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गठबंधन का नया सदस्य: क्या ‘ऑकुस’ बन जाएगा ’जाकुस’, जापान को मिला शामिल होने का न्योता

डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला, टोक्यो
Published by: अभिषेक दीक्षित
Updated Thu, 14 Apr 2022 11:19 PM IST

सार

जापान के अखबार द सानकेई न्यूज ने अपनी एक विशेष रिपोर्ट में कहा है कि ऑकुस में शामिल देश हाइपरसोनिक हथियार बनाना चाहते हैं। साथ ही वे अपने प्रयासों को इलेक्ट्रॉनिक तकनीकी क्षमता से लैस करना चाहते हैं।

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अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने जापान को ऑकुस सैन्य गठबंधन में शामिल की पहल की है। ऑकुस (ऑस्ट्रेलिया- यूनाइटेड किंगडम- यूनाइटेट स्टेट्स) गठबंधन का एलान पिछले साल किया गया था। तब ये घोषणा हुई थी कि ये गठबंधन एशिया- प्रशांत क्षेत्र में मुक्त नौवहन को सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा। साथ ही तब ये एलान हुआ था कि ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका और ब्रिटेन परमाणु पनडुब्बी बनाने की तकनीक देंगे।

जापान के अखबार द सानकेई न्यूज ने अपनी एक विशेष रिपोर्ट में कहा है कि ऑकुस में शामिल देश हाइपरसोनिक हथियार बनाना चाहते हैं। साथ ही वे अपने प्रयासों को इलेक्ट्रॉनिक तकनीकी क्षमता से लैस करना चाहते हैं। जापान की इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि अगर जापान ऑकुस का हिस्सा बन जाता है, तो फिर क्वैड्रैंगुलर सिक्युरिटी डायलॉग (क्वैड) की भूमिका पर सवाल खड़े होंगे। क्वैड में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के अलावा जापान और भारत शामिल हैं। अगर जापान ऑकुस में शामिल हो जाता है, तो भारत क्वैड का अकेला सदस्य बचेगा, जो अमेरिकी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं होगा।

द सानकेई न्यूज के मुताबिक जापान सरकार में ऑकुस में शामिल होने के प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली है। इसके बावजूद जापान सरकार पहले इस पर पूरा सोच-विचार करना चाहती है कि इसमें शामिल होने के क्या असर हो सकते हैं। जापान का पहले से ही अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय सहयोग का ढांचा है।

द सानकेई न्यूज ने जापान सरकार के कई अधिकारियों के हवाले से कहा है कि ऑकुस में शामिल तीनों देशों ने जापान से इस सैन्य गठबंधन में शामिल होने को कहा है। उन देशों की राय है कि साइबर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और क्वांटम टेक्नोलॉजी में जापान के पास महारत है। उसके उपयोग से ऑकुस के हथियार निर्माण की क्षमताएं मजबूत होंगी।

अखबार ने ध्यान दिलाया है कि जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के आदेश पर बीते 27 मार्च को नेशनल डिफेंस एकेडेमी के ग्रैजुएशन समारोह में अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन को भी पार्टनर देशों का दर्जा दिया गया था। जापान इन तीनों देशों के साथ ‘मुक्त और खुले एशिया प्रशांत’ (एफओआईपी) के लिए ‘स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप’ का करार कर चुका है। ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ भी उसने रक्षा उपकरणों और तकनीक के आदान-प्रदान के समझौते किए हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि एशिया प्रशांत को मुक्त और खुला रखने के प्रयासों का नेतृत्व जापान कर रहा है। इसलिए वह ऑकुस में भी शामिल होने को आसानी से तैयार हो जाएगा। ऑकुस का असर मकसद चीन का मुकाबला करना है। यही जापान का भी उद्देश्य है। मगर अब तक जापान परमाणु हथियारों से दूर रहा है। इसलिए देश के अंदर इस बात पर तीखी बहस होने की संभावना है कि क्या जापान को परमाणु पनडुब्बी बनाने में ऑस्ट्रेलिया की मदद करनी चाहिए।

द सेनकेई न्यूज ने बताया है कि अगर जापान नए गठबंधन में शामिल होने का फैसला करता है, तो उसका नाम ‘जाकुस’ (जापान-ऑस्ट्रेलिया-यूनाइटेड किंगडम-यूनाइटेड स्टेट्स) हो जाएगा।

विस्तार

अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने जापान को ऑकुस सैन्य गठबंधन में शामिल की पहल की है। ऑकुस (ऑस्ट्रेलिया- यूनाइटेड किंगडम- यूनाइटेट स्टेट्स) गठबंधन का एलान पिछले साल किया गया था। तब ये घोषणा हुई थी कि ये गठबंधन एशिया- प्रशांत क्षेत्र में मुक्त नौवहन को सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा। साथ ही तब ये एलान हुआ था कि ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका और ब्रिटेन परमाणु पनडुब्बी बनाने की तकनीक देंगे।

जापान के अखबार द सानकेई न्यूज ने अपनी एक विशेष रिपोर्ट में कहा है कि ऑकुस में शामिल देश हाइपरसोनिक हथियार बनाना चाहते हैं। साथ ही वे अपने प्रयासों को इलेक्ट्रॉनिक तकनीकी क्षमता से लैस करना चाहते हैं। जापान की इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि अगर जापान ऑकुस का हिस्सा बन जाता है, तो फिर क्वैड्रैंगुलर सिक्युरिटी डायलॉग (क्वैड) की भूमिका पर सवाल खड़े होंगे। क्वैड में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के अलावा जापान और भारत शामिल हैं। अगर जापान ऑकुस में शामिल हो जाता है, तो भारत क्वैड का अकेला सदस्य बचेगा, जो अमेरिकी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं होगा।

द सानकेई न्यूज के मुताबिक जापान सरकार में ऑकुस में शामिल होने के प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली है। इसके बावजूद जापान सरकार पहले इस पर पूरा सोच-विचार करना चाहती है कि इसमें शामिल होने के क्या असर हो सकते हैं। जापान का पहले से ही अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय सहयोग का ढांचा है।

द सानकेई न्यूज ने जापान सरकार के कई अधिकारियों के हवाले से कहा है कि ऑकुस में शामिल तीनों देशों ने जापान से इस सैन्य गठबंधन में शामिल होने को कहा है। उन देशों की राय है कि साइबर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और क्वांटम टेक्नोलॉजी में जापान के पास महारत है। उसके उपयोग से ऑकुस के हथियार निर्माण की क्षमताएं मजबूत होंगी।

अखबार ने ध्यान दिलाया है कि जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के आदेश पर बीते 27 मार्च को नेशनल डिफेंस एकेडेमी के ग्रैजुएशन समारोह में अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन को भी पार्टनर देशों का दर्जा दिया गया था। जापान इन तीनों देशों के साथ ‘मुक्त और खुले एशिया प्रशांत’ (एफओआईपी) के लिए ‘स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप’ का करार कर चुका है। ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ भी उसने रक्षा उपकरणों और तकनीक के आदान-प्रदान के समझौते किए हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि एशिया प्रशांत को मुक्त और खुला रखने के प्रयासों का नेतृत्व जापान कर रहा है। इसलिए वह ऑकुस में भी शामिल होने को आसानी से तैयार हो जाएगा। ऑकुस का असर मकसद चीन का मुकाबला करना है। यही जापान का भी उद्देश्य है। मगर अब तक जापान परमाणु हथियारों से दूर रहा है। इसलिए देश के अंदर इस बात पर तीखी बहस होने की संभावना है कि क्या जापान को परमाणु पनडुब्बी बनाने में ऑस्ट्रेलिया की मदद करनी चाहिए।

द सेनकेई न्यूज ने बताया है कि अगर जापान नए गठबंधन में शामिल होने का फैसला करता है, तो उसका नाम ‘जाकुस’ (जापान-ऑस्ट्रेलिया-यूनाइटेड किंगडम-यूनाइटेड स्टेट्स) हो जाएगा।

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