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इंडोनेशिया: विडोडो के गले की हड्डी क्यों बनती जा रही है जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी? बैठक की अहमियत घटने की चिंता

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, जकार्ता
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 05 Apr 2022 07:23 PM IST

सार

इंडोनेशियाई मीडिया में कहा जा रहा है कि जी-20 की मेजबानी राष्ट्रपति विडोडो के लिए गले की हड्डी बनने जा रहा है। इससे वे तभी बच सकते हैं अगर पुतिन खुद इस बैठक में आने से मना कर दें। वरना, विडोडो को दो विरोधी पक्षों में से किसी एक का चुनाव करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, तो उनके लिए बेहद कठिन परीक्षा होगी…

 

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जी-20 देशों के अगले शिखर सम्मेलन के मेजबान इंडोनेशिया की मुश्किल बढ़ती जा रही है। रूस ने कुछ रोज पहले यह स्पष्ट कर दिया कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। जबकि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने यूक्रेन पर हमले के कारण रूस को जी-20 से निकालने का खुलेआम इरादा जताया है। उधर, चीन ने दो टूक कहा है कि किसी भी देश को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी अन्य देश को जी-20 से निकालने की बात करे।

इंडोनेशियाई अखबारों में छपी रिपोर्टों के मुताबिक इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो अभी भी ये भरोसा जता रहे हैं कि वे सभी जी-20 नेताओं को अगले शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए मना लेंगे। वे इस बात पर जोर डालेंगे कि यूक्रेन युद्ध को अलग रखते हुए शिखर सम्मेलन में सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर चर्चा हो। लेकिन विश्लेषकों ने विडोडो के इस भरोसे को उनका भोलापन बताया है।

पुतिन करेंगे आमंत्रण स्वीकार

जी-20 का गठन 1999 में हुआ था। तब से ऐसे हालत कभी पैदा नहीं हुए, जिससे किसी एक सदस्य देश की भागीदारी को लेकर आज जैसा विवाद खड़ा हुआ हो। जकार्ता स्थित रूसी राजदूत ने हाल में बताया कि पुतिन जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए इंडोनेशिया के आमंत्रण को स्वीकार करेंगे। उन्हें ये आमंत्रण जी-20 की रोम में हुई पिछली बैठक के दौरान दिया गया था। रूसी राजदूत के इस बयान के तुरंत बाद ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन ने इस पर अपना विरोध जताया। उन्होंने कहा- जी-20 में की बैठक में पुतिन शामिल हों, अब यह बेहद मुश्किल है।

इस टकराव को देखते हुए इंडोनेशियाई मीडिया में कहा जा रहा है कि जी-20 की मेजबानी राष्ट्रपति विडोडो के लिए गले की हड्डी बनने जा रहा है। इससे वे तभी बच सकते हैं अगर पुतिन खुद इस बैठक में आने से मना कर दें। वरना, विडोडो को दो विरोधी पक्षों में से किसी एक का चुनाव करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, तो उनके लिए बेहद कठिन परीक्षा होगी।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने वेबसाइट एशिया टाइम्स से कहा है- ‘पुतिन का जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेना असंभव है। मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। सीधी बात है, ऐसा नहीं होगा।’

इंडोनेशिया ने नहीं की थी रूस की निंदा

यूक्रेन संकट को लेकर इंडोनेशिया का रुख नरम रहा है। बीते 24 फरवरी को यूक्रेन में रूसी सैनिक कार्रवाई शुरू होने के बाद जारी बयान में इंडोनेशिया ने इसे ‘अस्वीकार्य’ कहा था। लेकिन उसने इसकी निंदा नहीं की थी। इंडोनेशिया के रूस के साथ पारंपरिक रिश्ते रहे हैं। जी-20 के मेजबान के रूप में उसकी एक परेशानी यह भी है कि पुतिन को रोकने की कोशिश होने पर चीन भी बैठक में आने से मना कर सकता है। उस स्थिति में ये बैठक की अहमियत और घट जाएगी।

कुछ विशेषज्ञों ने इंडोनेशिया के रुख में अस्पष्टता का कारण देश की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी में मौजूद अमेरिका विरोधी भावना को भी माना है। इंडोनेशिया के मीडिया में भी आम तौर पर रूस के प्रति सहानुभूति देखने को मिली है। कई इंडोनेशियाई टीकाकारों ने यूक्रेन में भड़के युद्ध के लिए नाटो के विस्तार की कोशिशों को जिम्मेदार ठहराया है।

विस्तार

जी-20 देशों के अगले शिखर सम्मेलन के मेजबान इंडोनेशिया की मुश्किल बढ़ती जा रही है। रूस ने कुछ रोज पहले यह स्पष्ट कर दिया कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। जबकि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने यूक्रेन पर हमले के कारण रूस को जी-20 से निकालने का खुलेआम इरादा जताया है। उधर, चीन ने दो टूक कहा है कि किसी भी देश को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी अन्य देश को जी-20 से निकालने की बात करे।

इंडोनेशियाई अखबारों में छपी रिपोर्टों के मुताबिक इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो अभी भी ये भरोसा जता रहे हैं कि वे सभी जी-20 नेताओं को अगले शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए मना लेंगे। वे इस बात पर जोर डालेंगे कि यूक्रेन युद्ध को अलग रखते हुए शिखर सम्मेलन में सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर चर्चा हो। लेकिन विश्लेषकों ने विडोडो के इस भरोसे को उनका भोलापन बताया है।

पुतिन करेंगे आमंत्रण स्वीकार

जी-20 का गठन 1999 में हुआ था। तब से ऐसे हालत कभी पैदा नहीं हुए, जिससे किसी एक सदस्य देश की भागीदारी को लेकर आज जैसा विवाद खड़ा हुआ हो। जकार्ता स्थित रूसी राजदूत ने हाल में बताया कि पुतिन जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए इंडोनेशिया के आमंत्रण को स्वीकार करेंगे। उन्हें ये आमंत्रण जी-20 की रोम में हुई पिछली बैठक के दौरान दिया गया था। रूसी राजदूत के इस बयान के तुरंत बाद ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन ने इस पर अपना विरोध जताया। उन्होंने कहा- जी-20 में की बैठक में पुतिन शामिल हों, अब यह बेहद मुश्किल है।

इस टकराव को देखते हुए इंडोनेशियाई मीडिया में कहा जा रहा है कि जी-20 की मेजबानी राष्ट्रपति विडोडो के लिए गले की हड्डी बनने जा रहा है। इससे वे तभी बच सकते हैं अगर पुतिन खुद इस बैठक में आने से मना कर दें। वरना, विडोडो को दो विरोधी पक्षों में से किसी एक का चुनाव करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, तो उनके लिए बेहद कठिन परीक्षा होगी।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने वेबसाइट एशिया टाइम्स से कहा है- ‘पुतिन का जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेना असंभव है। मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। सीधी बात है, ऐसा नहीं होगा।’

इंडोनेशिया ने नहीं की थी रूस की निंदा

यूक्रेन संकट को लेकर इंडोनेशिया का रुख नरम रहा है। बीते 24 फरवरी को यूक्रेन में रूसी सैनिक कार्रवाई शुरू होने के बाद जारी बयान में इंडोनेशिया ने इसे ‘अस्वीकार्य’ कहा था। लेकिन उसने इसकी निंदा नहीं की थी। इंडोनेशिया के रूस के साथ पारंपरिक रिश्ते रहे हैं। जी-20 के मेजबान के रूप में उसकी एक परेशानी यह भी है कि पुतिन को रोकने की कोशिश होने पर चीन भी बैठक में आने से मना कर सकता है। उस स्थिति में ये बैठक की अहमियत और घट जाएगी।

कुछ विशेषज्ञों ने इंडोनेशिया के रुख में अस्पष्टता का कारण देश की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी में मौजूद अमेरिका विरोधी भावना को भी माना है। इंडोनेशिया के मीडिया में भी आम तौर पर रूस के प्रति सहानुभूति देखने को मिली है। कई इंडोनेशियाई टीकाकारों ने यूक्रेन में भड़के युद्ध के लिए नाटो के विस्तार की कोशिशों को जिम्मेदार ठहराया है।

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