वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बीजिंग
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Thu, 17 Feb 2022 11:19 AM IST
सार
चीन अब तक अपनी दो कंपनियों- सिनोवैक और सिनोफार्म द्वारा विकसित कोरोना रोधी टीकों पर ही निर्भर है। इसे बदलने के लिए वह खुद की एमआरएनए वैक्सीन विकसित कर रहा है।
चीन अपनी खुद की एमआरएन वैक्सीन (mRNA vaccine) बनाने जा रहा है। दुनिया में सबसे पहले कोरोना वायरस का पता लगाने वाले चीन ने अब तक किसी वैक्सीन का आयात नहीं किया है। चीन अब इस असाधारण प्रभाव वाले टीके को बनाएगा। उसके इस कदम से अमेरिकी कंपनी फाइजर व माडर्ना को टक्कर मिल सकती है।
चीन अब तक अपनी दो कंपनियों- सिनोवैक और सिनोफार्म द्वारा विकसित कोरोना रोधी टीकों पर ही निर्भर है। इसे बदलने के लिए वह खुद की एमआरएनए वैक्सीन विकसित कर रहा है। सिनोवैक व सिनोफार्म के टीके परंपरागत तरीकों से विकसित किए जाते हैं। इनमें कोरोना वायरस के पूरे रूप होते हैं। इन्हें निष्क्रिय करने के लिए आजमाए गए तरीके से ये टीके बनाए गए हैं।
ओमिक्रॉन से नहीं बचा पा रहे चीनी टीके
चीन की इन दोनों कंपनियों के टीके शुरू में लोगों को संक्रमित होने से बचाने में कारगर थे, लेकिन समय के साथ यह सुरक्षा कमजोर हो गई। ओमिक्रॉन के मामले में तो ये एक तरह से निष्प्रभावी रहे।इसी कारण चीन ज्यादा प्रभावी टीके बनाने के दबाव में आया। वायरस का संक्रमण रोकने के लिए चीन अब एमआरएनए वैक्सीन बनाएगा। एमआरएनए वैक्सीन बिलकुल अलग तरीके से काम करती है।
एमआरएनए वैक्सीन की यह है खासियत
ये टीके न्यूक्लिक एसिड वैक्सीन की श्रेणी में आते हैं। इसमें बीमारी पैदा करने वाले वायरस या पैथोजन से आनुवंशिक तत्व उपयोग किया जाता है। इससे शरीर के अंदर वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक प्रणाली तैयार होकर सक्रिय हो जाती है। पारंपरिक वैक्सीन में इसके लिए बीमारी पैदा करने वाले वायरस को ही मृत या निष्क्रिय करके शरीर में डाला जाता है, लेकिन एमआरएनए वैक्सीन में पैथोजन का जेनेटिक कोड शरीर में डाला जाता है। यह मानव कोशिका को वायरस के हमले की पहचान करके उसके बचाव के लिए रक्षात्मक प्रोटीन तैयार करने के लिए प्रेरित करता है। चूंकि एमआरएनए वैक्सीन में वायरस का किसी तरह का कोई जीवित तत्व नहीं डाला जाता है। इसलिए इससे बीमारी बढ़ने का खतरा नहीं होता।
विस्तार
चीन अपनी खुद की एमआरएन वैक्सीन (mRNA vaccine) बनाने जा रहा है। दुनिया में सबसे पहले कोरोना वायरस का पता लगाने वाले चीन ने अब तक किसी वैक्सीन का आयात नहीं किया है। चीन अब इस असाधारण प्रभाव वाले टीके को बनाएगा। उसके इस कदम से अमेरिकी कंपनी फाइजर व माडर्ना को टक्कर मिल सकती है।
चीन अब तक अपनी दो कंपनियों- सिनोवैक और सिनोफार्म द्वारा विकसित कोरोना रोधी टीकों पर ही निर्भर है। इसे बदलने के लिए वह खुद की एमआरएनए वैक्सीन विकसित कर रहा है। सिनोवैक व सिनोफार्म के टीके परंपरागत तरीकों से विकसित किए जाते हैं। इनमें कोरोना वायरस के पूरे रूप होते हैं। इन्हें निष्क्रिय करने के लिए आजमाए गए तरीके से ये टीके बनाए गए हैं।
ओमिक्रॉन से नहीं बचा पा रहे चीनी टीके
चीन की इन दोनों कंपनियों के टीके शुरू में लोगों को संक्रमित होने से बचाने में कारगर थे, लेकिन समय के साथ यह सुरक्षा कमजोर हो गई। ओमिक्रॉन के मामले में तो ये एक तरह से निष्प्रभावी रहे।इसी कारण चीन ज्यादा प्रभावी टीके बनाने के दबाव में आया। वायरस का संक्रमण रोकने के लिए चीन अब एमआरएनए वैक्सीन बनाएगा। एमआरएनए वैक्सीन बिलकुल अलग तरीके से काम करती है।
एमआरएनए वैक्सीन की यह है खासियत
ये टीके न्यूक्लिक एसिड वैक्सीन की श्रेणी में आते हैं। इसमें बीमारी पैदा करने वाले वायरस या पैथोजन से आनुवंशिक तत्व उपयोग किया जाता है। इससे शरीर के अंदर वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक प्रणाली तैयार होकर सक्रिय हो जाती है। पारंपरिक वैक्सीन में इसके लिए बीमारी पैदा करने वाले वायरस को ही मृत या निष्क्रिय करके शरीर में डाला जाता है, लेकिन एमआरएनए वैक्सीन में पैथोजन का जेनेटिक कोड शरीर में डाला जाता है। यह मानव कोशिका को वायरस के हमले की पहचान करके उसके बचाव के लिए रक्षात्मक प्रोटीन तैयार करने के लिए प्रेरित करता है। चूंकि एमआरएनए वैक्सीन में वायरस का किसी तरह का कोई जीवित तत्व नहीं डाला जाता है। इसलिए इससे बीमारी बढ़ने का खतरा नहीं होता।
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