न्यूज डेस्क, अमर अजाला, नई दिल्ली
Published by: सुभाष कुमार
Updated Thu, 09 Dec 2021 04:26 AM IST
सार
मंत्रालय ने जनहित याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में यह जानकारी दी है। मंत्रालय ने कहा है कि उपाध्याय द्वारा दायर याचिका तुच्छ है और यह सुनवाई योग्य नहीं है।
कानून एवं न्याय मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि विधि आयोग को वैधानिक निकाय बनाने के लिए कोई भी प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका में भारतीय विधि आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करने और इसे एक वैधानिक निकाय बनाने का केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई थी।
मंत्रालय ने जनहित याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में यह जानकारी दी है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में विधि आयोग को ‘वैधानिक निकाय’ घोषित करने और इसके अध्यक्ष एवं सदस्य नियुक्त करने का निर्देश देने का केंद्र सरकार से अनुरोध किया गया है। मंत्रालय ने हलफनामे में कहा है कि उपाध्याय द्वारा दायर याचिका तुच्छ है और यह सुनवाई योग्य नहीं है।
मंत्रालय ने कहा, याचिकाकर्ता की नीयत साफ नहीं है और उन्होंने जो, मुद्दा उठाया है, वह स्पष्ट रूप से शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत से इतर है और वर्तमान में विधि आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का मामला सरकार के पास है। शीर्ष अदालत ने पहले उपाध्याय की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था, जिसमें गृह मंत्रालय, कानून एवं न्याय मंत्रालयों के साथ-साथ भारत के विधि आयोग को भी पक्षकार बनाया था।
विस्तार
कानून एवं न्याय मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि विधि आयोग को वैधानिक निकाय बनाने के लिए कोई भी प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका में भारतीय विधि आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करने और इसे एक वैधानिक निकाय बनाने का केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई थी।
मंत्रालय ने जनहित याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में यह जानकारी दी है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में विधि आयोग को ‘वैधानिक निकाय’ घोषित करने और इसके अध्यक्ष एवं सदस्य नियुक्त करने का निर्देश देने का केंद्र सरकार से अनुरोध किया गया है। मंत्रालय ने हलफनामे में कहा है कि उपाध्याय द्वारा दायर याचिका तुच्छ है और यह सुनवाई योग्य नहीं है।
मंत्रालय ने कहा, याचिकाकर्ता की नीयत साफ नहीं है और उन्होंने जो, मुद्दा उठाया है, वह स्पष्ट रूप से शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत से इतर है और वर्तमान में विधि आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का मामला सरकार के पास है। शीर्ष अदालत ने पहले उपाध्याय की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था, जिसमें गृह मंत्रालय, कानून एवं न्याय मंत्रालयों के साथ-साथ भारत के विधि आयोग को भी पक्षकार बनाया था।
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