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नेपाल: चीफ जस्टिस पर महाभियोग प्रस्ताव, सत्ताधारी गठबंधन के इरादे पर सवाल

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 15 Feb 2022 05:26 PM IST

सार

चोलेंद्र शमशेर राणा जनवरी 2019 में चीफ जस्टिस बने थे। पिछले अक्तूबर में वे विवादों से घिर गए, जब वकीलों ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कोर्ट की सुनवाई का बहिष्कार शुरू कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के जजों ने भी वकीलों के समर्थन में मुकदमों की सुनवाई रोक दी…

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नेपाल में अपने भीतर गहराते मतभेदों से परेशान नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने की पहल की है। विपक्ष का आरोप है कि यह मई में होने वाले स्थानीय चुनावों में रुकावट डालने की एक चाल है। प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा को लेकर विवाद कई महीनों से चल रहा है। लेकिन अब जबकि स्थानीय चुनावों का माहौल बनने लगा है, सत्ताधारी गठबंधन ने अचानक महाभियोग का दांव चल दिया है।

सत्ताधारी गठबंधन अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) से 50 करोड़ डॉलर की मदद स्वीकार करने के सवाल पर भी बुरी तरह बंटा हुआ है। इस मुद्दे पर गठबंधन के टूट जाने की चर्चा लगातार चल रही है। इस बीच सत्ताधारी गठबंधन में शामिल नेपाली कांग्रेस, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओइस्ट सेंटर), और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूनिफाइड सोशलिस्ट) के 98 सांसदों ने राणा के खिलाफ संसद में अपना महाभियोग प्रस्ताव रजिस्टर्ड करवा दिया है। नेपाल के संविधान के मुताबिक सदन के एक चौथाई सदस्य महाभियोग प्रस्ताव रजिस्टर्ड करवा सकते हैं।

सुनवाई में बाधा डालना चाहता है सत्ताधारी गठबंधन

मुख्य विपक्षी दल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) ने कहा है कि सत्ताधारी गठबंधन इस प्रस्ताव के जरिए राजनीतिक संकट को बढ़ाना चाहता है। उसका मकसद सत्ताधारी गठबंधन के प्रमुख नेताओं माधव कुमार नेपाल और बाबूराम भट्टराई के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमों की सुनवाई में बाधा डालना भी है। नेपाल और भट्टराई दोनों पहले नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं।

चोलेंद्र शमशेर राणा जनवरी 2019 में चीफ जस्टिस बने थे। पिछले अक्तूबर में वे विवादों से घिर गए, जब वकीलों ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कोर्ट की सुनवाई का बहिष्कार शुरू कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के जजों ने भी वकीलों के समर्थन में मुकदमों की सुनवाई रोक दी। बाद में उन्होंने चीफ जस्टिस का बहिष्कार करते हुए लॉटरी सिस्टम से मुकदमों की सुनवाई करने वाली बेंच को तय करना शुरू किया। लेकिन राणा ने आरोपों को गलत बताया है। साथ ही उन्होंने इस्तीफा देने की मांग को सिरे से ठुकरा रखा है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि जब राणा के खिलाफ वकीलों का आंदोलन तेज था और न्यायिक प्रक्रिया ठहरी हुई थी, तब किसी प्रमुख दल ने महाभियोग लाने की पहल नहीं की। अब सत्ताधारी गठबंधन के तीन दलों ने अचानक ऐसी पहल कर दी है। इसलिए उनके इरादों पर शक होना वाजिब है।

दीपक कुमार करकी बने कार्यवाहक चीफ जस्टिस

संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक महाभियोग प्रस्ताव दर्ज होने का अर्थ यह है कि राणा की हैसियत निलंबित जज की हो गई है। इससे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज दीपक कुमार करकी ने कार्यवाहक चीफ जस्टिस की जिम्मेदारी संभाल ली है। संविधान विशेषज्ञ भीमार्जुन आचार्य ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘अगर महाभियोग प्रस्ताव अच्छे इरादे से लाया जाता, तो उससे न्यायापालिका में सुधार लाने में मदद मिलती। लेकिन दलगत फायदों के लिए इसे लाया गया है, जिससे न्यायपालिका को और नुकसान होगा।’

राणा दूसरे चीफ जस्टिस हैं, जिनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है। इसके पहले 2017 में नेपाली कांग्रेस और माओइस्ट सेंटर ने तत्कालीन चीफ जस्टिस सुशीला करकी के खिलाफ ऐसा प्रस्ताव पेश किया गया था।

विस्तार

नेपाल में अपने भीतर गहराते मतभेदों से परेशान नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने की पहल की है। विपक्ष का आरोप है कि यह मई में होने वाले स्थानीय चुनावों में रुकावट डालने की एक चाल है। प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा को लेकर विवाद कई महीनों से चल रहा है। लेकिन अब जबकि स्थानीय चुनावों का माहौल बनने लगा है, सत्ताधारी गठबंधन ने अचानक महाभियोग का दांव चल दिया है।

सत्ताधारी गठबंधन अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) से 50 करोड़ डॉलर की मदद स्वीकार करने के सवाल पर भी बुरी तरह बंटा हुआ है। इस मुद्दे पर गठबंधन के टूट जाने की चर्चा लगातार चल रही है। इस बीच सत्ताधारी गठबंधन में शामिल नेपाली कांग्रेस, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओइस्ट सेंटर), और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूनिफाइड सोशलिस्ट) के 98 सांसदों ने राणा के खिलाफ संसद में अपना महाभियोग प्रस्ताव रजिस्टर्ड करवा दिया है। नेपाल के संविधान के मुताबिक सदन के एक चौथाई सदस्य महाभियोग प्रस्ताव रजिस्टर्ड करवा सकते हैं।

सुनवाई में बाधा डालना चाहता है सत्ताधारी गठबंधन

मुख्य विपक्षी दल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) ने कहा है कि सत्ताधारी गठबंधन इस प्रस्ताव के जरिए राजनीतिक संकट को बढ़ाना चाहता है। उसका मकसद सत्ताधारी गठबंधन के प्रमुख नेताओं माधव कुमार नेपाल और बाबूराम भट्टराई के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमों की सुनवाई में बाधा डालना भी है। नेपाल और भट्टराई दोनों पहले नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं।

चोलेंद्र शमशेर राणा जनवरी 2019 में चीफ जस्टिस बने थे। पिछले अक्तूबर में वे विवादों से घिर गए, जब वकीलों ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कोर्ट की सुनवाई का बहिष्कार शुरू कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के जजों ने भी वकीलों के समर्थन में मुकदमों की सुनवाई रोक दी। बाद में उन्होंने चीफ जस्टिस का बहिष्कार करते हुए लॉटरी सिस्टम से मुकदमों की सुनवाई करने वाली बेंच को तय करना शुरू किया। लेकिन राणा ने आरोपों को गलत बताया है। साथ ही उन्होंने इस्तीफा देने की मांग को सिरे से ठुकरा रखा है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि जब राणा के खिलाफ वकीलों का आंदोलन तेज था और न्यायिक प्रक्रिया ठहरी हुई थी, तब किसी प्रमुख दल ने महाभियोग लाने की पहल नहीं की। अब सत्ताधारी गठबंधन के तीन दलों ने अचानक ऐसी पहल कर दी है। इसलिए उनके इरादों पर शक होना वाजिब है।

दीपक कुमार करकी बने कार्यवाहक चीफ जस्टिस

संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक महाभियोग प्रस्ताव दर्ज होने का अर्थ यह है कि राणा की हैसियत निलंबित जज की हो गई है। इससे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज दीपक कुमार करकी ने कार्यवाहक चीफ जस्टिस की जिम्मेदारी संभाल ली है। संविधान विशेषज्ञ भीमार्जुन आचार्य ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘अगर महाभियोग प्रस्ताव अच्छे इरादे से लाया जाता, तो उससे न्यायापालिका में सुधार लाने में मदद मिलती। लेकिन दलगत फायदों के लिए इसे लाया गया है, जिससे न्यायपालिका को और नुकसान होगा।’

राणा दूसरे चीफ जस्टिस हैं, जिनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है। इसके पहले 2017 में नेपाली कांग्रेस और माओइस्ट सेंटर ने तत्कालीन चीफ जस्टिस सुशीला करकी के खिलाफ ऐसा प्रस्ताव पेश किया गया था।

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