वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, तोक्यो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 09 Aug 2021 05:12 PM IST
सार
विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि शारीरिक क्षमता में अधिक बढ़ोतरी की उम्मीद कम होने के साथ ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन के लिए अब टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो गए हैं। अब टेक्नोलॉजी खेलों में अधिक बड़ी भूमिका निभा रही है…
टोक्यो ओलंपिक खेलों के दौरान ये चर्चा फिर से शुरू हुई है कि क्या खेलों में नए रिकॉर्ड बनाने की मानवीय क्षमता चूक रही है। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि शारीरिक क्षमता में अधिक बढ़ोतरी की उम्मीद कम होने के साथ ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन के लिए अब टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो गए हैं। अब टेक्नोलॉजी खेलों में अधिक बड़ी भूमिका निभा रही है। गौरतलब है कि ओलंपिक खेलों में शुरुआत से ही जोर विभिन्न प्रकार के खेलों में मानवीय क्षमता के बेहतर प्रदर्शन और नई उपलब्धियां हासिल करने पर रहा है। लेकिन अब विशेषज्ञों ने कहा है कि मानव क्षमता अपनी चरम सीमा पर पहुंचती लग रही है। चूंकि शारीरिक क्षमता को एक सीमा से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता, इसीलिए टेक्नोलॉजी की मदद खिलाड़ियों के बेहतर प्रदर्शन के लिए ज्यादा अहम हो गई है।
खेलों में कहा जाता है कि रिकॉर्ड टूटने के लिए ही बनते हैं। टोक्यो ओलंपिक में भी कई रिकॉर्ड टूटे। इस बार खास कर ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं (एथलेटिक्स) और साइकिलिंग में ज्यादा नए रिकॉर्ड बने। खास कर 400 मीटर की दौड़ में बने रिकॉर्ड की खूब चर्चा रही। इस दौड़ में अमेरिका के एथलीट राय बेंजामिन ने पिछला रिकॉर्ड तोड़ा, इसके बावजूद वे स्वर्ण पदक नहीं जीत सके। ये पदक नॉर्वे के कर्स्टन वारहोल्म ने हासिल किया, जो बेंजामिन से भी तेज दौड़े। इसी तरह ट्रैक साइकिलिंग स्पर्धा में डेनमार्क ने क्वालीफाइंग राउंड के दौरान डेनमार्क की टीम ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। इसके बावजूद फाइनल में इटली की टीम उससे आगे निकल गई, जिसने उससे भी बेहतर रिकॉर्ड कायम कर दिया।
विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि टोक्यो में ऐसे तमाम रिकॉर्ड उन स्पर्धाओं में बने, जिनमें नए उपकरणों या दौड़ के बेहतर ट्रैक की बड़ी भूमिका होती है। वारहोल्म जैसे ट्रैक स्टार ‘सुपर स्पाइक’ का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिन्हें खास तौर पर छोटी दूरी की दौड़ (स्प्रिंट) स्पर्धाओं के लिए तैयार किया गया है।
ये ध्यान देने की बात है कि टोक्यो में टेक्नोलॉजी के लिहाज से अब तक का सर्वाधिक उन्नत एथलेटिक्स ट्रैक बनाया गया था। ट्रैक निर्माता कंपनी का दावा है कि यह स्पंजी ट्रैक धावकों के लिए मददगार साबित हुआ। तीरंदाजी जैसे मुकाबले के लिए भी ह्यूंदै कंपनी की मदद से बेहतर प्रकार के तीर-कमान बनाए गए थे। तीरंदाजी स्पर्धाओं में दक्षिण कोरिया के एथलीटों ने कई विश्व रिकॉर्ड बनाए।
विशेषज्ञों ने इस तरफ भी ध्यान खींचा है कि लंबी कूद या गोला फेंकने जैसी स्पर्धाओं में टेक्नोलॉजी से कोई मदद नहीं मिली है। इन स्पर्धाओं में औसतन पिछले 23 साल से विश्व रिकॉर्ड नहीं टूटे हैं। वैसे इस चर्चा का एक पहलू यह भी है कि कई प्रकार की स्पर्धाओं में 1970 और 1990 के दशक में विश्व रिकॉर्ड बने थे। यह वो दौर था, जब डोपिंग रोकने की व्यवस्था चुस्त नहीं थी। यानी माना जाता है कि तब खिलाड़ियों ने प्रतिबंधित दवाओं का सेवन कर अपनी शारीरिक क्षमता बढ़ाई थी। जब से डोपिंग व्यवस्था का कारगर हुई है, कई स्पर्धाओं में एथलीट रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाए हैं।
विस्तार
टोक्यो ओलंपिक खेलों के दौरान ये चर्चा फिर से शुरू हुई है कि क्या खेलों में नए रिकॉर्ड बनाने की मानवीय क्षमता चूक रही है। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि शारीरिक क्षमता में अधिक बढ़ोतरी की उम्मीद कम होने के साथ ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन के लिए अब टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो गए हैं। अब टेक्नोलॉजी खेलों में अधिक बड़ी भूमिका निभा रही है। गौरतलब है कि ओलंपिक खेलों में शुरुआत से ही जोर विभिन्न प्रकार के खेलों में मानवीय क्षमता के बेहतर प्रदर्शन और नई उपलब्धियां हासिल करने पर रहा है। लेकिन अब विशेषज्ञों ने कहा है कि मानव क्षमता अपनी चरम सीमा पर पहुंचती लग रही है। चूंकि शारीरिक क्षमता को एक सीमा से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता, इसीलिए टेक्नोलॉजी की मदद खिलाड़ियों के बेहतर प्रदर्शन के लिए ज्यादा अहम हो गई है।
खेलों में कहा जाता है कि रिकॉर्ड टूटने के लिए ही बनते हैं। टोक्यो ओलंपिक में भी कई रिकॉर्ड टूटे। इस बार खास कर ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं (एथलेटिक्स) और साइकिलिंग में ज्यादा नए रिकॉर्ड बने। खास कर 400 मीटर की दौड़ में बने रिकॉर्ड की खूब चर्चा रही। इस दौड़ में अमेरिका के एथलीट राय बेंजामिन ने पिछला रिकॉर्ड तोड़ा, इसके बावजूद वे स्वर्ण पदक नहीं जीत सके। ये पदक नॉर्वे के कर्स्टन वारहोल्म ने हासिल किया, जो बेंजामिन से भी तेज दौड़े। इसी तरह ट्रैक साइकिलिंग स्पर्धा में डेनमार्क ने क्वालीफाइंग राउंड के दौरान डेनमार्क की टीम ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। इसके बावजूद फाइनल में इटली की टीम उससे आगे निकल गई, जिसने उससे भी बेहतर रिकॉर्ड कायम कर दिया।
विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि टोक्यो में ऐसे तमाम रिकॉर्ड उन स्पर्धाओं में बने, जिनमें नए उपकरणों या दौड़ के बेहतर ट्रैक की बड़ी भूमिका होती है। वारहोल्म जैसे ट्रैक स्टार ‘सुपर स्पाइक’ का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिन्हें खास तौर पर छोटी दूरी की दौड़ (स्प्रिंट) स्पर्धाओं के लिए तैयार किया गया है।
ये ध्यान देने की बात है कि टोक्यो में टेक्नोलॉजी के लिहाज से अब तक का सर्वाधिक उन्नत एथलेटिक्स ट्रैक बनाया गया था। ट्रैक निर्माता कंपनी का दावा है कि यह स्पंजी ट्रैक धावकों के लिए मददगार साबित हुआ। तीरंदाजी जैसे मुकाबले के लिए भी ह्यूंदै कंपनी की मदद से बेहतर प्रकार के तीर-कमान बनाए गए थे। तीरंदाजी स्पर्धाओं में दक्षिण कोरिया के एथलीटों ने कई विश्व रिकॉर्ड बनाए।
विशेषज्ञों ने इस तरफ भी ध्यान खींचा है कि लंबी कूद या गोला फेंकने जैसी स्पर्धाओं में टेक्नोलॉजी से कोई मदद नहीं मिली है। इन स्पर्धाओं में औसतन पिछले 23 साल से विश्व रिकॉर्ड नहीं टूटे हैं। वैसे इस चर्चा का एक पहलू यह भी है कि कई प्रकार की स्पर्धाओं में 1970 और 1990 के दशक में विश्व रिकॉर्ड बने थे। यह वो दौर था, जब डोपिंग रोकने की व्यवस्था चुस्त नहीं थी। यानी माना जाता है कि तब खिलाड़ियों ने प्रतिबंधित दवाओं का सेवन कर अपनी शारीरिक क्षमता बढ़ाई थी। जब से डोपिंग व्यवस्था का कारगर हुई है, कई स्पर्धाओं में एथलीट रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाए हैं।
टोक्यो ओलंपिक: विश्व रिकॉर्ड बनाने ये अब क्यों चूक रही है खिलाड़ियों की शारीरिक क्षमता?
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