सार
पैंगोंग त्सो लेक की लंबाई करीब 135 किलोमीटर है। उसका एक तिहाई हिस्सा भारत में और बाकी चीन में है। ब्रिज साइट रुतोग काउंटी में खुर्नक किले के ठीक पूर्व में है जहां पीएलए के सीमावर्ती ठिकाने हैं।
लेह से एलएसी की तरफ जाता सेना का काफिला (फाइल फोटो)
– फोटो : PTI
भारत पर दबाव बनाने के मकसद से चीनी सेना पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास पैंगोंग त्सो लेक के अपने वाले हिस्से में एक ब्रिज बना रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अनुमान है कि इससे चीनी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी भारतीय सीमा तक काफी तेज से पहुंच जाएगी। अभी तक इस हिस्से में पहुंचने में चीनी सेना को 200 किलोमीटर का फासला तय करना पड़ता था जो अब घटकर महज 40 से 50 किलोमीटर रह जाएगी। एलएसी के पास के क्षेत्र में चीन तेजी से बुनियादी ढांचे का निर्माण भी कर रहा है। बताया जा रहा है कि झील के उत्तरी तट पर फिंगर 8 से 20 किमी पूर्व में ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है।
भारत के लिए क्या चिंता की बात
रक्षा विशेषज्ञ और 2011-12 में लेह-लद्दाख के 14 कोर के चीफ ऑफ स्टाफ रह चुके मेजर जनरल ए के सिवाच (रिटायर्ड) का कहना है चीन अपने संसाधन बढ़ा रहा है, यह भारत के लिए चिंता की बात है, क्योंकि यहां अब चीन की पहुंच आसान हो जाएगी। ब्रिज बनाकर उसने 160 किलोमीटर की दूरी कम कर ली है। इससे हथियार और सैन्य सामान पहुंचाना ही आसान नहीं होगा, बल्कि उसकी प्रतिक्रिया देने की स्थिति में भी बहुत बदलाव होगा।
वे कहते हैं, भारत को इसे बिल्कुल हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि चीनी सेना की मूवमेंट यहां बढ़ जाएगी। उनका सुझाव है कि अब भारत को भी यहां ब्रिज बनाने और अपने संसाधन बढ़ाने के बारे में सोचना होगा। हालांकि मई 2020 में सैन्य गतिरोध शुरू होने के बाद से, भारत और चीन दोनों ने न केवल मौजूदा बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए काम किया है, बल्कि सीमा पर कई नई सड़कों, पुलों, लैंडिंग स्ट्रिप्स का भी निर्माण किया है
चीन को क्या डर है?
सिवाच बताते हैं 15 जून 2020 में गलवान की घटना के बाद भारत ने चुपचाप कैलाश पर्वतश्रृंखला की चोटियों पर अपने सैनिक भेजे थे यह गेम चेंजर था। लेकिन 11वीं कोर कमांडर की बैठक में यह तय हुआ कि चीन फिंगर 4 से फिंगर 8 में जाएगा और भारत को कैलाश रेंज खाली करना पड़ेगा। फिंगर 4 और 8 के बीच चीन और भारत की सेना गश्त करती है। चीनी सेना फिंगर 4 में आ कर बैठ गई थी। जबकि कैलाश पर्वतश्रृंखला की चोटियों पर भारतीय सैनिकों के होने से देश को चीन पर बढ़त मिल रही थी, जिस बात से चीन तिलमिलाया हुआ भी था।
वे कहते हैं भारतीय सैनिकों की मौजूदगी से भारत लाभ की स्थिति में था। भारतीय कूटनीति और सेना के दम से चीनी सैनिकों को फिंगर 4 से हटना पड़ा और भारतीय सैनिकों को भी कैलाश रेंज छोड़ना पड़ा। विशेषज्ञों ने तब भारतीय सेनाओं के हटने पर चिंता जताई थी। अब चीन को इसी बात का डर है कि कहीं भारत कैलाश रेंज की चोटियों पर फिर से अपने सैनिकों को नहीं भेज दे इसलिए उसने प्रतिक्रिया में ऐसा किया है।
चीनी सेना ने 60 हजार सैनिक तैनात किए, भारत क्या करे
सिवाच, पूर्वी लद्दाख में 60 हजार चीनी सैनिकों के जमावड़े से परेशान नहीं हैं। उनका कहना है चीन सर्दियों में ऐसा करता रह रहा है। भारत ने भी अपने संसाधन बढ़ा लिए हैं और भारत की भी इतनी ही सेना वहां तैनात है। इसे ‘मिरर इमेज डिप्लॉयमेंट’ कहते हैं, दोनों तरफ की बराबर की संख्या में सैनिक खड़े रहते हैं।
भारत की वायु शक्ति से अंजान नहीं चीन
सिवाच के मुताबिक चीन जानता है कि वह भारत की क्षमता को कम करके नहीं आंक सकता, क्योंकि उसे भारत की वायु शक्ति के बारे में पूरी जानकारी है। वायु शक्ति के मामले में भारत भी बेहतर स्थिति में है। भारत के एयर फील्ड लद्दाख के अंदर नीचे की हाइट पर हैं, जिससे हम फायदे की स्थिति में रहते हैं। जबकि चीन के ऊंचे हैं। भारतीय वायु सेना के पास करीब 600 लड़ाकू विमान हैं। जिनमें सुखोई, मिग-29, मिराज 2000, जैगुआर, मिग-21, तेजस और रफाल शामिल हैं। फ्रांस से किए गए 36 रफाल विमानों के सौदे में अब तक 26 विमानों की डिलिवरी हो चुकी है।
भारत किसी भी खतरे से निपटने के लिए तैयार
उनका मानना है रफाल आने से भारत की काबिलियत बढ़ी है। M777 अल्ट्रालाइट हाउजर और K 9 वज्र सेल्फ प्रोपेल्ड गन्स जैसे आधुनिक हथियार भारत के पास हैं। भारतीय सैनिक हॉवित्जर तोप, टैंक और जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के साथ तैनात हैं। भारतीय सेना ने चीन की तरफ से किसी भी खतरे से निपटने के लिए पहले ही पूरी तैयारी की हुई है। वायु सेना को उम्मीद है कि 83 तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट खरीदने के बाद वो अपनी युद्ध क्षमता को बनाए रख पाएगी। भारतीय वायु सेना के पास हाई-टेक विमान हैं। मिराज 2000 और मिग-29 को और काफी हद तक जगुआर को भी अपग्रेड किया गया है।
विस्तार
भारत पर दबाव बनाने के मकसद से चीनी सेना पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास पैंगोंग त्सो लेक के अपने वाले हिस्से में एक ब्रिज बना रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अनुमान है कि इससे चीनी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी भारतीय सीमा तक काफी तेज से पहुंच जाएगी। अभी तक इस हिस्से में पहुंचने में चीनी सेना को 200 किलोमीटर का फासला तय करना पड़ता था जो अब घटकर महज 40 से 50 किलोमीटर रह जाएगी। एलएसी के पास के क्षेत्र में चीन तेजी से बुनियादी ढांचे का निर्माण भी कर रहा है। बताया जा रहा है कि झील के उत्तरी तट पर फिंगर 8 से 20 किमी पूर्व में ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है।
भारत के लिए क्या चिंता की बात
रक्षा विशेषज्ञ और 2011-12 में लेह-लद्दाख के 14 कोर के चीफ ऑफ स्टाफ रह चुके मेजर जनरल ए के सिवाच (रिटायर्ड) का कहना है चीन अपने संसाधन बढ़ा रहा है, यह भारत के लिए चिंता की बात है, क्योंकि यहां अब चीन की पहुंच आसान हो जाएगी। ब्रिज बनाकर उसने 160 किलोमीटर की दूरी कम कर ली है। इससे हथियार और सैन्य सामान पहुंचाना ही आसान नहीं होगा, बल्कि उसकी प्रतिक्रिया देने की स्थिति में भी बहुत बदलाव होगा।
वे कहते हैं, भारत को इसे बिल्कुल हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि चीनी सेना की मूवमेंट यहां बढ़ जाएगी। उनका सुझाव है कि अब भारत को भी यहां ब्रिज बनाने और अपने संसाधन बढ़ाने के बारे में सोचना होगा। हालांकि मई 2020 में सैन्य गतिरोध शुरू होने के बाद से, भारत और चीन दोनों ने न केवल मौजूदा बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए काम किया है, बल्कि सीमा पर कई नई सड़कों, पुलों, लैंडिंग स्ट्रिप्स का भी निर्माण किया है
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