पीटीआई, नई दिल्ली
Published by: Amit Mandal
Updated Sat, 04 Dec 2021 10:47 PM IST
सार
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ केरल सरकार द्वारा दायर अपील पर एक नोटिस जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट एक कानूनी सवाल की जांच करने के लिए सहमत हो गया है कि क्या यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के मामलों को आरोपी और पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर रद्द किया जा सकता है। जस्टिस अजय रस्तोगी और एएस ओका की पीठ ने केरल हाई कोर्ट के 26 अगस्त, 2019 के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें उसने आरोपी और पीड़ित पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर पॉक्सो अधिनियम 2012 के तहत आरोपी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रिपोर्ट को रद्द किया था।
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ केरल सरकार द्वारा दायर अपील पर एक नोटिस जारी किया। इस मामले में पेशे से शिक्षक आरोपी पर पॉक्सो अधिनियम की धाराओं के तहत अपराध दर्ज किया गया था और मामला शैक्षणिक संस्थान या धार्मिक संस्था द्वारा उस संस्था में किसी बच्चे पर यौन हमला करने से जुड़ा था।
शीर्ष अदालत ने कहा, याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि मलप्पुरम पुलिस स्टेशन में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 9 (एफ) और 10 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया है। पक्षों के बीच किए जा रहे समझौते के आधार पर ऐसा करना अदालत के फैसले के मद्देनजर स्वीकार्य नहीं है।
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट एक कानूनी सवाल की जांच करने के लिए सहमत हो गया है कि क्या यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के मामलों को आरोपी और पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर रद्द किया जा सकता है। जस्टिस अजय रस्तोगी और एएस ओका की पीठ ने केरल हाई कोर्ट के 26 अगस्त, 2019 के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें उसने आरोपी और पीड़ित पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर पॉक्सो अधिनियम 2012 के तहत आरोपी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रिपोर्ट को रद्द किया था।
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ केरल सरकार द्वारा दायर अपील पर एक नोटिस जारी किया। इस मामले में पेशे से शिक्षक आरोपी पर पॉक्सो अधिनियम की धाराओं के तहत अपराध दर्ज किया गया था और मामला शैक्षणिक संस्थान या धार्मिक संस्था द्वारा उस संस्था में किसी बच्चे पर यौन हमला करने से जुड़ा था।
शीर्ष अदालत ने कहा, याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि मलप्पुरम पुलिस स्टेशन में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 9 (एफ) और 10 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया है। पक्षों के बीच किए जा रहे समझौते के आधार पर ऐसा करना अदालत के फैसले के मद्देनजर स्वीकार्य नहीं है।
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