न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: प्रांजुल श्रीवास्तव
Updated Wed, 24 Nov 2021 09:09 AM IST
सार
सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर 12 जनवरी को एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने 19 मार्च को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की थी। इसमें कृषि कानूनों को लेकर कई सिफारिशें थीं, जिन्हें अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
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विस्तार
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना को पत्र लिख कर कहा है कि इन सिफारिशों तैयार करने में लगा समिति का समय सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट का समय व्यर्थ न जाए, इसलिए सभी सिफारिशों की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। उन्होंने पत्र में कहा है कि या तो सुप्रीम कोर्ट इन सिफारिशों को खुद ही सार्वजनिक कर दे या फिर मुझे ऐसा करने के लिए अधिकृत किया जाए।
किसानों की गलतफहमी दूर की जाए
अपने पत्र में घनवट ने कहा कि संसद के शीतकालीन सत्र में तीनों कानून वापसी की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इसके बाद ये कानून पूरी तरह से निष्प्रभावी हो जाएंगे, लेकिन इन कानूनों पर जारी की गई सिफारिशों को सार्वजनिक करके किसानों की गलतफहमी को दूर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि किसानों को कुछ नेताओं द्वारा गुमराह किया गया है।
मजबूत नीति विकसित करने के निर्देश दे कोर्ट
पत्र में अनिल घनवट ने कहा कि इन कानूनों को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया था, क्योंकि भारत की नीति प्रक्रिया कमजोर है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि विकसित देशों की तर्ज पर भारत में भी मजबूत नीति विकसित की जाए। यह सुनिश्चित किया जाएग कि किसी समुदाय के आक्रोश के कारण सरकार और न्यायालय का बहुमूल्य समय बर्बाद न हो।
एमएसपी की गारंटी संभव नहीं
घनवट ने उन किसानों की आलोचना भी की जो एमएसपी की गारंटी की मांग करते हुए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों के हित में बेहतर पॉलिसी लानी चाहिए, आगे कहा कि देश में एमएसपी की गारंटी संभव नहीं है। कहा कि हमें एमएसपी के दुष्प्रभावों को देखना चाहिए। पंजाब का किसान केवल गेहूं और धान उगाता है। वहां जल स्तर कम हो रहा है, ऐसे में उसे विविधता लानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सिर्फ 23 फसल ही क्यों हैं, ऐसे तो उस किसान को भी एमएसपी मिलनी चाहिए जो आलू और प्याज उगा रहा है।
भाजपा सरकार पर बोला था हमला
कानून वापसी की घोषणा के बाद अनिल घनवट ने भाजपा सरकार की जमकर आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि अगर कृषि कानूनों पर समिति की सिफारिशों को लागू किया जाता तो किसानों का हित होता, लेकिन सरकार ने कानून वापसी की घोषणा कर चुनाव जीतने की चिंता की। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए की गई सिफारिशों को पढ़ा ही नहीं गया।