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52वां फिल्म महोत्सव : दूसरे दिन भारतीय पैनोरमा से लेकर यंग माइंड ऑफ टुमारो कार्यक्रम में 75 युवाओं ने बिखेरा जलवा

सार

52वें फिल्म फेस्टिवल में पणजी के आईनोक्स सेंटर पर आयोजित समारोह में हर तरफ भारतीय सिनेमा कोरोना संक्रमण के बाद किस तरह से वापसी के लिए अग्रसर है, उसकी छाप देखने को मिली। भारतीय पैनोरमा का आगाज केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और हिमाचल के राज्यपाल राजेंद्र अरनेकर ने किया।
 

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52वें फिल्म फेस्टिवल के नए प्रयोग ने युवाओं का परचम बुलंद किया है। यही वजह है कि भारतीय पैनोरमा खंड में भी शुरु हुई गैर फीचर फिल्म श्रेणी में दमीसा भाषा की सेमखोर की निर्देशिका एम्मी बरुआ से लेकर यंग माइंड ऑफ टुमारो कार्यक्रम में आजादी के अमृत उत्सव के तहत चुने गए 75 युवाओं का जलवा देखने को मिला।

पणजी के आईनोक्स सेंटर पर आयोजित समारोह में हर तरफ भारतीय सिनेमा कोरोना संक्रमण के बाद किस तरह से वापसी के लिए अग्रसर है, उसकी छाप देखने को मिली। भारतीय पैनोरमा का आगाज केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और हिमाचल के राज्यपाल राजेंद्र अरनेकर ने किया।

एम्मी बरुआ ने कहा बदल रही है सिनेमा की शक्ल
पैनोरमा की शुरुआत  सेमखोर और राजीव प्रकाश की बेद द विजनरी से हुई। कुल मिलाकर जहां दमीसा ने असम के क्षेत्रीय भाषा के साथ सामाजिक जीवन के बदलते आयामों का पेश किया। वहीं वेद द विजनरी में भारत  की सिनेमा यात्रा को देश की आजादी से लेकर वर्तमान तक के परिपेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया। दीमासा जैसी फिल्म आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना के साथ बढ़ते युवा भारत  की पहचान है।                     

फिल्मों को चुनने वाली जूरी को किया गया सम्मानित
इस मौके पर इस श्रेणी की फिल्मों को चुनने वाली जूरी को सम्मानित किया गया। इसमें फिल्म निर्माता और अभिनेता एस वी राजेंद्र  बाबू  ने नेतृत्व किया ने 221 समकालीन फिल्मों में चुनिंदा फिल्मों का चयन किया। समारोह आकर्षण असम की स्थानीय भाषा को सीखकर उन पर फिल्मांकन करने वाली एम्मी थी। युवा फिल्मकार एमी ने कहा आईएफएफआई  में आकर वह खासा गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। भारतीय पैनोरमा की शुरुआत किसी यंग निर्देशक की फिल्म से होना साबित करता है, यह आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते युवा भारत की तस्वीर है।

वहीं वेद द विजनरी के माध्यम से भारतीय सिनेमा के आदि पुरुष कहलाने वाले वेद प्रकाश के जीवन से प्रभावित  फिल्म है, जिसे उनके पुत्र प्रकाश की मेहनत के चलते भारतीय पैनोरमा में स्थान मिला है। प्रकाश ने गैर फीचर फिल्म श्रेणी में वेद द विजनरी के चयन उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है। क्योंकि यह फिल्म इतिहास का खजाना है, जिसे फिल्म का आकार दिया गया है, यह कहानी है एक ऐसे सिनेमाई व्यक्तित्व की जिसने समय के चक्र की अनमोल कड़ियों को जोड़कर असाधारण कौशल का परिचय देकर  फिल्म निर्माण के क्षेत्र के ऐतिहासिक पलों के गवाह बने।                                                                                                              

प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी इंडियन पैनोरमा में भाग लिया
महोत्सव के शानदार आगाज के बाद इंडियन पैनोरमा में भाग लेते हुए केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि आईएफएफआई में भाग लेने वालों को इसे और बेहतर बनाने के लिए अनूठे सुझावों के साथ सामने आना चाहिए। केंद्रीय मंत्री ने क्योंकि उनके पास फिल्मों को लेकर बहुत अनुभव नहीं है। इसके बाद भी वह अपनी मनोरंजन की समझ से कह सकते हैं कि प्रयास करके भारतीय सिनेमा के इस उत्सव का और बेहतर बनाया जा सकता है। क्योंकि बदलते वक्त ने सिनेमा ने भाषाई दीवार को ढहा दिया है।  

आज के दौर में कंटेंट ही किंग है
यदि कहानी अच्छी है, निर्देशन सधा हुआ है तो फिल्मकार का काम उसके क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा। क्योंकि आज के दौर में कंटेंट ही किंग है। इसलिए सबसे ज्यादा फिल्म निर्माण करके अब हमें सबसे बेहतर फिल्में बनाने की ओर सोचना चाहिए।  ठाकुर ने तकनीकों पर जोर देते हुए कहा कि मौजूदा दौर में फिल्मों के तकनीकी पक्ष को देखना बहुत जरूरी है। उन्होंने फिल्मों के अलावा उससे जुड़ने वाली प्रतिभाओं  को मिलने वाले सम्मान के सराहा।
 

इस बार के 2022 अकादमी पुरस्कारों के लिए भारत की प्रविष्टि, तमिल फिल्म कूझंगल, भी इस बार फीचर श्रेणी में प्रदर्शित की जाएगी, इस बार इस सेक्शन में क्षेत्रीय भाषाओं मराठी और बंगाली फिल्मों का वर्चस्व है। अभिनेता परमब्रत चट्टोपाध्याय के निर्देशन में बनी फिल्म अभिजान, पांच बंगाली फिल्मों में शामिल है, जबकि मराठी फिल्मों में गोदावरी, फ्यूनरल और बिटरस्वीट जैसी विशेषताएं शामिल हैं।

इस खंड में चार कन्नड़ फिल्में भी हैं। दो मलयालम फिल्मों के अलावा हिंदी भाषा की फिल्में आठ डाउन तूफान मेल और अल्फा बीटा गामा हैं।भारतीय पैनोरमा के गैर-फीचर खंड के लिए प्रविष्टियों का चयन वृत्तचित्र फिल्म निर्माता एस नल्लामुथु की अध्यक्षता वाली जूरी द्वारा किया गया था।

यह फिल्म फिल्म निर्माता वेद प्रकाश और उनके द्वारा किए गए कामों को 1939-1975 तक कालखंड को दर्शाती है। यह भारतीय सिनेमा और बदलते घटनाक्रम को कड़ी दर कड़ी दर कड़ी पिरोकर फिल्मांकन करके दुनिया को जीतने की उनकी यात्रा की कहानी बंया करती है।

इसमें वेद द्वारा किए गए असाधारण कार्यों  की कहानी में देश की आजादी के दंश और ऐतिहासिक समझौते के अलावा जनवरी 1948 में महात्मा गांधी के अंतिम संस्कार का समाचार कवरेज शामिल है, जिसे 1949 में ब्रिटिश अकादमी पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था। 

भारत के स्वतंत्र संग्राम और इसके बाद आजाद भारत में मुल्क के बंटवारे से लेकर  हुए सत्ता परिवर्तन के दौरान हुई त्रासदी को संवेदनाओं के साथ किस तरह से संजोया गया था उसकी बानगी पेश करता है।  दृश्यों का एक बड़ा हिस्सा और इसके अशांत प्रारंभिक वर्षों में उनकी कड़ी मेहनत और सौंदर्यशास्त्र का उपहार है।

सेमखोर
नारी की अनंत वेदना, सामाजिक दुश्वारियों और जीने की ललक के साथ बेटी को हर हाल में  सुनहरा भविष्य देने के लिए  बेटी को खोने वाली मॉ और एक बालिका शिशु को जीवन देने के लिए संघर्ष करने वाली नानी की गाथा है। इसमें डिरो सेमखोर के संसा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। जब डिरो की मृत्यु होती है, तो उसकी पत्नी, जो एक सहायक मिड-वाइफ के रूप में काम करती है, अपने तीन बच्चों की देखभाल करती है।

वह अपनी इकलौती बेटी मुरी, केवल ग्यारह साल की उम्र में, दीनार से शादी कर लेती है। दुर्भाग्य से, एक बच्ची को जन्म देने के बाद मुरी की मृत्यु हो जाती है। सेमखोर की प्रथा के अनुसार, यदि बच्चे के जन्म के दौरान किसी महिला की मृत्यु हो जाती है, तो शिशु को मां के साथ जिंदा दफना दिया जाता है। लेकिन डिरो की पत्नी सेमखोर में एक नई सुबह का संकेत देते हुए, मुरी के शिशु की रक्षा करती है।

विस्तार

52वें फिल्म फेस्टिवल के नए प्रयोग ने युवाओं का परचम बुलंद किया है। यही वजह है कि भारतीय पैनोरमा खंड में भी शुरु हुई गैर फीचर फिल्म श्रेणी में दमीसा भाषा की सेमखोर की निर्देशिका एम्मी बरुआ से लेकर यंग माइंड ऑफ टुमारो कार्यक्रम में आजादी के अमृत उत्सव के तहत चुने गए 75 युवाओं का जलवा देखने को मिला।

पणजी के आईनोक्स सेंटर पर आयोजित समारोह में हर तरफ भारतीय सिनेमा कोरोना संक्रमण के बाद किस तरह से वापसी के लिए अग्रसर है, उसकी छाप देखने को मिली। भारतीय पैनोरमा का आगाज केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और हिमाचल के राज्यपाल राजेंद्र अरनेकर ने किया।

एम्मी बरुआ ने कहा बदल रही है सिनेमा की शक्ल

पैनोरमा की शुरुआत  सेमखोर और राजीव प्रकाश की बेद द विजनरी से हुई। कुल मिलाकर जहां दमीसा ने असम के क्षेत्रीय भाषा के साथ सामाजिक जीवन के बदलते आयामों का पेश किया। वहीं वेद द विजनरी में भारत  की सिनेमा यात्रा को देश की आजादी से लेकर वर्तमान तक के परिपेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया। दीमासा जैसी फिल्म आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना के साथ बढ़ते युवा भारत  की पहचान है।                     

फिल्मों को चुनने वाली जूरी को किया गया सम्मानित

इस मौके पर इस श्रेणी की फिल्मों को चुनने वाली जूरी को सम्मानित किया गया। इसमें फिल्म निर्माता और अभिनेता एस वी राजेंद्र  बाबू  ने नेतृत्व किया ने 221 समकालीन फिल्मों में चुनिंदा फिल्मों का चयन किया। समारोह आकर्षण असम की स्थानीय भाषा को सीखकर उन पर फिल्मांकन करने वाली एम्मी थी। युवा फिल्मकार एमी ने कहा आईएफएफआई  में आकर वह खासा गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। भारतीय पैनोरमा की शुरुआत किसी यंग निर्देशक की फिल्म से होना साबित करता है, यह आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते युवा भारत की तस्वीर है।

वहीं वेद द विजनरी के माध्यम से भारतीय सिनेमा के आदि पुरुष कहलाने वाले वेद प्रकाश के जीवन से प्रभावित  फिल्म है, जिसे उनके पुत्र प्रकाश की मेहनत के चलते भारतीय पैनोरमा में स्थान मिला है। प्रकाश ने गैर फीचर फिल्म श्रेणी में वेद द विजनरी के चयन उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है। क्योंकि यह फिल्म इतिहास का खजाना है, जिसे फिल्म का आकार दिया गया है, यह कहानी है एक ऐसे सिनेमाई व्यक्तित्व की जिसने समय के चक्र की अनमोल कड़ियों को जोड़कर असाधारण कौशल का परिचय देकर  फिल्म निर्माण के क्षेत्र के ऐतिहासिक पलों के गवाह बने।                                                                                                              

प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी इंडियन पैनोरमा में भाग लिया

महोत्सव के शानदार आगाज के बाद इंडियन पैनोरमा में भाग लेते हुए केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि आईएफएफआई में भाग लेने वालों को इसे और बेहतर बनाने के लिए अनूठे सुझावों के साथ सामने आना चाहिए। केंद्रीय मंत्री ने क्योंकि उनके पास फिल्मों को लेकर बहुत अनुभव नहीं है। इसके बाद भी वह अपनी मनोरंजन की समझ से कह सकते हैं कि प्रयास करके भारतीय सिनेमा के इस उत्सव का और बेहतर बनाया जा सकता है। क्योंकि बदलते वक्त ने सिनेमा ने भाषाई दीवार को ढहा दिया है।  

आज के दौर में कंटेंट ही किंग है

यदि कहानी अच्छी है, निर्देशन सधा हुआ है तो फिल्मकार का काम उसके क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा। क्योंकि आज के दौर में कंटेंट ही किंग है। इसलिए सबसे ज्यादा फिल्म निर्माण करके अब हमें सबसे बेहतर फिल्में बनाने की ओर सोचना चाहिए।  ठाकुर ने तकनीकों पर जोर देते हुए कहा कि मौजूदा दौर में फिल्मों के तकनीकी पक्ष को देखना बहुत जरूरी है। उन्होंने फिल्मों के अलावा उससे जुड़ने वाली प्रतिभाओं  को मिलने वाले सम्मान के सराहा।

 

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