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कॉप26: संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरस ने कहा- समझौते पर्याप्त नहीं, यह आपात मोड में काम करने का समय

सार

जलवायु परिवर्तन सम्मेलन दुनियाभर के तमाम बड़े नेता जुटे थे, जलवायु परिवर्तन पर सबने अपनी-अपनी बातें रखीं थीं और कई समझौते भी हुए थे।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस
– फोटो : social media

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स्कॉटलैंड में शनिवार को संपन्न जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हुए समझौते को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा कि यह पर्याप्त नहीं है।

उन्होंने कहा, यह एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन नाकाफी है। हमें वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए इस दिशा में तेजी से उपाय करने होंगे। उन्होंने कहा कि अब एमर्जेंसी मोड में काम करने का समय आ गया है।

उधर, भारत के कोयले के उपयोग खत्म करने के बजाय इसे घटाने के तर्क से कई देशों की नाखुशी पर पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, जब भारत और दूसरे विकासशील देश अपने नागरिकों की गरीबी खत्म करने और विकास में जुटे हैं, तो उनसे कोयले का उपयोग रोकने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? विकसित देशों ने जीवाश्म ईंधन से काफी संपत्ति और ऊंच्च जीवन स्तर हासिल कर लिया है, विकासशील देशों को इससे दूर रखना अनुचित होगा।

यादव ने कहा, हर देश अपनी परिस्थितियों, कमजोरियों और शक्तियों के अनुसार जीवाश्म ईंधन के उपयोग को शून्य पर लाएगा। समझौते में कुछ कमियां हैं। भारत इसे लेकर रचनात्मक बहस और समानता चाहता है। इसके लिए सम्मेलन सही फोरम है।

उन्होंने कहा कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली जीवन शैली और उपभोग के पैटर्न से संकट उभरा है। पेरिस समझौते के अनुसार समाधान के लिए पर्यावरण संरक्षण, उचित जीवन शैली और देशों में बराबरी जरूरी है।

विकासशील देशों को भी गरीबी दूर करनी है
यादव ने कहा, विकासशील देशों को यह अधिकार है कि वैश्विक कार्बन बजट (मानव गतिविधियों से पृथ्वी पर कार्बन उत्सर्जन) में उनका उचित हिस्सा हो। वे जिम्मेदार ढंग से जीवाश्म ईंधन उपयोग करने के पात्र हैं। उनसे कहना कि आप कोयले या जीवाश्म ईंधन का उपयोग खत्म करने का वादा करो, इस पर सब्सिडी बंद करो, यह कैसे संभव है? इन देशों को अपने यहां विकास करना है, अपने नागरिकों की गरीबी दूर करनी है।

हमने एलपीजी सब्सिडी देकर प्रदूषण कम किया
सब्सिडी को लेकर भूपेंद्र यादव ने कहा कि भारत जैसे देशों में नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा और सहयोग चाहिए। भारत ने एलपीजी पर गरीब नागरिकों को सब्सिडी देकर न केवल उनके स्वास्थ्य को सुधारा है, बल्कि खाना पकाने के लिए बायोमास जलाने में भी भारी कमी की है। इससे वायु प्रदूषण घटता है।

विस्तार

स्कॉटलैंड में शनिवार को संपन्न जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हुए समझौते को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा कि यह पर्याप्त नहीं है।

उन्होंने कहा, यह एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन नाकाफी है। हमें वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए इस दिशा में तेजी से उपाय करने होंगे। उन्होंने कहा कि अब एमर्जेंसी मोड में काम करने का समय आ गया है।

उधर, भारत के कोयले के उपयोग खत्म करने के बजाय इसे घटाने के तर्क से कई देशों की नाखुशी पर पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, जब भारत और दूसरे विकासशील देश अपने नागरिकों की गरीबी खत्म करने और विकास में जुटे हैं, तो उनसे कोयले का उपयोग रोकने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? विकसित देशों ने जीवाश्म ईंधन से काफी संपत्ति और ऊंच्च जीवन स्तर हासिल कर लिया है, विकासशील देशों को इससे दूर रखना अनुचित होगा।

यादव ने कहा, हर देश अपनी परिस्थितियों, कमजोरियों और शक्तियों के अनुसार जीवाश्म ईंधन के उपयोग को शून्य पर लाएगा। समझौते में कुछ कमियां हैं। भारत इसे लेकर रचनात्मक बहस और समानता चाहता है। इसके लिए सम्मेलन सही फोरम है।

उन्होंने कहा कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली जीवन शैली और उपभोग के पैटर्न से संकट उभरा है। पेरिस समझौते के अनुसार समाधान के लिए पर्यावरण संरक्षण, उचित जीवन शैली और देशों में बराबरी जरूरी है।

विकासशील देशों को भी गरीबी दूर करनी है

यादव ने कहा, विकासशील देशों को यह अधिकार है कि वैश्विक कार्बन बजट (मानव गतिविधियों से पृथ्वी पर कार्बन उत्सर्जन) में उनका उचित हिस्सा हो। वे जिम्मेदार ढंग से जीवाश्म ईंधन उपयोग करने के पात्र हैं। उनसे कहना कि आप कोयले या जीवाश्म ईंधन का उपयोग खत्म करने का वादा करो, इस पर सब्सिडी बंद करो, यह कैसे संभव है? इन देशों को अपने यहां विकास करना है, अपने नागरिकों की गरीबी दूर करनी है।

हमने एलपीजी सब्सिडी देकर प्रदूषण कम किया

सब्सिडी को लेकर भूपेंद्र यादव ने कहा कि भारत जैसे देशों में नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा और सहयोग चाहिए। भारत ने एलपीजी पर गरीब नागरिकों को सब्सिडी देकर न केवल उनके स्वास्थ्य को सुधारा है, बल्कि खाना पकाने के लिए बायोमास जलाने में भी भारी कमी की है। इससे वायु प्रदूषण घटता है।

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