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Salaried Class Disappointed: बजट 2022 पर नौकरीपेशा वर्ग ने निकाली भड़ास, आठ साल का इंतजार नहीं हो सका खत्म

Salaried Class Disappointed: बजट 2022 पर नौकरीपेशा वर्ग ने निकाली भड़ास, आठ साल का इंतजार नहीं हो सका खत्म

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: दीपक चतुर्वेदी
Updated Tue, 08 Feb 2022 01:47 PM IST

सार

Salaried Class No Relief From Eight Years: उम्मीद थी कि केंद्र सरकार बजट 2022 में नौकरीपेशा वर्ग के लिए मौजूदा स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट को 30 से 35 फीसदी तक बढ़ा सकती है। इसी तरह स्लैब्स में भी बदलाव होने की उम्मीद थी, जिसमें 2014 के बाद से कोई बदलाव नहीं किया गया, लेकिन इन उम्मीदों पर बजट के दिन पानी फिर गया और नौकरीपेशा का आठ साल का इंतजार और आगे बढ़ गया।
 

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इस महीने की शुरुआत में 1 फरवरी 2022 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2022-23 के लिए देश का आम बजट पेश किया था। इस बजट में सरकार ने अर्थव्यवस्था में मजबूती और लाखों रोजगार जैसे तमाम बड़े एलान किए। लेकिन, हर बार की तरह आस लगाए बैठे नौकरीपेशा वर्ग को इस बर भी मायूसी ही हाथ लगी। उन्हों टैक्स पर छूट मिलने की भी उम्मीद थी, जो कि पूरी नहीं हो सकी।  

उम्मीदों पर बजट के दिन फिरा पानी
उम्मीद थी कि केंद्र सरकार बजट में नौकरीपेशा और पेंशनर्स के लिए मौजूदा स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट को 30 से 35 फीसदी तक बढ़ा सकती है। इसी तरह स्लैब्स में भी बदलाव होने की उम्मीद थी, जिसे 2014 के बाद से बदला नहीं गया, लेकिन इन उम्मीदों पर बजट के दिन पानी फिर गया और नौकरीपेशा का आठ साल का इंतजार और आगे बढ़ गया। हम आपको बता रहे हैं कि साल 2014 की तुलना से देश के नौकरीपेशा को ध्यान में रखकर आखिर सरकार ने क्या कदम उठाए या इस वर्ग को किस-किस स्तर पर राहत दी। जो साफ बयां कर रही है कि नौकरीपेशा को बीते आठ सालों में हर मोर्चे पर सिर्फ और सिर्फ निराशा ही हाथ लगी है। 

टैक्स स्लैब में बदलाव न होने से नाराजगी
नौकरीपेशा आम लोगों को इस बजट से सबसे बड़ी उम्मीद ये थी कि वित्त मंत्री आयकर स्लैब में बदलाव की घोषणा करेंगी, लेकिन इस बारे में कोई नई घोषणा नहीं की गई। सरकार ने आयकर स्लैब को इस बार भी यथावत रखा। इसके अलावा स्टैंडर्ड डिडक्शन को 50 हजार रुपये से बढ़ाकर महंगाई के साथ एडजस्ट किए जाने की उम्मीद पर भी सरकार ने चुप्पी साध ली। 2014 में आखिरी बार टैक्स स्लैब में बदलाव किए जाने के बाद से नौकरीपेशा को रोजमर्रा में उपयोग होने वाली चीजों से लेकर बचत तक पर कोई लाभ नहीं दिया गया। गाड़ी में पेट्रोल-डीजल भराना हो, दूध से लेकर सोने-चांदी तक के दाम और जीएसटी या अन्य कर सभी में बढ़ोतरी की गई है। लेकिन राहत के नाम पर इन आठ सालों में नौकरीपेशा को कोई फायदा नहीं दिया गया है। 

2014 से 2022 तक ऐसे बढ़ा बोझ  
आंकड़ों को देखें तो इन आठ सालों के दौरान नौकरीपेशा वर्ग के ऊपर बोझ बढ़ा ही है, सरकार की ओर से इन्हें कोई भी राहत नहीं दी गई है। जहां एक ओर पेट्रोल 2014 में 66 रुपये प्रति लीटर था, जो अब 2022 में 109 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है। डीजल का दाम आठ साल पहले 50 रुपये प्रति लीटर था, जो अब 95 रुपये प्रति लीटर के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। यानी नौकरीपेशा के लिए नौकरी करने के लिए आना-जाना भी महंगा ही किया गया। यही नहीं इसके अलावा, 2014 में दूध 36 रुपये लीटर बिकता था, जो अब 60 रुपये प्रति लीटर से भी ज्यादा के भाव पर आ गया है। सोने की बात करें तो उस समय सोने का दाम 28 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम था, जो 2022 में बढ़कर 50 हजार रुपये पर आ पहुंचा है। कर के मोर्चे पर भी इस वर्ग पर बोझ में बड़ा इजाफा हुआ है। 2014 में सर्विस टैक्स/जीएसटी 12.38 फीसदी था जो कि 2022 तक आते-आते 28 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया है। 

नौकरीपेशा वर्ग ने निकाली भड़ास
नौकरीपेशा वर्ग के लिए आयकर छूट सीमा 2014 में 2.5 लाख रुपये तय की गई थी, जो अभी भी जस की तस बनी हुई है। इसके अलावा 80सी के तहत छूट की सीमा 1.5 लाख रुपये पर ही यथावत है। बजट 2022 के बाद नौकरीपेशा वर्ग ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा है कि जैसे-जैसे सरकार ने साल-दर-साल पेट्रोल-डीजल से लेकर दूध और जीएसटी तक में बढ़ोतरी की है तो क्या आयकर स्लैब और 80सी की छूट सीमा को यथावत रखना क्या वेतनभोगियों के लिए ठीक है। उन्होंने कहा कि सरकार ने सिर्फ बोझ बढ़ाने का काम किया है, राहत देने के नाम पर इस वर्ग के साथ सिर्फ छलावा किया गया है। इस वर्ग ने अपनी आवाज बुलंद करने का आह्वान भी किया है, जिससे सरकार के कानों तक जूं रेंगे और उसकी तरफ से कोई राहत भरी घोषणा की जा सके। 

विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा 
कांग्रेस ने आम बजट पेश होने के बाद आरोप लगाया कि सरकार ने देश के वेतनभोगी वर्ग को राहत नहीं देकर उनके साथ विश्वासघात किया है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तो ट्वीट कर कह दिया कि भारत का वेतनभोगी वर्ग सैलरी में चौतरफा कटौती और कमरतोड़ महंगाई के इस दौर में राहत की उम्मीद कर रहा था। वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री ने एक बार फिर से अपने प्रत्यक्ष कर से संबंधित कदमों से इन वर्गों को बहुत निराश किया है। इसके अलावा राहुल गांधी ने भी नौकरीपेशा के हाथ कुछ न लगने के मुद्दे पर मोदी सरकार के बजट को जीरो बजट कहकर संबोधित किया था। वहीं आयकर स्लैब को स्थिर रखने के मामले में वित्त मंत्री ने कहा था कि उन्होंने नौकरीपेशा लोगों पर प्रधानमंत्री के आदेश के मुताबिक, कोई अतिरिक्त भार नहीं डाला है।  

विस्तार

इस महीने की शुरुआत में 1 फरवरी 2022 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2022-23 के लिए देश का आम बजट पेश किया था। इस बजट में सरकार ने अर्थव्यवस्था में मजबूती और लाखों रोजगार जैसे तमाम बड़े एलान किए। लेकिन, हर बार की तरह आस लगाए बैठे नौकरीपेशा वर्ग को इस बर भी मायूसी ही हाथ लगी। उन्हों टैक्स पर छूट मिलने की भी उम्मीद थी, जो कि पूरी नहीं हो सकी।  

उम्मीदों पर बजट के दिन फिरा पानी

उम्मीद थी कि केंद्र सरकार बजट में नौकरीपेशा और पेंशनर्स के लिए मौजूदा स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट को 30 से 35 फीसदी तक बढ़ा सकती है। इसी तरह स्लैब्स में भी बदलाव होने की उम्मीद थी, जिसे 2014 के बाद से बदला नहीं गया, लेकिन इन उम्मीदों पर बजट के दिन पानी फिर गया और नौकरीपेशा का आठ साल का इंतजार और आगे बढ़ गया। हम आपको बता रहे हैं कि साल 2014 की तुलना से देश के नौकरीपेशा को ध्यान में रखकर आखिर सरकार ने क्या कदम उठाए या इस वर्ग को किस-किस स्तर पर राहत दी। जो साफ बयां कर रही है कि नौकरीपेशा को बीते आठ सालों में हर मोर्चे पर सिर्फ और सिर्फ निराशा ही हाथ लगी है। 

टैक्स स्लैब में बदलाव न होने से नाराजगी

नौकरीपेशा आम लोगों को इस बजट से सबसे बड़ी उम्मीद ये थी कि वित्त मंत्री आयकर स्लैब में बदलाव की घोषणा करेंगी, लेकिन इस बारे में कोई नई घोषणा नहीं की गई। सरकार ने आयकर स्लैब को इस बार भी यथावत रखा। इसके अलावा स्टैंडर्ड डिडक्शन को 50 हजार रुपये से बढ़ाकर महंगाई के साथ एडजस्ट किए जाने की उम्मीद पर भी सरकार ने चुप्पी साध ली। 2014 में आखिरी बार टैक्स स्लैब में बदलाव किए जाने के बाद से नौकरीपेशा को रोजमर्रा में उपयोग होने वाली चीजों से लेकर बचत तक पर कोई लाभ नहीं दिया गया। गाड़ी में पेट्रोल-डीजल भराना हो, दूध से लेकर सोने-चांदी तक के दाम और जीएसटी या अन्य कर सभी में बढ़ोतरी की गई है। लेकिन राहत के नाम पर इन आठ सालों में नौकरीपेशा को कोई फायदा नहीं दिया गया है। 

2014 से 2022 तक ऐसे बढ़ा बोझ  

आंकड़ों को देखें तो इन आठ सालों के दौरान नौकरीपेशा वर्ग के ऊपर बोझ बढ़ा ही है, सरकार की ओर से इन्हें कोई भी राहत नहीं दी गई है। जहां एक ओर पेट्रोल 2014 में 66 रुपये प्रति लीटर था, जो अब 2022 में 109 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है। डीजल का दाम आठ साल पहले 50 रुपये प्रति लीटर था, जो अब 95 रुपये प्रति लीटर के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। यानी नौकरीपेशा के लिए नौकरी करने के लिए आना-जाना भी महंगा ही किया गया। यही नहीं इसके अलावा, 2014 में दूध 36 रुपये लीटर बिकता था, जो अब 60 रुपये प्रति लीटर से भी ज्यादा के भाव पर आ गया है। सोने की बात करें तो उस समय सोने का दाम 28 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम था, जो 2022 में बढ़कर 50 हजार रुपये पर आ पहुंचा है। कर के मोर्चे पर भी इस वर्ग पर बोझ में बड़ा इजाफा हुआ है। 2014 में सर्विस टैक्स/जीएसटी 12.38 फीसदी था जो कि 2022 तक आते-आते 28 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया है। 

नौकरीपेशा वर्ग ने निकाली भड़ास

नौकरीपेशा वर्ग के लिए आयकर छूट सीमा 2014 में 2.5 लाख रुपये तय की गई थी, जो अभी भी जस की तस बनी हुई है। इसके अलावा 80सी के तहत छूट की सीमा 1.5 लाख रुपये पर ही यथावत है। बजट 2022 के बाद नौकरीपेशा वर्ग ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा है कि जैसे-जैसे सरकार ने साल-दर-साल पेट्रोल-डीजल से लेकर दूध और जीएसटी तक में बढ़ोतरी की है तो क्या आयकर स्लैब और 80सी की छूट सीमा को यथावत रखना क्या वेतनभोगियों के लिए ठीक है। उन्होंने कहा कि सरकार ने सिर्फ बोझ बढ़ाने का काम किया है, राहत देने के नाम पर इस वर्ग के साथ सिर्फ छलावा किया गया है। इस वर्ग ने अपनी आवाज बुलंद करने का आह्वान भी किया है, जिससे सरकार के कानों तक जूं रेंगे और उसकी तरफ से कोई राहत भरी घोषणा की जा सके। 

विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा 

कांग्रेस ने आम बजट पेश होने के बाद आरोप लगाया कि सरकार ने देश के वेतनभोगी वर्ग को राहत नहीं देकर उनके साथ विश्वासघात किया है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तो ट्वीट कर कह दिया कि भारत का वेतनभोगी वर्ग सैलरी में चौतरफा कटौती और कमरतोड़ महंगाई के इस दौर में राहत की उम्मीद कर रहा था। वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री ने एक बार फिर से अपने प्रत्यक्ष कर से संबंधित कदमों से इन वर्गों को बहुत निराश किया है। इसके अलावा राहुल गांधी ने भी नौकरीपेशा के हाथ कुछ न लगने के मुद्दे पर मोदी सरकार के बजट को जीरो बजट कहकर संबोधित किया था। वहीं आयकर स्लैब को स्थिर रखने के मामले में वित्त मंत्री ने कहा था कि उन्होंने नौकरीपेशा लोगों पर प्रधानमंत्री के आदेश के मुताबिक, कोई अतिरिक्त भार नहीं डाला है।  

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