वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ब्रसेल्स
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 07 Apr 2022 05:52 PM IST
सार
जानकारों का कहना है कि अपनी इसी चिंता के कारण नाटो ने जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ संपर्क बढ़ाने का फैसला किया है। नाटो की राय है कि चीन के उदय से वैश्विक सुरक्षा का मानचित्र बदल गया है। इसलिए अब उसके खिलाफ लामबंदी की नई रणनीति बनानी होगी…
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के नेता यह महसूस कर रहे है कि यूक्रेन युद्ध के मामले में रूस को अलग-थलग करने की उनकी कोशिश उस हद तक कामयाब नहीं हुई है, जिसकी उम्मीद उन्होंने की थी। इसलिए नाटो विदेश मंत्रियों ने इसी हफ्ते एशिया-प्रशांत क्षेत्र के अपने सहयोगी देशों के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक करने का फैसला किया है। इस बैठक के जरिए उनकी कोशिश रूस विरोधी लामबंदी में अधिक भूमिका निभाने के लिए उन देशों को राजी करने की होगी।
सहयोगी देश होंगे शामिल
बताया गया है कि नाटो विदेश मंत्रियों के साथ इस बैठक में जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के विदेश मंत्री शामिल होंगे। इसके अलावा यूक्रेन के विदेश मंत्री भी इस बैठक में मौजूद रहेंगे। बैठक में यूक्रेन के इस अनुरोध पर भी चर्चा होगी कि उसे और अधिक मदद की जरूरत है। नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने मंगलवार को संवाददाताओं से बातचीत में यूक्रेन में रूसी सेना के व्यवहार की कड़ी आलोचना की। उन्होंन कहा- नागरिकों को निशाना बनाना और उनकी हत्या करना युद्ध अपराध है।
यहां मिली जानकारी के मुताबिक प्रस्तावित बैठक में जॉर्जिया, स्वीडन, और फिनलैंड के राजनयिक भी भाग लेंगे। ये देश नाटो के सदस्य नहीं हैं। उनके अलावा यूरोपियन यूनियन (ईयू) के प्रतिनिधि को भी इसमें बुलाया गया है। विश्लेषकों का कहना है कि इस बैठक के पीछे नाटो का इरादा अपने सहयोगी देशों के साथ अधिकतम सहयोग कायम करना है। वह अपनी रणनीति में उन देशों को भी शामिल करना चाहता है, जो यूरोपीय सुरक्षा के लिए बनी इस सैन्य संधि का हिस्सा नहीं हैं।
बाल्कन प्रायद्वीप तक पहुंचा चीन
इसके पहले दिसंबर 2020 में हुई नाटो की बैठक में दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को आमंत्रित किया गया था। लेकिन यह पहला मौका है, जब जापान के विदेश मंत्री ऐसी बैठक में हिस्सा लेंगे। इस बैठक का मकसद यूक्रेन के मुद्दे पर एशिया-प्रशांत के देशों की भूमिका बढ़ाना है। इसका एक प्रमुख उद्देश्य ऐसी रणनीति बनाना है, जिससे चीन को रूस की मदद करने से रोका जा सके। नाटो का अंदरूनी आकलन यह है कि चीन, रूस की राजनीतिक मदद कर रहा है। साथ ही वह प्रचार अभियान में भी रूस का साथ दे रहा है। नाटो के अंदर यह राय बनी है कि अगर चीन ने रूस को वित्तीय और सैनिक मदद भी दी, तो फिर यूक्रेन युद्ध का दायरा काफी फैल जाएगा।
विश्लेषकों के मुताबिक नाटो यूरोप और उसके आसपास चीन के बढ़ रहे प्रभाव से चिंतित है। अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के जरिए चीन बाल्कन प्रायद्वीप तक अपने पांव फैला चुका है। आर्कटिक सागर में वह वहां मौजूद संसाधनों का जायजा ले रहा है। इसके अलावा ईयू का आरोप है कि चीन ने उसके सदस्य कुछ देशों पर साइबर हमले भी किए हैँ।
जानकारों का कहना है कि अपनी इसी चिंता के कारण नाटो ने जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ संपर्क बढ़ाने का फैसला किया है। नाटो की राय है कि चीन के उदय से वैश्विक सुरक्षा का मानचित्र बदल गया है। इसलिए अब उसके खिलाफ लामबंदी की नई रणनीति बनानी होगी।
विस्तार
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के नेता यह महसूस कर रहे है कि यूक्रेन युद्ध के मामले में रूस को अलग-थलग करने की उनकी कोशिश उस हद तक कामयाब नहीं हुई है, जिसकी उम्मीद उन्होंने की थी। इसलिए नाटो विदेश मंत्रियों ने इसी हफ्ते एशिया-प्रशांत क्षेत्र के अपने सहयोगी देशों के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक करने का फैसला किया है। इस बैठक के जरिए उनकी कोशिश रूस विरोधी लामबंदी में अधिक भूमिका निभाने के लिए उन देशों को राजी करने की होगी।
सहयोगी देश होंगे शामिल
बताया गया है कि नाटो विदेश मंत्रियों के साथ इस बैठक में जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के विदेश मंत्री शामिल होंगे। इसके अलावा यूक्रेन के विदेश मंत्री भी इस बैठक में मौजूद रहेंगे। बैठक में यूक्रेन के इस अनुरोध पर भी चर्चा होगी कि उसे और अधिक मदद की जरूरत है। नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने मंगलवार को संवाददाताओं से बातचीत में यूक्रेन में रूसी सेना के व्यवहार की कड़ी आलोचना की। उन्होंन कहा- नागरिकों को निशाना बनाना और उनकी हत्या करना युद्ध अपराध है।
यहां मिली जानकारी के मुताबिक प्रस्तावित बैठक में जॉर्जिया, स्वीडन, और फिनलैंड के राजनयिक भी भाग लेंगे। ये देश नाटो के सदस्य नहीं हैं। उनके अलावा यूरोपियन यूनियन (ईयू) के प्रतिनिधि को भी इसमें बुलाया गया है। विश्लेषकों का कहना है कि इस बैठक के पीछे नाटो का इरादा अपने सहयोगी देशों के साथ अधिकतम सहयोग कायम करना है। वह अपनी रणनीति में उन देशों को भी शामिल करना चाहता है, जो यूरोपीय सुरक्षा के लिए बनी इस सैन्य संधि का हिस्सा नहीं हैं।
बाल्कन प्रायद्वीप तक पहुंचा चीन
इसके पहले दिसंबर 2020 में हुई नाटो की बैठक में दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को आमंत्रित किया गया था। लेकिन यह पहला मौका है, जब जापान के विदेश मंत्री ऐसी बैठक में हिस्सा लेंगे। इस बैठक का मकसद यूक्रेन के मुद्दे पर एशिया-प्रशांत के देशों की भूमिका बढ़ाना है। इसका एक प्रमुख उद्देश्य ऐसी रणनीति बनाना है, जिससे चीन को रूस की मदद करने से रोका जा सके। नाटो का अंदरूनी आकलन यह है कि चीन, रूस की राजनीतिक मदद कर रहा है। साथ ही वह प्रचार अभियान में भी रूस का साथ दे रहा है। नाटो के अंदर यह राय बनी है कि अगर चीन ने रूस को वित्तीय और सैनिक मदद भी दी, तो फिर यूक्रेन युद्ध का दायरा काफी फैल जाएगा।
विश्लेषकों के मुताबिक नाटो यूरोप और उसके आसपास चीन के बढ़ रहे प्रभाव से चिंतित है। अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के जरिए चीन बाल्कन प्रायद्वीप तक अपने पांव फैला चुका है। आर्कटिक सागर में वह वहां मौजूद संसाधनों का जायजा ले रहा है। इसके अलावा ईयू का आरोप है कि चीन ने उसके सदस्य कुछ देशों पर साइबर हमले भी किए हैँ।
जानकारों का कहना है कि अपनी इसी चिंता के कारण नाटो ने जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ संपर्क बढ़ाने का फैसला किया है। नाटो की राय है कि चीन के उदय से वैश्विक सुरक्षा का मानचित्र बदल गया है। इसलिए अब उसके खिलाफ लामबंदी की नई रणनीति बनानी होगी।
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