हेमंत रस्तोगी, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ओम. प्रकाश
Updated Mon, 30 Aug 2021 12:18 PM IST
टोक्यो पैरालंपिक में ऊंची कूद में रजत पदक जीतने वाले निशाद कुमार ने कहा कि मां ने उन्हें खिलाड़ी बनाया और उन्ही के गले में पदक डालूंगा। निशाद ने 29 अगस्त को पैरालंपिक में इतिहास रचते हुए सिल्वर मेडल जीता था।
निशाद बमुश्किल अपनी भावनाओं पर काबू रख पा रहे थे। रजत जीतने के बाद सबसे पहला धन्यवाद उन्होंने अपनी मां पुष्पा देवी को दिया। 2007 में घास काटने वाली मशीन से उनका हाथ कट गया था, लेकिन यह मां थीं जिन्होंने निशाद को कभी खेलने से नहीं रोका। निशाद टोक्यो से अमर उजाला से कहा कि यह पदक मां के गले में डाल देंगे। राष्ट्रीय खेल दिवस पर जीता यह पदक उनको और सभी देशवासियों को समर्पित है। मां ने हाथ कटा होने के बावजूद कभी उन्हें अहसास नहीं होने दिया कि वह दिव्यांग हैं। वह उन्हें खेलने के लिए प्रेरित करती थीं। उनके मन से यह डर भी निकाल दिया था कि उन्हें खेलने से चोट लगेगी। वह मां की वजह से ही खिलाड़ी बनें।
माता-पिता ने कर्ज लेकर कराई ट्रेनिंग
हिमाचल प्रदेश के अंब के बदाऊं कस्बे के छह फुट चार इंच लंबे निशाद को याद है जब स्कूल में उनकी लंबाई की वजह से अध्यापक ने ऊंची कूूद अपनाने को कहा। जब वह 2017 में अच्छी ट्रेनिंग के लिए पंचकूला जा रहे थे तो खेतों में मजदूरी करने वाली उनके माता-पिता ने सिर्फ 2500 रुपये देकर उन्हें भेजा था। उन्हें बाद में पता लगा कि उनकी तैयारियों के लिए माता-पिता ने लोगों से और बैंक से कर्ज लिया। उन्हें कभी इस बारे में नहीं बताया। बाईस वर्षीय निशाद चाहते हैं कि इस पदक के बाद उनकी सरकारी नौकरी लग जाए। वह मां को सरकारी नौकरी का तोहफा देना चाहते हैं। फिलहाल वह जालंधर के नजदीक लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं।
मरियप्पन के स्वर्ण से पैरा एथलेटिक्स का पता लगा
निशाद को 2016 तक पैरा खेलों के बारे में पता तक नहीं था। वह 2018 तक आम एथलीटों के साथ स्पर्धा में शिरकत करते रहे। रियो पैरालंपिक में जब टी मरियप्पन और वरुण भाटी ने ऊंची कूद में पदक जीते तो गांववालों ने उनसे कहा कि वह भी इसमें किस्मत आजमा सकते हैं। इसके बाद ही उन्होंने पैरा एथलेटिक्स को अपनाया। वह आम एथलीटों के स्कूल नेशनल में 10वें स्थान पर रहे थे।
विस्तार
निशाद बमुश्किल अपनी भावनाओं पर काबू रख पा रहे थे। रजत जीतने के बाद सबसे पहला धन्यवाद उन्होंने अपनी मां पुष्पा देवी को दिया। 2007 में घास काटने वाली मशीन से उनका हाथ कट गया था, लेकिन यह मां थीं जिन्होंने निशाद को कभी खेलने से नहीं रोका। निशाद टोक्यो से अमर उजाला से कहा कि यह पदक मां के गले में डाल देंगे। राष्ट्रीय खेल दिवस पर जीता यह पदक उनको और सभी देशवासियों को समर्पित है। मां ने हाथ कटा होने के बावजूद कभी उन्हें अहसास नहीं होने दिया कि वह दिव्यांग हैं। वह उन्हें खेलने के लिए प्रेरित करती थीं। उनके मन से यह डर भी निकाल दिया था कि उन्हें खेलने से चोट लगेगी। वह मां की वजह से ही खिलाड़ी बनें।
माता-पिता ने कर्ज लेकर कराई ट्रेनिंग
हिमाचल प्रदेश के अंब के बदाऊं कस्बे के छह फुट चार इंच लंबे निशाद को याद है जब स्कूल में उनकी लंबाई की वजह से अध्यापक ने ऊंची कूूद अपनाने को कहा। जब वह 2017 में अच्छी ट्रेनिंग के लिए पंचकूला जा रहे थे तो खेतों में मजदूरी करने वाली उनके माता-पिता ने सिर्फ 2500 रुपये देकर उन्हें भेजा था। उन्हें बाद में पता लगा कि उनकी तैयारियों के लिए माता-पिता ने लोगों से और बैंक से कर्ज लिया। उन्हें कभी इस बारे में नहीं बताया। बाईस वर्षीय निशाद चाहते हैं कि इस पदक के बाद उनकी सरकारी नौकरी लग जाए। वह मां को सरकारी नौकरी का तोहफा देना चाहते हैं। फिलहाल वह जालंधर के नजदीक लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं।
मरियप्पन के स्वर्ण से पैरा एथलेटिक्स का पता लगा
निशाद को 2016 तक पैरा खेलों के बारे में पता तक नहीं था। वह 2018 तक आम एथलीटों के साथ स्पर्धा में शिरकत करते रहे। रियो पैरालंपिक में जब टी मरियप्पन और वरुण भाटी ने ऊंची कूद में पदक जीते तो गांववालों ने उनसे कहा कि वह भी इसमें किस्मत आजमा सकते हैं। इसके बाद ही उन्होंने पैरा एथलेटिक्स को अपनाया। वह आम एथलीटों के स्कूल नेशनल में 10वें स्थान पर रहे थे।