Jan 2022 07:07 PM IST
सार
विश्लेषकों के मुताबिक नेपाल के संविधान में प्रावधान यह है कि स्थानीय चुनाव पिछले चुनाव के पांच साल पूरा होने के बाद कराए जाएं। जबकि स्थानीय निर्वाचन अधिनियम-2017 में प्रावधान है कि ये चुनाव समय पूरा होने से दो महीने पहले कराए जाने चाहिए,,,
नेपाल के सत्ताधारी गठबंधन में ‘सिद्धांत रूप में’ ये सहमति बनी है कि स्थानीय चुनाव तय समय पर कराए जाएंगे। लेकिन तमाम संकेत हैं कि इस मसले पर गठबंधन के भीतर अलग-अलग दलों के मतभेद दूर नहीं हुए हैं। इसीलिए सत्ताधारी गठबंधन ने निर्वाचन आयोग की तरफ से मतदान के लिए सुझाई गई तारीखों पर कुछ संवैधानिक सवाल उठा दिए हैं। निर्वाचन आयोग ने अप्रैल और मई में इस चुनावों को कराने का प्रस्ताव किया है।
अक्तूबर तक टलें चुनाव
सत्ताधारी गठबंधन ने कहा है कि स्थानीय चुनावों के मामले में संविधान और निर्वाचन कानून के प्रावधानों में अंतर है। ऐसे में गठबंधन संविधान के मुताबिक चलना पसंद करेगा। विश्लेषकों का कहना है कि गठबंधन के इस वक्तव्य का मतलब यही है कि वह स्थानीय चुनावों को सितंबर-अक्तूबर तक टालना चाहता है। सत्ताधारी गठबंधन में शामिल दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां ये मांग करती रही हैं कि स्थानीय चुनाव को प्रांतीय और संघीय चुनाव के साथ ही कराया जाए। ये पार्टियां हैं- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड सोशलिस्ट)।
अभी तक जो कार्यक्रम सामने है, उसके मुताबिक प्रांतीय और संसदीय चुनाव अगले नवंबर-दिसंबर में होंगे। जबकि नेपाल में पिछले स्थानीय चुनाव 2017 के मई, जून और सितंबर में तीन चरणों में कराए गए थे। तब ये चुनाव प्रांतीय और संघीय चुनाव से अलग हुए थे। विश्लेषकों के मुताबिक नेपाल के संविधान में प्रावधान यह है कि स्थानीय चुनाव पिछले चुनाव के पांच साल पूरा होने के बाद कराए जाएं। जबकि स्थानीय निर्वाचन अधिनियम-2017 में प्रावधान है कि ये चुनाव समय पूरा होने से दो महीने पहले कराए जाने चाहिए।
माओइस्ट सेंटर पार्टी के नेता देव गुरुंग ने कहा है कि स्थानीय चुनाव कराने के बारे में सरकार के फैसला करने के बाद निर्वाचन आयोग इनकी तैयारी शुरू करेगा। अभी उसकी कोई तैयारी नहीं है। ऐसे में पिछली बार जो निर्वाचन मई में हुआ था, उसे दो महीने पहले यानी मार्च में कराना अब संभव नहीं रह गया है।
प्रधानमंत्री से मिले थे निर्वाचन अधिकारी
उधर देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त दिनेश थपलिया ने कहा है कि निर्वाचन आयोग के अधिकारी बीते अक्तूबर में ही प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से मिले थे। उन अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को बता दिया था कि स्थानीय चुनाव मार्च कराने होंगे। थपलिया ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- अगर कहा कि अगर संविधान और निर्वाचन अधिनियम में फर्क है, तो इसके लिए जिम्मेदार आयोग नहीं, बल्कि राजनीतिक दल हैं। अगर उनके मन में इनको लेकर कोई भ्रम है, तो वे प्रावधानों को बदल कर इसका समाधान निकाल सकते हैं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि सत्ताधारी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल प्रावधानों की अस्पष्टता का फायदा अपने सियासी हितों को साधने के लिए उठा रहे हैं। ऐसे लगता है कि विपक्षी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) के अलावा कोई चुनाव आयोग की तरफ से प्रस्तावित समय पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है। यूएमएल के उपाध्यक्ष सुबास नेमबाग ने काठमांडू पोस्ट से कहा- ऐसा लगता है कि सत्ताधारी गठबंधन चुनाव नतीजों के बारे में सोच कर भयभीत है।
विस्तार
नेपाल के सत्ताधारी गठबंधन में ‘सिद्धांत रूप में’ ये सहमति बनी है कि स्थानीय चुनाव तय समय पर कराए जाएंगे। लेकिन तमाम संकेत हैं कि इस मसले पर गठबंधन के भीतर अलग-अलग दलों के मतभेद दूर नहीं हुए हैं। इसीलिए सत्ताधारी गठबंधन ने निर्वाचन आयोग की तरफ से मतदान के लिए सुझाई गई तारीखों पर कुछ संवैधानिक सवाल उठा दिए हैं। निर्वाचन आयोग ने अप्रैल और मई में इस चुनावों को कराने का प्रस्ताव किया है।
अक्तूबर तक टलें चुनाव
सत्ताधारी गठबंधन ने कहा है कि स्थानीय चुनावों के मामले में संविधान और निर्वाचन कानून के प्रावधानों में अंतर है। ऐसे में गठबंधन संविधान के मुताबिक चलना पसंद करेगा। विश्लेषकों का कहना है कि गठबंधन के इस वक्तव्य का मतलब यही है कि वह स्थानीय चुनावों को सितंबर-अक्तूबर तक टालना चाहता है। सत्ताधारी गठबंधन में शामिल दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां ये मांग करती रही हैं कि स्थानीय चुनाव को प्रांतीय और संघीय चुनाव के साथ ही कराया जाए। ये पार्टियां हैं- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड सोशलिस्ट)।
अभी तक जो कार्यक्रम सामने है, उसके मुताबिक प्रांतीय और संसदीय चुनाव अगले नवंबर-दिसंबर में होंगे। जबकि नेपाल में पिछले स्थानीय चुनाव 2017 के मई, जून और सितंबर में तीन चरणों में कराए गए थे। तब ये चुनाव प्रांतीय और संघीय चुनाव से अलग हुए थे। विश्लेषकों के मुताबिक नेपाल के संविधान में प्रावधान यह है कि स्थानीय चुनाव पिछले चुनाव के पांच साल पूरा होने के बाद कराए जाएं। जबकि स्थानीय निर्वाचन अधिनियम-2017 में प्रावधान है कि ये चुनाव समय पूरा होने से दो महीने पहले कराए जाने चाहिए।
माओइस्ट सेंटर पार्टी के नेता देव गुरुंग ने कहा है कि स्थानीय चुनाव कराने के बारे में सरकार के फैसला करने के बाद निर्वाचन आयोग इनकी तैयारी शुरू करेगा। अभी उसकी कोई तैयारी नहीं है। ऐसे में पिछली बार जो निर्वाचन मई में हुआ था, उसे दो महीने पहले यानी मार्च में कराना अब संभव नहीं रह गया है।
प्रधानमंत्री से मिले थे निर्वाचन अधिकारी
उधर देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त दिनेश थपलिया ने कहा है कि निर्वाचन आयोग के अधिकारी बीते अक्तूबर में ही प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से मिले थे। उन अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को बता दिया था कि स्थानीय चुनाव मार्च कराने होंगे। थपलिया ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- अगर कहा कि अगर संविधान और निर्वाचन अधिनियम में फर्क है, तो इसके लिए जिम्मेदार आयोग नहीं, बल्कि राजनीतिक दल हैं। अगर उनके मन में इनको लेकर कोई भ्रम है, तो वे प्रावधानों को बदल कर इसका समाधान निकाल सकते हैं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि सत्ताधारी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल प्रावधानों की अस्पष्टता का फायदा अपने सियासी हितों को साधने के लिए उठा रहे हैं। ऐसे लगता है कि विपक्षी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) के अलावा कोई चुनाव आयोग की तरफ से प्रस्तावित समय पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है। यूएमएल के उपाध्यक्ष सुबास नेमबाग ने काठमांडू पोस्ट से कहा- ऐसा लगता है कि सत्ताधारी गठबंधन चुनाव नतीजों के बारे में सोच कर भयभीत है।
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