अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।
Published by: Jeet Kumar
Updated Tue, 02 Nov 2021 05:00 AM IST
सार
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने कई वास्तविक जीवन स्थितियों का सामना किया, जिससे पता चलता है कि कानून के आदर्शों और समाज की वास्तविक स्थिति के बीच बहुत अंतर है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़
– फोटो : twitter
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विस्तार
डाबर इंडिया ने अनजाने में लोगों की भावनाओं को आहत करने के लिए बिना शर्त माफी मांगी थी। हिंदू त्योहारों से संबंधित विज्ञापन के कारण कंपनी को लेकर सोशल मीडिया पर कड़ी प्रतिक्रिया के कई उदाहरण सामने आए थे जिसके बाद कंपनी को अपने उस विज्ञापन को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
राष्ट्रीय महिला आयोग के सहयोग से आयोजित नालसा के ‘कानूनी जागरूकता के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने न केवल महिलाओं के मुद्दे पर जागरूकता लाने पर जोर दिया बल्कि हमारे समाज की मानसिकता बदलने को लेकर पुरुषों की युवा पीढ़ी को भी जागरूक करने की बात कही।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, एक विज्ञापन था जिसे सार्वजनिक असहिष्णुता के आधार पर कंपनी को हटाना पड़ा। जितना अधिक हम यह महसूस करेंगे कि महिलाओं की श्रेणी में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक नुकसान हैं, उतना ही हम उनकी व्यक्तिगत और वास्तविक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होंगे। महिलाओं के लिए सच्ची स्वतंत्रता, वास्तव में परस्पर विरोधी है।
हमारा संविधान एक परिवर्तनकारी दस्तावेज है जो पितृसत्ता में निहित संरचनात्मक असमानताओं को दूर करने की मांग करता है। घरेलू हिंसा अधिनियम, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम जैसे कानून महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को पूरा करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ही बनाए गए हैं।