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आर्थिक संकट: नेपाल के सामने भी हैं श्रीलंका जैसी गंभीर मुश्किलें? विदेशी मुद्रा भंडार में 16.2 प्रतिशत गिरावट

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडू
Published by: प्रांजुल श्रीवास्तव
Updated Wed, 13 Apr 2022 12:25 PM IST

सार

अर्थशास्त्री विश्वंभर प्यूकुरयाल ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘स्थिति चिंताजनक है। अगर हम अपनी एक चौथाई राष्ट्रीय आय को सिर्फ छह महीनों के आयात पर खर्च डालते हैं, तो हो सकता है कि उससे कारोबारी गतिविधियां कुछ बढ़ें, लेकिन लंबी अवधि में उससे आर्थिक विकास में रुकावट आती है।

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नेपाल में अब ये बात आम चर्चा में आ गई है कि गहरा रहे आर्थिक संकट के कारण नेपाल का हाल भी श्रीलंका जैसा हो सकता है। हालांकि, जानकारों का कहना है कि नेपाल में हालत अभी उतनी खराब नहीं है, इसके बावजूद दोनों देशों में कई समानताएं हैं। 

नेपाल में सबसे ज्यादा चिंता देश के बड़े आयात बिल को लेकर है। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि 2017-18 में ऐसा पहली बार हुआ था, जब नेपाल का आयात बिल एक खरब रुपये की सीमा पार गया था। लेकिन चालू वित्त वर्ष में सिर्फ पहले छह महीनों में ही नेपाल को उतनी रकम आयात बिल के रूप मे चुकानी पड़ी है।

1.16 खरब तक पहुंचा व्यापार घाटा
विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल में ज्यादा उपभोक्ता वस्तुओं का आयात बढ़ा है। यानी इसका संबंध मशीनरी या उपकरणों से नहीं है, जिनके आयात से अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ती है। आयात बिल बढ़ने का दूसरा कारण आयातित चीजों का महंगा होना है। अर्थशास्त्री विश्वंभर प्यूकुरयाल ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘स्थिति चिंताजनक है। अगर हम अपनी एक चौथाई राष्ट्रीय आय को सिर्फ छह महीनों के आयात पर खर्च डालते हैं, तो हो सकता है कि उससे कारोबारी गतिविधियां कुछ बढ़ें, लेकिन लंबी अवधि में उससे आर्थिक विकास में रुकावट आती है। देश का व्यापार घाटा 1.16 खरब रुपये तक पहुंच गया है। ये सभी चिंताजनक आंकड़े हैं।

विदेशी मुद्रा भंडार में 16.2 प्रतिशत गिरावट
विशेषज्ञों ने कहा है कि अगर आयात के अनुपात में निर्यात नहीं बढ़ रहा हो, तो विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ता है। नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार में फरवरी मध्य तक पिछले साल मध्य जुलाई की तुलना में 16.2 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी थी। पिछले साल मध्य जुलाई में नेपाल के पास 1.39 रुपये के बराबर विदेशी मुद्रा थी। विदेशों में रहने वाले नेपाली अपनी कमाई का जो हिस्सा अपने देश भेजते हैं, उसका नेपाल की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। नेपाली अर्थशास्त्री इस बात से चिंतित हैं, बाहर से आने वाली इस रकम में भी गिरावट आ रही है। इसके अलावा कोरोना महामारी की मार से ठप हुआ पर्यटन अभी भी पूरी तरह चालू नहीं हो सका है। हालांकि नेपाल आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है और विशेषज्ञ इसे उम्मीद की एक किरण के रूप में देख रहे हैं।

पर्यटन ठप होना सबसे बड़ा कारण 
अर्थशास्त्रियों ने ध्यान दिलाया है कि श्रीलंका में खड़े हुए संकट का सबसे बड़ा कारण कोरोना महामारी के दौरान पर्यटन का ठप हो जाना रहा है। नेपाल को भी इस समस्या से जूझना पड़ा है। इस ओर भी ध्यान खींचा जा रहा है कि श्रीलंका की तरह नेपाल भी आयात पर काफी निर्भर है। नेपाल में आयात की जाने वाली वस्तुओं में पेट्रोलियम, खाद्य पदार्थ, शक्कर, दाल, दवाएं और परिवहन उपकरण शामिल हैँ। यानी श्रीलंका की तरह नेपाल भी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है।

हाल में सरकार ने आयात को सीमित करने के कदम उठाए हैं। नेपाल राष्ट्र बैंक ने दस प्रकार की वस्तुओं के आयात को हतोत्साहित करने वाले कदमों की घोषणा पिछले दिसंबर में की थी। इसके बावजूद आयात बिल बढ़ा है। अर्थशास्त्रियों की चिंता का यही सबसे बड़ा पहलू है। श्रीलंका में पैदा हुए गंभीर हालत ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है।

विस्तार

नेपाल में अब ये बात आम चर्चा में आ गई है कि गहरा रहे आर्थिक संकट के कारण नेपाल का हाल भी श्रीलंका जैसा हो सकता है। हालांकि, जानकारों का कहना है कि नेपाल में हालत अभी उतनी खराब नहीं है, इसके बावजूद दोनों देशों में कई समानताएं हैं। 

नेपाल में सबसे ज्यादा चिंता देश के बड़े आयात बिल को लेकर है। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि 2017-18 में ऐसा पहली बार हुआ था, जब नेपाल का आयात बिल एक खरब रुपये की सीमा पार गया था। लेकिन चालू वित्त वर्ष में सिर्फ पहले छह महीनों में ही नेपाल को उतनी रकम आयात बिल के रूप मे चुकानी पड़ी है।

1.16 खरब तक पहुंचा व्यापार घाटा

विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल में ज्यादा उपभोक्ता वस्तुओं का आयात बढ़ा है। यानी इसका संबंध मशीनरी या उपकरणों से नहीं है, जिनके आयात से अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ती है। आयात बिल बढ़ने का दूसरा कारण आयातित चीजों का महंगा होना है। अर्थशास्त्री विश्वंभर प्यूकुरयाल ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘स्थिति चिंताजनक है। अगर हम अपनी एक चौथाई राष्ट्रीय आय को सिर्फ छह महीनों के आयात पर खर्च डालते हैं, तो हो सकता है कि उससे कारोबारी गतिविधियां कुछ बढ़ें, लेकिन लंबी अवधि में उससे आर्थिक विकास में रुकावट आती है। देश का व्यापार घाटा 1.16 खरब रुपये तक पहुंच गया है। ये सभी चिंताजनक आंकड़े हैं।

विदेशी मुद्रा भंडार में 16.2 प्रतिशत गिरावट

विशेषज्ञों ने कहा है कि अगर आयात के अनुपात में निर्यात नहीं बढ़ रहा हो, तो विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ता है। नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार में फरवरी मध्य तक पिछले साल मध्य जुलाई की तुलना में 16.2 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी थी। पिछले साल मध्य जुलाई में नेपाल के पास 1.39 रुपये के बराबर विदेशी मुद्रा थी। विदेशों में रहने वाले नेपाली अपनी कमाई का जो हिस्सा अपने देश भेजते हैं, उसका नेपाल की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। नेपाली अर्थशास्त्री इस बात से चिंतित हैं, बाहर से आने वाली इस रकम में भी गिरावट आ रही है। इसके अलावा कोरोना महामारी की मार से ठप हुआ पर्यटन अभी भी पूरी तरह चालू नहीं हो सका है। हालांकि नेपाल आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है और विशेषज्ञ इसे उम्मीद की एक किरण के रूप में देख रहे हैं।

पर्यटन ठप होना सबसे बड़ा कारण 

अर्थशास्त्रियों ने ध्यान दिलाया है कि श्रीलंका में खड़े हुए संकट का सबसे बड़ा कारण कोरोना महामारी के दौरान पर्यटन का ठप हो जाना रहा है। नेपाल को भी इस समस्या से जूझना पड़ा है। इस ओर भी ध्यान खींचा जा रहा है कि श्रीलंका की तरह नेपाल भी आयात पर काफी निर्भर है। नेपाल में आयात की जाने वाली वस्तुओं में पेट्रोलियम, खाद्य पदार्थ, शक्कर, दाल, दवाएं और परिवहन उपकरण शामिल हैँ। यानी श्रीलंका की तरह नेपाल भी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है।

हाल में सरकार ने आयात को सीमित करने के कदम उठाए हैं। नेपाल राष्ट्र बैंक ने दस प्रकार की वस्तुओं के आयात को हतोत्साहित करने वाले कदमों की घोषणा पिछले दिसंबर में की थी। इसके बावजूद आयात बिल बढ़ा है। अर्थशास्त्रियों की चिंता का यही सबसे बड़ा पहलू है। श्रीलंका में पैदा हुए गंभीर हालत ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है।

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