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सुपरपावर बनने की चाहत: अमेरिका, चीन और रूस में छिड़ी है नए मारक लेजर हथियार बनाने की होड़

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, हांग कांग
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 29 Jan 2022 05:15 PM IST

सार

रूस भी अपने लेजर हथियारों की क्षमता बढ़ाने की एक बड़ी योजना पर अमल कर रहा है। जानकारों के मुताबिक रूस में लेजर हथियार बनाने का कार्यक्रम 1970 के दशक में ही शुरू किया गया था। 1981 में ऐसे उपग्रह भेदी हथियारों के परीक्षण भी किए गए। लेकिन सोवियत संघ के बिखराव के साथ ये प्रोजेक्ट ठहर गया था। 2003 में इसे फिर शुरू किया गया, लेकिन अब इसमें नई तेजी आई है…

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चीन ने गुपचुप हमला करने में सक्षम अपने जे-20 लड़ाकू विमानों को लेजर हथियारों से लैस करने की घोषणा हाल में की है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इससे चीन की हवा से हवा में मार करने की क्षमता में भारी बढ़ोतरी होगी। साथ ही यह भी संभव है कि हाइपरसोनिक हथियारों से बचाव की क्षमता भी एक हद तक वह हासिल कर ले।

उधर, रूस भी अपने लेजर हथियारों की क्षमता बढ़ाने की एक बड़ी योजना पर अमल कर रहा है। जानकारों के मुताबिक रूस में लेजर हथियार बनाने का कार्यक्रम 1970 के दशक में ही शुरू किया गया था। 1981 में ऐसे उपग्रह भेदी हथियारों के परीक्षण भी किए गए। लेकिन सोवियत संघ के बिखराव के साथ ये प्रोजेक्ट ठहर गया था। 2003 में इसे फिर शुरू किया गया, लेकिन अब इसमें नई तेजी आई है। रूस ने ए-60 नाम का एक लेजर सिस्टम तैयार किया है। इसके अलावा उसने तीन और ऐसे लेजर हथियार तैयार किए हैं, जिन्हें जमीन से दागा जा सकता है।

मिसाइलों को भी गिरा सकते हैं लेजर हथियार

अमेरिका में लेजर हथियारों के विकास में 2002 के बाद खास तेजी आई थी। अब अमेरिका ने वाईएएल 1-ए लेजर सिस्टम का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। उसने ऐसे लेजर हथियार बना लिए हैं, जिनसे वह टैक्टिकल बैलिस्टिक मिसाइलों को उनके दागे जाने के समय ही मार कर गिरा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक लेजर हथियारों के मामले में अमेरिका काफी शक्तिशाली है।

विशेषज्ञों का कहना है कि लेजर हथियार कई मामलों में मिसाइल जैसे हथियारों से अधिक कारगर हो सकते हैं। इनके जरिए तुरंत निशाना साधा जा सकता है, बिल्कुल सटीक निशाना लगाया जा सकता है, और जरूरत के मुताबिक तुरंत उनकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है। हालांकि शुरुआत में उन्हें विकसित करना महंगा पड़ता है, लेकिन एक बार क्षमता आ जाने के बाद उनका इस्तेमाल बहुत सस्ता हो जाता है। लेकिन इन हथियारों की खामी यह है कि इनके इस्तेमाल में बिजली की भारी खपत होती है, दूरी बढ़ने के साथ इन हथियारों की मारक क्षमता कमजोर पड़ने लगती है, और मौसम का इन पर काफी असर होता है।

लॉकहीड मार्टिन भी जुटी

इसके बावजूद हाल में आईं खबरों से संकेत मिला है कि अमेरिका, चीन और रूस के बीच अधिक से अधिक सक्षम लेजर हथियार विकसित करने की एक होड़ लग गई है। चीन के सरकारी टीवी चैनल चाइना सेंट्रल टेलीविजन पर एक चीनी सैन्य विशेषज्ञ ने यह कहा कि जे-20 लड़ाकू विमानों पर लेजर हथियार लगाए जाएंगे। 2020 में चीन की सेना ने हवा से मार करने में सक्षम ऐसे लेजर हथियारों की मांग की थी, जिनसे सटीक ढंग से दूसरे देशों के लड़ाकू विमानों और बैलिस्टिक मिसाइलों पर दागा जा सके।

जानकारों का कहना है कि लेजर तकनीक नई नहीं है। लेकिन अब बड़ी ताकतों के बीच हथियारों में इसके इस्तेमाल पर ज्यादा जोर देखने को मिल रहा है। अमेरिका में इन हथियारों के उपयोग की नई संभावनाओं पर शोध चल रहा है। अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन टैक्टिकल एयरबोर्न लेजर सिस्टम प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। ये हथियार हर तरह की मिसाइल को हवा में ही मार गिराने में सक्षम होगा। लॉकहीड मार्टिन का ये प्रोजेक्ट 2021 में ही पूरा होना था। लेकिन अब बताया गया है कि यह 2023 में पूरा होगा।

विस्तार

चीन ने गुपचुप हमला करने में सक्षम अपने जे-20 लड़ाकू विमानों को लेजर हथियारों से लैस करने की घोषणा हाल में की है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इससे चीन की हवा से हवा में मार करने की क्षमता में भारी बढ़ोतरी होगी। साथ ही यह भी संभव है कि हाइपरसोनिक हथियारों से बचाव की क्षमता भी एक हद तक वह हासिल कर ले।

उधर, रूस भी अपने लेजर हथियारों की क्षमता बढ़ाने की एक बड़ी योजना पर अमल कर रहा है। जानकारों के मुताबिक रूस में लेजर हथियार बनाने का कार्यक्रम 1970 के दशक में ही शुरू किया गया था। 1981 में ऐसे उपग्रह भेदी हथियारों के परीक्षण भी किए गए। लेकिन सोवियत संघ के बिखराव के साथ ये प्रोजेक्ट ठहर गया था। 2003 में इसे फिर शुरू किया गया, लेकिन अब इसमें नई तेजी आई है। रूस ने ए-60 नाम का एक लेजर सिस्टम तैयार किया है। इसके अलावा उसने तीन और ऐसे लेजर हथियार तैयार किए हैं, जिन्हें जमीन से दागा जा सकता है।

मिसाइलों को भी गिरा सकते हैं लेजर हथियार

अमेरिका में लेजर हथियारों के विकास में 2002 के बाद खास तेजी आई थी। अब अमेरिका ने वाईएएल 1-ए लेजर सिस्टम का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। उसने ऐसे लेजर हथियार बना लिए हैं, जिनसे वह टैक्टिकल बैलिस्टिक मिसाइलों को उनके दागे जाने के समय ही मार कर गिरा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक लेजर हथियारों के मामले में अमेरिका काफी शक्तिशाली है।

विशेषज्ञों का कहना है कि लेजर हथियार कई मामलों में मिसाइल जैसे हथियारों से अधिक कारगर हो सकते हैं। इनके जरिए तुरंत निशाना साधा जा सकता है, बिल्कुल सटीक निशाना लगाया जा सकता है, और जरूरत के मुताबिक तुरंत उनकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है। हालांकि शुरुआत में उन्हें विकसित करना महंगा पड़ता है, लेकिन एक बार क्षमता आ जाने के बाद उनका इस्तेमाल बहुत सस्ता हो जाता है। लेकिन इन हथियारों की खामी यह है कि इनके इस्तेमाल में बिजली की भारी खपत होती है, दूरी बढ़ने के साथ इन हथियारों की मारक क्षमता कमजोर पड़ने लगती है, और मौसम का इन पर काफी असर होता है।

लॉकहीड मार्टिन भी जुटी

इसके बावजूद हाल में आईं खबरों से संकेत मिला है कि अमेरिका, चीन और रूस के बीच अधिक से अधिक सक्षम लेजर हथियार विकसित करने की एक होड़ लग गई है। चीन के सरकारी टीवी चैनल चाइना सेंट्रल टेलीविजन पर एक चीनी सैन्य विशेषज्ञ ने यह कहा कि जे-20 लड़ाकू विमानों पर लेजर हथियार लगाए जाएंगे। 2020 में चीन की सेना ने हवा से मार करने में सक्षम ऐसे लेजर हथियारों की मांग की थी, जिनसे सटीक ढंग से दूसरे देशों के लड़ाकू विमानों और बैलिस्टिक मिसाइलों पर दागा जा सके।

जानकारों का कहना है कि लेजर तकनीक नई नहीं है। लेकिन अब बड़ी ताकतों के बीच हथियारों में इसके इस्तेमाल पर ज्यादा जोर देखने को मिल रहा है। अमेरिका में इन हथियारों के उपयोग की नई संभावनाओं पर शोध चल रहा है। अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन टैक्टिकल एयरबोर्न लेजर सिस्टम प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। ये हथियार हर तरह की मिसाइल को हवा में ही मार गिराने में सक्षम होगा। लॉकहीड मार्टिन का ये प्रोजेक्ट 2021 में ही पूरा होना था। लेकिन अब बताया गया है कि यह 2023 में पूरा होगा।

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