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अमेरिका की मुश्किलें अनंत: सऊदी अरब और यूएई से टूटने के कगार पर है रिश्ता

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वाशिंगटन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 05 Apr 2022 06:36 PM IST

सार

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के कुछ दिन बाद ही राष्ट्रपति बाइडन ने सऊदी अरब और यूएई के शासकों से संपर्क करने की कोशिश की थी। लेकिन उन दोनों ने उनसे बात करने से इनकार कर दिया था। तब इसे एक अभूतपूर्व घटना बताया गया था। उसके बाद ऐसी खबरें आती रही हैं कि रूस के लोग बड़े पैमाने पर यूएई में अपना पैसा लगा रहे हैं…

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अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों में कच्चे तेल की तेजी से बढ़ रही महंगाई से निपटने के लिए राष्ट्रपति जो बाइडन ने अमेरिका के स्ट्रेटेजिक रिजर्व से अभूतपूर्व मात्रा में तेल जारी करने का फैसला किया है। लेकिन जानकारों ने इसे बाइडन प्रशासन की कूटनीतिक नाकामी का एक और संकेत माना है। उनके मुताबिक अमेरिका अपने दो खास सहयोगी देशों- सऊदी अरब और यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) को तेल का अधिक उत्पादन करने के लिए राजी करने में नाकाम रहा। उसके बाद बाइडन को अपने भंडार में मौजूद तेल को बाजार में लाने का फैसला करना पड़ा।

पिछले कई हफ्तों से ये खबर चर्चित रही है कि सऊदी अरब और यूएई ने तेल का उत्पादन बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया है। ब्रिटिश अखबार द गार्जियन के पश्चिम एशिया संवाददाता मार्टिन चुलोव ने अपने एक विश्लेषण में लिखा है- ‘यूक्रेन में पांच हफ्तों से चल रहे युद्ध के कारण दुनिया के कई हिस्सों में तनाव पैदा हुआ है। लेकिन मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) में क्षेत्रीय व्यवस्था जितने दबाव में है, उतना और कहीं नहीं है। इस क्षेत्र में अमेरिका के दो सबसे बड़े सहयोगी देश अब अमेरिका के साथ अपने संबंधों की बुनियाद पर सवाल उठा रहे हैं।’

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के कुछ दिन बाद ही राष्ट्रपति बाइडन ने सऊदी अरब और यूएई के शासकों से संपर्क करने की कोशिश की थी। लेकिन उन दोनों ने उनसे बात करने से इनकार कर दिया था। तब इसे एक अभूतपूर्व घटना बताया गया था। उसके बाद ऐसी खबरें आती रही हैं कि रूस के लोग बड़े पैमाने पर यूएई में अपना पैसा लगा रहे हैं। इसे भी अमेरिका के लिए एक झटका समझा गया है, जो इस समय रूस को अलग-थलग करने में जुटा हुआ है।

एक पश्चिमी कूटनीतिज्ञ ने सऊदी कूटनीतिज्ञों से हुई अपनी बातचीत के बारे में द गार्जियन को बताया। उसने कहा- ‘वे राय जताते हैं कि यह न सिर्फ बाइडन, बल्कि अमेरिका के साथ उनका संबंध विच्छेद है।’ उधर सऊदी अरब के जाने-माने टीकाकारों ने भी ऐसी ही राय जताई है। अल-अरेबिया अखबार के पूर्व प्रधान संपादक मोहम्मद अल-याह्या ने अपनी राय इजराइल के अखबार यरुशलम पोस्ट में लिखे एक लेख में जताई। सऊदी टीकाकार इजराइल के अखबार में ऐसी बातें लिखे, इसे भी एक असमान्य घटना माना गया है।

अल-याह्या ने लिखा है- ‘सऊदी- अमेरिका संबंध संकटग्रस्त हैं। अमेरिका में होने वाली चर्चा में यथार्थ को स्वीकार न करने की प्रवृत्ति देख कर मुझे परेशानी होती है। उन चर्चाओं मे शामिल लोग यह समझने में नाकाम हैं कि दरार कितनी चौड़ी और गंभीर हो चुकी है।’ उन्होंने कहा- ‘अधिक यथार्थवादी चर्चा में ध्यान सिर्फ इस एक शब्द पर केंद्रित होगा- तलाक।’

यूएई से अमेरिका की संबंधों की चर्चा करते हुए राजनीति शास्त्री अब्दुल खलक अब्दुल्ला ने लेबनान के एक अखबार में लिखा है कि ये संबंध 50 साल के सबसे खराब दौर में हैं। अन्नाहार नाम के इस अखबार में उन्होंने लिखा है- ‘अमेरिका और यूएई के संबंध चौराहे पर हैं। यह स्पष्ट है कि गलतफहमियों को दूर करने की जिम्मेदारी बाइडन प्रशासन पर है, जो अपने एक क्षेत्रीय सहयोगी को खोने के कगार पर पहुंच गया है।’

विस्तार

अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों में कच्चे तेल की तेजी से बढ़ रही महंगाई से निपटने के लिए राष्ट्रपति जो बाइडन ने अमेरिका के स्ट्रेटेजिक रिजर्व से अभूतपूर्व मात्रा में तेल जारी करने का फैसला किया है। लेकिन जानकारों ने इसे बाइडन प्रशासन की कूटनीतिक नाकामी का एक और संकेत माना है। उनके मुताबिक अमेरिका अपने दो खास सहयोगी देशों- सऊदी अरब और यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) को तेल का अधिक उत्पादन करने के लिए राजी करने में नाकाम रहा। उसके बाद बाइडन को अपने भंडार में मौजूद तेल को बाजार में लाने का फैसला करना पड़ा।

पिछले कई हफ्तों से ये खबर चर्चित रही है कि सऊदी अरब और यूएई ने तेल का उत्पादन बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया है। ब्रिटिश अखबार द गार्जियन के पश्चिम एशिया संवाददाता मार्टिन चुलोव ने अपने एक विश्लेषण में लिखा है- ‘यूक्रेन में पांच हफ्तों से चल रहे युद्ध के कारण दुनिया के कई हिस्सों में तनाव पैदा हुआ है। लेकिन मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) में क्षेत्रीय व्यवस्था जितने दबाव में है, उतना और कहीं नहीं है। इस क्षेत्र में अमेरिका के दो सबसे बड़े सहयोगी देश अब अमेरिका के साथ अपने संबंधों की बुनियाद पर सवाल उठा रहे हैं।’

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के कुछ दिन बाद ही राष्ट्रपति बाइडन ने सऊदी अरब और यूएई के शासकों से संपर्क करने की कोशिश की थी। लेकिन उन दोनों ने उनसे बात करने से इनकार कर दिया था। तब इसे एक अभूतपूर्व घटना बताया गया था। उसके बाद ऐसी खबरें आती रही हैं कि रूस के लोग बड़े पैमाने पर यूएई में अपना पैसा लगा रहे हैं। इसे भी अमेरिका के लिए एक झटका समझा गया है, जो इस समय रूस को अलग-थलग करने में जुटा हुआ है।

एक पश्चिमी कूटनीतिज्ञ ने सऊदी कूटनीतिज्ञों से हुई अपनी बातचीत के बारे में द गार्जियन को बताया। उसने कहा- ‘वे राय जताते हैं कि यह न सिर्फ बाइडन, बल्कि अमेरिका के साथ उनका संबंध विच्छेद है।’ उधर सऊदी अरब के जाने-माने टीकाकारों ने भी ऐसी ही राय जताई है। अल-अरेबिया अखबार के पूर्व प्रधान संपादक मोहम्मद अल-याह्या ने अपनी राय इजराइल के अखबार यरुशलम पोस्ट में लिखे एक लेख में जताई। सऊदी टीकाकार इजराइल के अखबार में ऐसी बातें लिखे, इसे भी एक असमान्य घटना माना गया है।

अल-याह्या ने लिखा है- ‘सऊदी- अमेरिका संबंध संकटग्रस्त हैं। अमेरिका में होने वाली चर्चा में यथार्थ को स्वीकार न करने की प्रवृत्ति देख कर मुझे परेशानी होती है। उन चर्चाओं मे शामिल लोग यह समझने में नाकाम हैं कि दरार कितनी चौड़ी और गंभीर हो चुकी है।’ उन्होंने कहा- ‘अधिक यथार्थवादी चर्चा में ध्यान सिर्फ इस एक शब्द पर केंद्रित होगा- तलाक।’

यूएई से अमेरिका की संबंधों की चर्चा करते हुए राजनीति शास्त्री अब्दुल खलक अब्दुल्ला ने लेबनान के एक अखबार में लिखा है कि ये संबंध 50 साल के सबसे खराब दौर में हैं। अन्नाहार नाम के इस अखबार में उन्होंने लिखा है- ‘अमेरिका और यूएई के संबंध चौराहे पर हैं। यह स्पष्ट है कि गलतफहमियों को दूर करने की जिम्मेदारी बाइडन प्रशासन पर है, जो अपने एक क्षेत्रीय सहयोगी को खोने के कगार पर पहुंच गया है।’

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