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इमरान के बाद भारत-पाक के रिश्ते: कश्मीर पर नई सरकार के पुराने नेताओं का रुख, कोई भी उम्मीद अभी जल्दबाजी क्यों?

सार

अमर उजाला आपको बता रहा है कि पाकिस्तान की भारत नीति आगे कैसे रहने की उम्मीद है? मौजूदा सरकार कश्मीर को लेकर क्या रुख अपना सकती है? जब पहले इन पार्टियों की सरकारें रहीं तो कश्मीर को लेकर इनका रुख क्या रहा था?

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पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार गिरने के बाद से ही कई देशों ने उम्मीद जताई है कि नई सरकार देश के खराब होते हालात को सुधारने में अहम भूमिका निभाएगी। कुछ विश्लेषकों का तो यहां तक मानना है कि नई सरकार पाकिस्तान के पश्चिमी देशों और भारत से खराब हो चुके संबंधों को भी सुधारेगी। हालांकि, कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से जहां इमरान सरकार भारत के खिलाफ लगातार भड़काऊ भाषण देती रही है, वहीं विपक्ष पार्टियों पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता भी इस मामले में पीछे नहीं रहे हैं। 

ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर पाकिस्तान की भारत नीति आगे कैसे रहने की उम्मीद है? मौजूदा सरकार कश्मीर को लेकर क्या रुख अपना सकती है? जब पहले इन पार्टियों की सरकारें रहीं तो कश्मीर को लेकर इनका रुख क्या रहा था?
1. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी: बेनजीर भुट्टो
यह कहना अतिश्योक्ति होगी कि पाकिस्तान में किसी भी पार्टी की सरकार ने कश्मीर मुद्दे पर भारत के साथ सुलह की कोशिश की है। चाहे संयुक्त राष्ट्र (यूएन) का मंच हो या सार्क और अन्य क्षेत्रीय देशों का समूह पाकिस्तानी सरकारों ने समय-समय पर कश्मीर मुद्दे को उठाकर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की है। कश्मीर में जिस दौर में कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हिंसा अपने चरम पर थी, उस दौरान बेनजीर भुट्टो देश की प्रधानमंत्री थीं। उनके उस दौर के भाषणों की जो वीडियो प्रतियां आज भी मौजूद हैं, उनसे साफ है कि बेनजीर ने कश्मीर को लेकर जबरदस्त जहर उगला था। यहां तक कि उन्होंने कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन तक को काट डालने की धमकी दे डाली थी। बताया जाता है कि बेनजीर ने यह बयान विपक्ष की ओर से कश्मीर मुद्दे पर घेरे जाने के बाद दिए थे। तत्कालीन पाक पीएम ने उस दौरान पाक के कब्जे वाले कश्मीर का दौरा किया था और भीड़ जुटाकर भारत के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी की थी। 

इसके अलावा कई और मौके आए, जब बेनजीर ने कश्मीर राग अलापा। हालांकि, उनके पति आसिफ अली जरदारी ने 2018 में यह कहकर सबको सकते में डाल दिया कि 1990 में बेनजीर ने राजीव गांधी से बातचीत की थी और कश्मीर मुद्दे को बातचीत के जरिए सुलझाने का प्रस्ताव दिया था। इस पर राजीव गांधी ने भी सत्ता में आने के बाद बेनजीर से इस मुद्दे के हल का वादा किया, लेकिन 1991 में उनकी हत्या हो गई थी। जरदारी का कहना था कि पीपीपी के अलावा पाकिस्तान की किसी पार्टी ने भारत के साथ कश्मीर मुद्दे को शांतिपूर्वक ढंग से सुलझाने की कोशिश नहीं की।
पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के संस्थापक नवाज शरीफ भी बेनजीर भुट्टो की ही तरह कई बार अपने भाषणों में कश्मीर राग अलापते सुने गए। यूएन में 2013, 2015 में अपने भाषण में शरीफ ने कश्मीर मुद्दे को उछाला, जिसका भारत की तरफ से माकूल जवाब भी दिया गया। 2016 में कश्मीर घाटी में आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद भी शरीफ ने उसे शहीद बताकर कश्मीर में आतंकवाद का समर्थन किया था। यहां तक कि उन्होंने कश्मीर में संघर्ष को स्वतंत्रता संग्राम तक करार दे दिया था। 

कुछ पुरानी किताबों और मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो यह साफ है कि भारत और पाकिस्तान के बीच दो समयकाल ऐसे थे, जब कश्मीर मुद्दा सुलझना लगभग तय था। एक समय था 1971 में बांग्लादेश की आजादी का, जब भारत ने पीएम इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांट दिया था। वहीं, दूसरा समयकाल था 1999 का, जब भारत में अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान में नवाज शरीफ की सरकारें कश्मीर मसले के हल के सबसे करीब थीं। लेकिन सीमापार से भारत के खिलाफ भड़काई जा रही आतंकवाद की आग ने इन कोशिशों को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। 
अगर यह कहा जाए कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने से पहले तक इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का रुख भारत के प्रति सबसे नरम था, तो यह गलत नहीं होगा। 2015 में अपनी पार्टी को मुख्यधारा में लाने से पहले इमरान खान ने कहा था कि कश्मीर दोनों देशों के बीच विवाद का प्रमुख मुद्दा है और इसे बातचीत के जरिए सुलझाना सबसे ज्यादा जरूरी है। खान ने कहा था कि वे भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहते हैं। 2018 में जब उनकी पार्टी ने पूरी ताकत से आम चुनाव लड़ा, तब भी पीटीआई के घोषणापत्र में कश्मीर का जिक्र नहीं था। यहां तक कि अपने भाषणों में भी इमरान ने इस मुद्दे से किनारा ही किया। 

चुनाव जीतने के बाद इमरान ने भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने के लिए करतारपुर कॉरिडोर की शुरुआत की। हालांकि, 14 फरवरी 2019 को कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद एकाएक यह रिश्ते बिगड़ते चले गए। भारत ने भी इसके बाद पाकिस्तान पर दो बार सर्जिकल स्ट्राइक कीं। पीएम मोदी के 2019 में दोबारा सत्ता में आने के बाद भारत ने 5 अगस्त 2019 को कश्मीर से अनुच्छेद 370 को रद्द कर दिया और राज्य का दर्जा भी छीन लिया।

भारत के इस कदम के बाद ही इमरान खान सरकार ने कश्मीर मुद्दे को सुलझाने की कोशिशों पर विराम लगा दिया और दोनों देशों के राजनयिक रिश्तों को अपने निचले स्तर पर किए जाने का एलान किया। यहां से इमरान ने भारत के खिलाफ अलग-अलग मंचों से कई भड़काऊ भाषण दिए और परमाणु युद्ध तक की धमकी दे डाली। इस दौरान इमरान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी कई जुबानी हमले किए।
विदेश मामलों के जानकारों को उम्मीद है कि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक रिश्ते फिर सुधरेंगे। हालांकि, रिश्तों में कितना बदलाव होगा यह समझने के लिए हमें नई सरकार के शामिल होने जा रहे नेताओं के पुराने बयान को देखना होगा। खासकर कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद। इस दौरान पीएमएल-एन और पीपीपी की नई पीढ़ियों के नेताओं ने जो बयान दिए, उनसे यह अंदाजा लगाना आसान होगा कि पाकिस्तान और भारत के बीच रिश्ते सुधरने की उम्मीद कितनी वाजिब है। 
पाकिस्तान मुस्लिम लीग के मौजूदा प्रमुख और पाक के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखे जा रहे शाहबाज शरीफ भी भारत के खिलाफ बयानबाजी में पीछे नहीं रहे हैं। खासकर जब मसला इमरान खान की सरकार को घेरने का हो। नवाज शरीफ के छोटे भाई और पाकिस्तानी पंजाब के सीएम रह चुके शाहबाज ने संसद में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाते हुए कहा था कि पाकिस्तान का हमेशा से कश्मीर पर एक ही रुख रहा है और वह है जनमत संग्रह। अनुच्छेद 370 हटने के ठीक बाद जब पाक ने भारत के साथ रिश्ते निचले स्तर पर ले जाने का एलान किया था, तब शरीफ ने कहा था कि इमरान कश्मीर का भविष्य बेच रहे हैं। उन्होंने इमरान पर कश्मीर मुद्दे को लेकर पाकिस्तान की एकजुटता तोड़ने के आरोप भी लगाए थे। 

हालांकि, इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद शाहबाज ने साफ किया था कि वे कश्मीर मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं और बातचीत के जरिए पूरे मुद्दे का हल चाहते हैं। हालांकि, पाकिस्तान के पिछले दो पीएम- नवाज शरीफ और इमरान खान भी यही वादे पहले भी दोहराते रहे हैं। 
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पाकिस्तान के जिस नेता ने सबसे नरम रुख अपनाया है, उनमें बिलावल भुट्टो सबसे अहम नाम हैं। उन्होंने मोदी सरकार के फैसले के बाद कहा था कि इमरान की अयोग्यता की वजह से कश्मीर अब पाकिस्तान के लिए एक ‘खो चुका’ मुद्दा बन गया है। बिलावल ने कहा था कि पहले पाकिस्तान की नीति होती थी कि कैसे भारत से श्रीनगर को अलग कराया जाए, लेकिन अब हमारी नीति है कि कैसे मुजफ्फराबाद (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की राजधानी) को भारत से बचाया जाए। 

उन्होंने कहा था कि इमरान खान भारत के पीएम के सामने भीगी बिल्ली बन जाते हैं। पीपीपी नेता ने कश्मीर मुद्दे को इमरान की कूटनीतिक असफलता तक करार दिया था। बिलावल ने एक मौके पर तो यहां तक कह दिया था कि पाकिस्तान कश्मीर का एक-एक इंच भारत से लेकर रहेगा। हालांकि, इस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने उन्हें खरी-खरी सुनाई थी। 
इमरान सरकार के दौरान कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ बोलने वालों में जिन नेताओं का उभार हुआ है, उनमें जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई) के अध्यक्ष मौलाना फजल-उर-रहमान सबसे आगे हैं। रहमान इससे पहले भी पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में कश्मीर कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं। अनुच्छेद 370 रद्द होने के बाद ही उन्होंने कहा था कि कश्मीरी लोगों को पीएम इमरान खान से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने कब्जे वाली जमीन पर सौदा कर लिया है। रहमान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी कश्मीर को लेकर अपील की थी और भारत पर आरोप लगाए थे और कहा था कि हम आपको अकेला नहीं छोड़ेंगे। 

पिछले साल 5 फरवरी को एक रैली के दौरान रहमान ने कहा था कि इमरान सरकार ने कश्मीर के लोगों की पीठ में छुरा घोंपा है। उन्होंने बताया था कि सरकार में आने से पहले इमरान ने कश्मीर के तीन टुकड़े करने की बात की थी। लेकिन उनके इस विचार को नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप ने मिलकर लागू कर लिया। 
पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज की कद्दावर नेता और नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज भी बीते सालों में कश्मीर को लेकर काफी मुखर रही हैं। पिछले साल मुजफ्फराबाद में एक जलसे के दौरान मरियम ने भी इमरान पर आरोप लगाए थे कि उन्होंने कश्मीर को भारत के हाथों बेच दिया। उन्होंने कहा था कि कश्मीर अब भारत की दया पर रहने को मजबूर है। मरियम ने यहां तक कहा था कि आखिर किसने इमरान खान को कश्मीरियों का खून भारत को बेचने का अधिकार दिया। उन्होंने कहा था कि हम कभी भी कश्मीर के लोगों को अकेला नहीं पड़ने देंगे और जब भी कश्मीर की बात आएगी तो पूरा पाकिस्तान एक साथ खड़ा होगा। उन्होंने कश्मीर में मारे जाने वाले आतंकियों को शहीद करार देते हुए कहा था कि हम इसका निपटारा कर के रहेंगे।

इमरान विरोधी इन नेताओं के बयान बताते हैं कि दोनों देशों के बीच रिश्ते इतनी जल्दी सामान्य होने की उम्मीद करना बेमानी होगा।

विस्तार

पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार गिरने के बाद से ही कई देशों ने उम्मीद जताई है कि नई सरकार देश के खराब होते हालात को सुधारने में अहम भूमिका निभाएगी। कुछ विश्लेषकों का तो यहां तक मानना है कि नई सरकार पाकिस्तान के पश्चिमी देशों और भारत से खराब हो चुके संबंधों को भी सुधारेगी। हालांकि, कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से जहां इमरान सरकार भारत के खिलाफ लगातार भड़काऊ भाषण देती रही है, वहीं विपक्ष पार्टियों पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता भी इस मामले में पीछे नहीं रहे हैं। 

ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर पाकिस्तान की भारत नीति आगे कैसे रहने की उम्मीद है? मौजूदा सरकार कश्मीर को लेकर क्या रुख अपना सकती है? जब पहले इन पार्टियों की सरकारें रहीं तो कश्मीर को लेकर इनका रुख क्या रहा था?

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