सार
नागालैंड सरकार ने नागरिकों के हत्याओं के खिलाफ सार्वजनिक आक्रोश के मद्देनजर अफ्सपा को निरस्त करने की मांग कर रही है। लंबे समय से मानवाधिकार संगठन और कार्यकर्ता भी इस कानून का विरोध करते आए हैं। सेना पर आरोप लगते रहे हैं कि अफस्पा से उसे जो शक्तियां मिलती हैं, उसका वे बेजा इस्तेमाल करते हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम को हटाने की लगातार मांग के बीच गृह मंत्रालय ने गुरुवार को नगालैंड में इस विवादास्पद कानून को छह महीने के लिए बढ़ा दिया। साथ ही राज्य को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया गया है। गुरुवार सुबह जारी एक सरकारी अधिसूचना में कहा गया है ‘नगालैंड इतने अशांत और खतरनाक स्थिति में है कि नागरिक शक्ति की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक है।’
केंद्र ने यह कदम तब जब सेना 4-5 दिसंबर की घटनाओं की जांच कर रही है। नगालैंड के मोन जिले में सेना के घात लगाकर किए गए हमले में छह नागरिक मारे गए थे और उसके बाद हुई हिंसा में आठ और लोग मारे गए थे। राज्य से लगातार अफस्पा को हटाने की मांग उठ रही है। केंद्र ने अफस्पा वापस लेने की संभावना की तलाश के लिए एक सचिव स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।
इसी सिलसिले में 20 दिसंबर को नगालैंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से AFSPA को निरस्त करने की मांग करने का प्रस्ताव पारित किया है। नगालैंड विधानसभा ने एक सुर में चार-पांच दिसबंर को मोन जिले के एक गांव में नागरिकों की मौत की घटना की निंदा की। विधानसभा में पांच बिंदुओं वाला एक प्रस्ताव पारित किया गया है और इसके लिए विशेष तौर पर विधानसभा सत्र बुलाया गया था।
क्या है AFSPA
अफस्पा सशस्त्र बलों को एक विशेष शक्तियां प्रदान करता है जो धारा तीन के तहत किसी राज्य के ‘अशांत’ घोषित होने के बाद उसके कुछ हिस्सों में लगाया जा सकता है। केंद्र या किसी राज्य के राज्यपाल इसे लगाने की सिफारिश कर सकते हैं। 1958 में एक अधिनियम के रूप में अधिसूचित किया गया था। अधिनियम में कहा गया है कि अशांत या खतरनाक स्थिति क्षेत्रों में नागरिक शक्तियों की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक है। अफस्पा का इस्तेमाल उन इलाकों में किया जाता रहा है, जहां आतंकवाद या उग्रवाद फैला हुआ है। शुरुआत में इसे पंजाब और पूर्वोत्तर में लगाया गया।
सशस्त्र बलों को क्या अधिकार हासिल है?
अधिनियम को काफी कठोर माना जाता है और इसमें सशस्त्र बलों को व्यापक अधिकार हासिल है। यह उन्हें कानून का उल्लंघन करने वाले या हथियार और गोला-बारूद ले जाने वाले किसी भी व्यक्ति को ‘गोली’ मारने की अनुमति देता है।
उन्हें किसी पर ‘उचित संदेह’ के आधार पर वारंट के बिना गिरफ्तार करने और वारंट के बिना परिसर की तलाशी लेने का अधिकार भी है। अधिनियम में आगे कहा गया है कि सुरक्षा बलों ने यदि किसी संदिग्ध को पकड़ा है तो उसे 24 घंटे के भीतर स्थानीय पुलिस स्टेशन को सौंप दिया जाना चाहिए। केंद्र की पूर्व स्वीकृति के बिना सुरक्षाकर्मियों के खिलाफ कोई मुकदमा या कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है।
क्या अफस्पा को निरस्त करने के प्रयास पहले भी हुए हैं?
नवंबर 2000 में एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को सैन्य बलों ने गोली मार दी थी। इस घटना के वक्त मणिपुर की इरोम शर्मिला वहीं मौजूद थीं। उन्होंने 2000 में, अफस्पा के खिलाफ भूख-हड़ताल शुरू की, जो 16 साल तक जारी रही और यह कानून अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों रहा। सुरक्षाबलों पर नागरिकों का उत्पीड़न और महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने के आरोप लगे। 10-11 जुलाई 2004 की दरमियानी रात 32 वर्षीय थंगजाम मनोरमा का कथित तौर पर सेना के जवानों ने दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद 15 जुलाई 2004 को करीब 30 मणिपुरी महिलाओं ने नग्न होकर प्रदर्शन किया था।
इसी साल यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश के तहत पांच सदस्यीय समिति का गठन किया। न्यायमूर्ति जीवन रेड्डी आयोग ने 2005 में अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए कहा कि अफस्पा उत्पीड़न का प्रतीक बन गया है और इसे निरस्त करने की सिफारिश की गई। वीरपा मोइली की अध्यक्षता वाले दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी इन सिफारिशों का समर्थन किया।
रक्षा मंत्रालय के विरोध के बाद फैसले पर लगी रोक
पूर्व गृह सचिव जी के पिल्लई ने भी अफस्पा को निरस्त करने का समर्थन किया था। पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने एक बार कहा था कि यदि अधिनियम को निरस्त नहीं किया जाता है, तो कम से कम संशोधन किया जाना चाहिए, लेकिन रक्षा मंत्रालय के विरोध के बाद सभी संभावित फैसले पर रोक लग गई। यूपीए ने मामले की जांच जारी रखने के लिए एक कैबिनेट उप-समिति का गठन किया। एनडीए सरकार ने बाद में उप-समिति भंग कर दी और रेड्डी आयोग के निष्कर्षों को भी खारिज कर दिया।
विस्तार
पूर्वोत्तर राज्यों में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम को हटाने की लगातार मांग के बीच गृह मंत्रालय ने गुरुवार को नगालैंड में इस विवादास्पद कानून को छह महीने के लिए बढ़ा दिया। साथ ही राज्य को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया गया है। गुरुवार सुबह जारी एक सरकारी अधिसूचना में कहा गया है ‘नगालैंड इतने अशांत और खतरनाक स्थिति में है कि नागरिक शक्ति की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक है।’
केंद्र ने यह कदम तब जब सेना 4-5 दिसंबर की घटनाओं की जांच कर रही है। नगालैंड के मोन जिले में सेना के घात लगाकर किए गए हमले में छह नागरिक मारे गए थे और उसके बाद हुई हिंसा में आठ और लोग मारे गए थे। राज्य से लगातार अफस्पा को हटाने की मांग उठ रही है। केंद्र ने अफस्पा वापस लेने की संभावना की तलाश के लिए एक सचिव स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।
इसी सिलसिले में 20 दिसंबर को नगालैंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से AFSPA को निरस्त करने की मांग करने का प्रस्ताव पारित किया है। नगालैंड विधानसभा ने एक सुर में चार-पांच दिसबंर को मोन जिले के एक गांव में नागरिकों की मौत की घटना की निंदा की। विधानसभा में पांच बिंदुओं वाला एक प्रस्ताव पारित किया गया है और इसके लिए विशेष तौर पर विधानसभा सत्र बुलाया गया था।
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