एजेंसी, नई दिल्ली।
Published by: योगेश साहू
Updated Wed, 10 Nov 2021 05:22 AM IST
सार
सीसीईए के अनुसार, पूंजी संकट से जूझ रहे निर्माण क्षेत्र को राहत देने के लिए व्यय विभाग ने सामान्य वित्त नियम में नया नियम 227ए भी जोड़ा है। सीसीईए ने नवंबर, 2019 में ही इस बाबत प्रस्ताव तैयार किया था, जिस पर अब नियम बनाए गए हैं।
निर्माण क्षेत्र के फंसे प्रोजेक्ट पूरे करने और परियोजनाओं को पूंजी उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने नए नियम बना दिए हैं। आर्थिक मामलों की केंद्रीय कैबिनेट (सीसीईए) की मंजूरी के बाद तय किया गया है कि मध्यस्थता पंचाट के फैसलों को चुनौती दिए जाने पर निर्माण क्षेत्र के ठेकेदारों को बैंक गारंटी लेकर संबंधित विवादित राशि का 75% भुगतान कर दिया जाएगा।
सीसीईए के अनुसार, पूंजी संकट से जूझ रहे निर्माण क्षेत्र को राहत देने के लिए व्यय विभाग ने सामान्य वित्त नियम में नया नियम 227ए भी जोड़ा है। सीसीईए ने नवंबर, 2019 में ही इस बाबत प्रस्ताव तैयार किया था, जिस पर अब नियम बनाए गए हैं। वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले व्यय विभाग ने 29 अक्तूबर को जारी आदेश में कहा कि अगर कोई मंत्रालय या विभाग मध्यस्थता पंचाट के फैसले को चुनौती देता है और उसमें फंसी राशि का भुगतान नहीं किया जाता, तो संबंधित विभाग या मंत्रालय ठेकेदार से बैंक गारंटी लेकर फैसले में शामिल राशि के 75% हिस्से का भुगतान कर सकता है। साथ ही अंतिम फैसला आने तक बकाया राशि पर ब्याज भी दिया जाएगा। ठेकेदार को बैंक गारंटी भी भुगतान की जाने वाली 75% राशि के लिए ही देनी होगी।
कर्ज भुगतान व निर्माण पूरा करने में होगा राशि का इस्तेमाल, एस्क्रो खाते में भेजी जाएगी राशि
भुगान के लिए ठेकेदारों को कुछ शर्तों के साथ एस्क्रो खाते खोलने होंगे और इसमें आने वाली राशि का सबसे पहले कर्जदाताओं का बकाया चुकाने में इस्तेमाल होगा। इसके बाद परियोजना को पूरा करने और नई परियोजना शुरू करने में राशि इस्तेमाल की जाएगी। इसके बाद भी खाते में राशि बचती है, तो उसका इस्तेमाल करने से पहले बैंक और मंत्रालय या संबंधित विभाग से अनुमति लेनी होगी। ठेकेदार की रोकी गई कोई भी राशि बैंक गारंटी लेकर दी जा सकती है।
लंबित फैसलों से बढ़ रहा एनपीए का बोझ
सीसीईए ने कहा, सरकारी विभागों को मध्यस्थता फैसलों को चुनौती देने से पहले अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल अथवा एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से राय लेनी होगी। अभी मध्यस्थता फैसलों को चुनौती दिए जाने से विवाद निपटाने में वर्षों लग जाते हैं। इससे न सिर्फ निर्माण परियोजना अधर में लटक जाती है, बल्कि बैंकों की बैलेंस शीट पर भी बोझ बढ़ता है और एनपीए में इजाफा होता है। सीसीईए ने इस मामले पर नीति आयोग से भी मशविरा लिया है और फैसले में शामिल 75 फीसदी राशि को बैंक गारंटी के बदले जारी करने पर सहमति बनाई है।
विस्तार
निर्माण क्षेत्र के फंसे प्रोजेक्ट पूरे करने और परियोजनाओं को पूंजी उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने नए नियम बना दिए हैं। आर्थिक मामलों की केंद्रीय कैबिनेट (सीसीईए) की मंजूरी के बाद तय किया गया है कि मध्यस्थता पंचाट के फैसलों को चुनौती दिए जाने पर निर्माण क्षेत्र के ठेकेदारों को बैंक गारंटी लेकर संबंधित विवादित राशि का 75% भुगतान कर दिया जाएगा।
सीसीईए के अनुसार, पूंजी संकट से जूझ रहे निर्माण क्षेत्र को राहत देने के लिए व्यय विभाग ने सामान्य वित्त नियम में नया नियम 227ए भी जोड़ा है। सीसीईए ने नवंबर, 2019 में ही इस बाबत प्रस्ताव तैयार किया था, जिस पर अब नियम बनाए गए हैं। वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले व्यय विभाग ने 29 अक्तूबर को जारी आदेश में कहा कि अगर कोई मंत्रालय या विभाग मध्यस्थता पंचाट के फैसले को चुनौती देता है और उसमें फंसी राशि का भुगतान नहीं किया जाता, तो संबंधित विभाग या मंत्रालय ठेकेदार से बैंक गारंटी लेकर फैसले में शामिल राशि के 75% हिस्से का भुगतान कर सकता है। साथ ही अंतिम फैसला आने तक बकाया राशि पर ब्याज भी दिया जाएगा। ठेकेदार को बैंक गारंटी भी भुगतान की जाने वाली 75% राशि के लिए ही देनी होगी।
कर्ज भुगतान व निर्माण पूरा करने में होगा राशि का इस्तेमाल, एस्क्रो खाते में भेजी जाएगी राशि
भुगान के लिए ठेकेदारों को कुछ शर्तों के साथ एस्क्रो खाते खोलने होंगे और इसमें आने वाली राशि का सबसे पहले कर्जदाताओं का बकाया चुकाने में इस्तेमाल होगा। इसके बाद परियोजना को पूरा करने और नई परियोजना शुरू करने में राशि इस्तेमाल की जाएगी। इसके बाद भी खाते में राशि बचती है, तो उसका इस्तेमाल करने से पहले बैंक और मंत्रालय या संबंधित विभाग से अनुमति लेनी होगी। ठेकेदार की रोकी गई कोई भी राशि बैंक गारंटी लेकर दी जा सकती है।
लंबित फैसलों से बढ़ रहा एनपीए का बोझ
सीसीईए ने कहा, सरकारी विभागों को मध्यस्थता फैसलों को चुनौती देने से पहले अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल अथवा एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से राय लेनी होगी। अभी मध्यस्थता फैसलों को चुनौती दिए जाने से विवाद निपटाने में वर्षों लग जाते हैं। इससे न सिर्फ निर्माण परियोजना अधर में लटक जाती है, बल्कि बैंकों की बैलेंस शीट पर भी बोझ बढ़ता है और एनपीए में इजाफा होता है। सीसीईए ने इस मामले पर नीति आयोग से भी मशविरा लिया है और फैसले में शामिल 75 फीसदी राशि को बैंक गारंटी के बदले जारी करने पर सहमति बनाई है।
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