videsh

जर्मनी में उलझती जा रही है चुनावी सूरत: कौन लेगा अंगेला मैर्केल की जगह अभी तक साफ नहीं, लोग नहीं दिखा रहे उत्साह

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बर्लिन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 31 Aug 2021 06:34 PM IST

सार

विश्लेषकों का कहना है कि देश में मतदाताओं की ठोस गोलबंदी का फिलहाल अभाव दिख रहा है, जबकि अब मतदान में चार हफ्तों से भी कम समय बचा है। पहली बहस को आमतौर पर फीका माना गया है…

एंजेला मर्केल और ओलफ शोल्ज
– फोटो : Agency (File Photo)

ख़बर सुनें

बीते रविवार को जर्मनी में चांसलर पद के प्रमुख उम्मीदवारों के बीच हुई बहस के बाद आम राय यह बनी है कि चुनावी मुकाबला अभी पूरी तरह खुला हुआ है। विश्लेषकों का कहना है कि देश में मतदाताओं की ठोस गोलबंदी का फिलहाल अभाव दिख रहा है, जबकि अब मतदान में चार हफ्तों से भी कम समय बचा है। पहली बहस को आमतौर पर फीका माना गया है। जर्मन मीडिया में छपी रिपोर्टों के मुताबिक चांसलर अंगेला मैर्केल की जगह कौन लेगा, ये रहस्य अभी पूरी तरह कायम है। मैर्केल 16 साल तक लगातार चांसलर रहने के बाद अब रिटायर हो रही हैं। जनमत सर्वेक्षणों में फिलहाल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) को मामूली बढ़त मिली हुई है, लेकिन वह इतनी नहीं है कि उसके आधार पर उसकी जीत तय मानी जाए। उम्मीदवार नेताओं की स्थिति यह है कि ताजा जनमत सर्वे में वे लोकप्रियता के लिहाज से अभी भी मैर्केल से पीछे आए, जबकि मैर्केल मौजूदा चुनाव में उम्मीदवार नहीं हैं।

जर्मनी के सरकारी मीडिया डायचे विले की वेबसाइट पर छपी एक टिप्पणी के मुताबिक फिलहाल जर्मन मतदाताओं में चांसलर पद के उम्मीदवार किसी नेता को लेकर उत्साह नहीं दिख रहा है। इसलिए चुनावी सूरत अस्पष्ट बनी हुई है। शुरुआत में मैर्केल की पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) और उसकी सहयोगी पार्टी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के साझा उम्मीदवार अरमिन लैशेट सबसे आगे थे। लेकिन हाल में उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है। ग्रीन पार्टी की उम्मीदवार अनालेना बेयरबॉक की लोकप्रियता उनसे भी ज्यादा तेजी से गिरी है।

इसका फायदा एपसीडी के उम्मीदवार ओलफ शोल्ज को मिला है। आरंभ में उनके जीतने की कोई संभावना नहीं समझी जा रही थी। डायचे विले की टिप्पणी में कहा गया है कि शोल्ज अब सबसे आगे हैं। ये बात मानना खुद शोल्ज के लिए भी मुश्किल साबित हो रही है। शोल्ज अब लैशेट की तुलना में दो से तीन फीसदी आगे माने जा रहे हैं। उन्हें 24 फीसदी तक वोट मिलने की संभावना जताई गई है। एसपीडी को पिछले 15 साल में इतने वोट कभी नहीं मिले।

विश्लेषकों ने कहा है कि चुनाव नतीजा चाहे जो हो, अब तक के ट्रेंड से एक बात साफ है कि जर्मनी में परंपरागत दो दलीय प्रणाली अब भंग हो गई है। तीन प्रमुख पार्टियां 20 फीसदी वोट के आसपास बनी हुई हैं। इसका मतलब यह है कि चुनाव के बाद उभरने वाली सूरत जटिल होगी। विश्लेषकों के मुताबिक संभव यह है कि चुनाव के बाद सीडीयू/सीएसयू गठबंधन एसपीडी से हाथ मिला ले। यह भी मुमकिन है कि इस बड़े गठबंधन में ग्रीन पार्टी भी शामिल हो जाए।

जिस दूसरी सूरत का अनुमान लगाया जा रहा है, उसके मुताबिक सीडीयू-सीएसयू गठबंधन फ्री डेमोक्रेट्स नाम की पार्टी के साथ मिल कर सरकार बना सकता है। ग्रीन पार्टी इस गठबंधन में भी शामिल हो सकती है। जर्मनी में चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर होते हैं। इसलिए अकसर किसी पार्टी के लिए पूर्ण बहुमत हासिल करना मुश्किल बना रहता है।

जर्मनी यूरोपियन यूनियन के भीतर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अंगेला मैर्केल के दौर में जर्मनी ने अमेरिका का पिछलग्गू रहने के बजाय स्वतंत्र नीति अपनाई। मैर्केल ने रूस और चीन के साथ जर्मनी के संबंध मजबूत किए। इसलिए विश्लेषकों ने कहा है कि 26 सितंबर को होने वाले चुनाव के नतीजे का जो बाइडन, शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन को भी बेसब्री से इंतजार रहेगा।

विस्तार

बीते रविवार को जर्मनी में चांसलर पद के प्रमुख उम्मीदवारों के बीच हुई बहस के बाद आम राय यह बनी है कि चुनावी मुकाबला अभी पूरी तरह खुला हुआ है। विश्लेषकों का कहना है कि देश में मतदाताओं की ठोस गोलबंदी का फिलहाल अभाव दिख रहा है, जबकि अब मतदान में चार हफ्तों से भी कम समय बचा है। पहली बहस को आमतौर पर फीका माना गया है। जर्मन मीडिया में छपी रिपोर्टों के मुताबिक चांसलर अंगेला मैर्केल की जगह कौन लेगा, ये रहस्य अभी पूरी तरह कायम है। मैर्केल 16 साल तक लगातार चांसलर रहने के बाद अब रिटायर हो रही हैं। जनमत सर्वेक्षणों में फिलहाल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) को मामूली बढ़त मिली हुई है, लेकिन वह इतनी नहीं है कि उसके आधार पर उसकी जीत तय मानी जाए। उम्मीदवार नेताओं की स्थिति यह है कि ताजा जनमत सर्वे में वे लोकप्रियता के लिहाज से अभी भी मैर्केल से पीछे आए, जबकि मैर्केल मौजूदा चुनाव में उम्मीदवार नहीं हैं।

जर्मनी के सरकारी मीडिया डायचे विले की वेबसाइट पर छपी एक टिप्पणी के मुताबिक फिलहाल जर्मन मतदाताओं में चांसलर पद के उम्मीदवार किसी नेता को लेकर उत्साह नहीं दिख रहा है। इसलिए चुनावी सूरत अस्पष्ट बनी हुई है। शुरुआत में मैर्केल की पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) और उसकी सहयोगी पार्टी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के साझा उम्मीदवार अरमिन लैशेट सबसे आगे थे। लेकिन हाल में उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है। ग्रीन पार्टी की उम्मीदवार अनालेना बेयरबॉक की लोकप्रियता उनसे भी ज्यादा तेजी से गिरी है।

इसका फायदा एपसीडी के उम्मीदवार ओलफ शोल्ज को मिला है। आरंभ में उनके जीतने की कोई संभावना नहीं समझी जा रही थी। डायचे विले की टिप्पणी में कहा गया है कि शोल्ज अब सबसे आगे हैं। ये बात मानना खुद शोल्ज के लिए भी मुश्किल साबित हो रही है। शोल्ज अब लैशेट की तुलना में दो से तीन फीसदी आगे माने जा रहे हैं। उन्हें 24 फीसदी तक वोट मिलने की संभावना जताई गई है। एसपीडी को पिछले 15 साल में इतने वोट कभी नहीं मिले।

Source link

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

To Top
%d bloggers like this: