सोमवार को 10 डॉलर की तेजी आई
रूस के यूक्रेन पर हमले के खिलाफ पश्चिमी देश लगातार रूस पर अपने प्रतिबंध तेज करते जा रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय सहयोगी रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं। इसके चलते ब्रेंट 139.13 डॉलर प्रति बैरल और डब्ल्यूटीआई 130.50 डॉलर पर पहुंच गया। सोमवार को तड़के कच्चे तेल की कीमत में एकाएक 10 डॉलर की तेजी आ गई और इसने 14 साल के उच्चतम स्तर को छू लिया। गौरतलब है कि साल 2008 में कच्चा तेल 147 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था।
रूस के तेल सप्लाई पर प्रतिबंध की तैयारी
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने रविवार को कहा कि अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच रूस से तेल और प्राकृतिक गैस के आयात पर प्रतिबंध लगाने के बारे में बातचीत चल रही है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक दिन पहले इस विषय पर अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक की थी। इसके अलावा अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी ने एक पत्र में कहा कि सदन वर्तमान में मजबूत कानून की तलाश कर रहा है जो रूस को वैश्विक अर्थव्यवस्था से और अलग कर देगा। यह टिप्पणी तब आई जब व्हाइट हाउस और अन्य पश्चिमी देशों पर यूक्रेन पर आक्रमण को लेकर मास्को के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया।
कच्चे तेल में उछाल का बड़ा कारण
कच्चे तेल में आई इस तेजी के प्रमुख कारण की बात करें तो रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध तेज होने के कारण अमेरिका, यूरोप और सहयोगी देशों ने रूस से तेल नहीं खरीदने का मन बनाया है। इसके कारण डिमांड के मुकाबले सप्लाई काफी कम रह गई और कच्चा तेल उछाल भरता हुआ 2008 के बाद अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है। यहां बता दें कि रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है। गौरतलब है कि रूस ने यूक्रेन पवर हमले तेज कर दिए हैं और इस युदध में बड़ी संख्या में जनहानि हुई है।
रूस दूसरा बड़ा तेल उत्पादक
गौरतलब है कि पुतिन के युद्ध की घोषणा के बाद से ही एनर्जी एक्सपोर्ट में व्यवधान की आशंका बढ़ गई थी, जो अब साफतौर पर दिखाई देने लगी है। आपको बता दें कि रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, जो मुख्य रूप से यूरोपीय रिफाइनरियों को कच्चा तेल बेचता है। यूरोप के देश 20 फीसदी से ज्यादा तेल रूस से ही लेते हैं। इसके अलावा, ग्लोबल उत्पादन में विश्व का 10 फीसदी कॉपर और 10 फीसदी एल्युमीनियम रूस बनाता है।
185 डॉलर पर पहुंच सकता है क्रूड ऑयल
विशेषज्ञों के अनुसार, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध और आगे बढ़ता है तो क्रूड ऑयल के दाम 185 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं। यहां आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगर कच्चे तेल की कीमतों में एक डॉलर का इजाफा होता है तो भारत में पेट्रोल-डीजल का दाम 50 से 60 पैसे बढ़ जाता है। ऐसे में उत्पादन कम होने और सप्लाई में रुकावट के चलते इसके दाम में तेजी आना तय है और उम्मीद है कि कच्चा तेल 150 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंचने से भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 15 से 22 रुपये तक की वृद्धि देखने को मिल सकती है। हालांकि, विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि तेल के दाम में होने वाली ये बढ़ोतरी एक बार में नहीं, थोड़ी-थोड़ी करके कई दिनों में की जा सकती है।
भारत पर दिखाई देगा बड़ा असर
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव पिछले 14 साल के उच्च स्तर पर 139 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया है। कच्चे तेल की कीमतों के इजाफे के बाद भी देश में पेट्रोल और डीजल के दाम बीते चार महीनों से यथावत बने हुए हैं। ऐसे में तेल कंपनियों को तगड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है। हाल ही में आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की रिपोर्ट में घरेलू तेल कंपनियों के बढ़ रहे घाटे पर कहा है कि पिछले दो महीनों में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम तेजी से बढ़ने के कारण सरकार के स्वामित्व वाले खुदरा तेल विक्रेताओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा रहा है और अब कंपनियां इसे कम करने के लिए देश की जनता पर बोझ डालने की तैयारी कर रही हैं।
15 रुपये महंगा हो सकता है पेट्रोल
देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि को लेकर कई रिपोर्टें सामने आ रही है। इन रिपोर्टों की मानें तो आने वाले दो-चार दिनों के भीतर ही देश में पेट्रोल-डीजल के दाम में क्रमश: 15 से 22 रुपये तक की बढ़ोतरी की जा सकती है। दरअसल, रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू तेल कंपनियों को सिर्फ लागत की भरपाई के लिए 16 मार्च 2022 या उससे पहले पेट्रोल-डीजल की कीमतें 12.1 रुपये प्रति लीटर बढ़ानी होंगी। मार्जिन (लाभ) को भी जोड़ लें तो उन्हें 15.1 रुपये प्रति लीटर तक दाम में इजाफा करना होगा। जाहिर है कि अगर तेल कंपनियां ये बढ़ोतरी करती हैं तो देश के आम लोगों के लिए ये एक बड़ा झटका होगा।
85 फीसदी कच्चे तेल का आयात
गौरतलब है कि भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है और यह अपनी जरूरत का 85 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से खरीदते हैं। आयात किए जा रहे कच्चे तेल की कीमत भारत को अमेरिकी डॉलर में चुकानी होती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने और डॉलर के मजबूत होने से घरेलू स्तर पर पेट्रोल-डीजल के दाम प्रभावित होते हैं यानी ईंधन महंगे होने लगते हैं। अगर कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती है तो जाहिर है भारत का आयात बिल बढ़ जाएगा। एक रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि भारत का आयात बिल 600 अरब डॉलर पार पहुंच सकता है।