कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि एक व्यक्ति केवल इसलिए दुष्कर्म के मुकदमे से बच नहीं सकता क्योंकि पीड़िता उसकी पत्नी है, क्योंकि यह समानता के अधिकार के खिलाफ है। अदालत ने सुझाव दिया कि सांसदों को “चुप्पी की आवाज” पर ध्यान देना चाहिए और कानून में असमानताओं को दूर करना चाहिए।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता पति के खिलाफ दुष्कर्म के आरोप को हटाने से इनकार करते हुए कहा सदियों पुरानी उस घिसीपिटी सोच को मिटा दिया जाना चाहिए कि पति अपनी पत्नी के शासक हैं, उनके शरीर, मन और आत्मा के मालिक हैं। यह सोच केवल पुरातन, प्रतिगामी और पूर्वकल्पित धारणा पर आधारित है, इस तरह के मामले तेजी से देश में बढ़ रहे हैं।
सदियों पुरानी प्रतिगामी सोच थी कि पति अपनी पत्नियों के शासक हैं, उनके शरीर, मन और आत्मा को मिटा दिया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने दुष्कर्म के आरोप में याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि आरोपी पर पत्नी और बेटी के खिलाफ कथित यौन कृत्यों के लिए पॉस्को (POCSO) अधिनियम के साथ ही दुष्कर्म और क्रूरता के आरोप लगाए गए हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा कि पति की ओर से पत्नी पर की गई यौन प्रताड़ना का पत्नी की मानसिक स्थिति पर गंभीर असर होगा, इसका मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दोनों ही प्रकार का असर उस पर होगा। अदालत ने कहा कि पति के इस प्रकार के कृत्य पत्नियों की आत्मा को आघात पहुंचाते हैं। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि इसलिए अब कानून निर्माताओं के लिए जरूरी है कि वे ‘‘खामोशी की आवाज को सुनें”।
पीठ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं। अदालत ने कहा कि पतियों के लिए ऐसी कोई भी छूट अनुच्छेद 14 के खिलाफ जाएगी, जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है।
अदालत ने कहा, “अगर एक पुरुष, एक पति को आईपीसी की धारा 375 (दुष्कर्म) के आरोप से छूट दी जा सकती है, तो यह कानून में असमानता को दर्शाती है।” संविधान के तहत सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए, चाहे वह पुरुष हो, महिला हो या अन्य। कानून के किसी भी प्रावधान में असमानता के किसी भी विचार को जोड़ना, संविधान के अनुच्छेद 14 की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा।
अदालत ने कहा कि “संविधान के तहत महिला और पुरुष को एक समान बताया गया है और आईपीसी की धारा 375 के अपवाद -2 द्वारा इसे अयोग्य नहीं बनाया जा सकता है।” यह देखते हुए कि कानून में ऐसी असमानताओं के अस्तित्व पर विचार करना सांसदों का काम है।
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