क्षेत्रीय और कबीलाई लड़ाके इसे मजबूती दे रहे हैं। इनकी संख्या 10,000 से 30,000 के बीच आंकी जा रही है। इसे नॉर्दर्न एलायंस के फिर से उठ खड़े होने के तौर पर देखा जा रहा है और नेशनल रेसिस्टेंस फोर्स (एनआरएफ) नाम दिया गया है।
इसका नेतृत्व पंजशीर के शेर कहे जाने वाले मोहम्मद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद सहित कई तालिबान और पाकिस्तान विरोधी नेता व सैन्य अधिकारी कर रहे हैं। फिलहाल एनआरएफ की संख्या करीब 80,000 तालिबानी आतंकियों के सैन्य बल के सामने कम है, लेकिन भौगोलिक बनावट की वजह से पंजशीर को अविजित मोर्चा माना जा रहा है। ऐतिहासिक तौर पर भी मोहम्मद शाह मसूद जैसे योद्धाओं वाले राज्य की छवि के चलते एनआरएफ के सैनिकों का मनोबल बेहद बढ़ा हुआ है। अफगानिस्तान के इतिहास में पंजशीर घाटी को बेहद खास दर्जा हासिल है। इसे न सोवियत टैंक कुचल सके, न तालिबानियों का आतंक अपने कब्जे में ले पाया।
नया मोर्चा हो रहा शक्तिशाली
शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और वली मसूद ने तालिबानियों के खिलाफ जो नया मोर्चा खड़ा किया उसमें अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति और शाह मसूद के पूर्व साथी अमरुल्लाह सालेह भी शामिल हो चुके हैं। उन्होंने खुद को कार्यकारी अफगान राष्ट्रपति घोषित किया। पूर्व रक्षामंत्री बिस्मिल्लाह मोहम्मदी भी एनआरएफ से जुड़ गए हैं।
एनआरएफ द्वारा तालिबानियों के ताजा हमले को विफल करते हुए उनके 300 आतंकियों को मारने का दावा किया जा रहा है। काबुल से सिर्फ 150 किलोमीटर दूर मौजूद पंजशीर में अपनी ऐसी हालात होती देख तालिबान तिलमिलाया हुआ है। उसके प्रवक्ता ट्विटर पर 2 दिन पहले चार घन्टे में पंजशीर पर कब्जा करने की धमकी देने के बाद अब कई तरह की सच-झूठ की मिलावटी खबरें फैला रहे हैं। कभी दावा किया जा रहा है कि अहमद मसूद उनसे समर्पण के लिए बातचीत कर रहे हैं तो कभी कहा जा रहा है कि एनआरएफ में एक हज़ार से भी कम सैनिक हैं और तालिबान जब चाहे उन्हें पराजित कर सकता है।
एनआरएफ से जुड़े कई सोशल मीडिया अकाउंट नए सैनिकों, सैन्य साजोसामान, हथियारों और ताजिकिस्तान से लड़ाकू हेलिकॉप्टरों की सप्लाई का दावा तस्वीरों के साथ कर रहे हैं।
सात जिले और 1.73 लाख की आबादी
पंजशीर यानी 5 शेरों की घाटी। सिर्फ 1.73 लाख की आबादी वाले इस राज्य में 7 जिले हैं। अधिकतर लोग स्थानीय ताजिक समुदाय के हैं। बहुत से गांवों में आज भी बिजली-पानी नहीं है।
कौन हैं वो सैनिक, जो एनआरएफ से जुड़ रहे
एनआरएफ में बड़ी संख्या में अफगानिस्तान की सेना के ऐसे सैनिक हैं, जिन्होंने तालिबानी आतंकियों के आगे आत्मसमर्पण नहीं करने का निर्णय लिया। ट्विटर पर ऐसे भी वीडियो सामने आए जिनमें अफगान सैनिक अपने वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों द्वारा तालिबानियों के सामने आत्मसमर्पण करने के निर्णय का विरोध करते दिख रहे हैं। वहीं, एनआरएफ में एक बड़ी संख्या क्षेत्रीय जनजातीय लोगों की भी है।
नागरिक सेना का समर्थन : पूर्व उपराष्ट्रपति मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम के बेटे यार मोहम्मद ने कुछ दिन पहले अपने राज्य जॉशजान में एक छोटी नागरिक सेना बना आतंकियों से मुकाबला किया था। अब उनके जैसी कई छोटी-छोटी नागरिक सेनाएं भी एनआरएफ का हिस्सा बन रही है।
मजबूत मोर्चा…सोवियत भी न कर सके कब्जा