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सख्त प्रतिबंध हुए बेअसर: रूस ने आखिर कैसे संभाल लिया है अपनी मुद्रा रूबल को?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, मास्को
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Wed, 06 Apr 2022 04:53 PM IST

सार

वित्त विश्लेषकों के मुताबिक रूस ने डॉलर को संभालने के लिए जो कदम उठाए, उनमें सबसे अहम स्वर्ण की तुलना में रूबल की कीमत तय करना है। बैंक ऑफ रसा ने प्रति एक ग्राम सोने की कीमत पांच हजार रूबल फिक्स कर दी है। इस तरह रूस मुद्रा बाजार में गोल्ड स्टैंडर्ड की तरफ लौट गया है…

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रूस ने जितनी तेजी से अपनी मुद्रा रूबल को संभाला है, उसको लेकर वित्तीय हलकों में गहरी चर्चा चल रही है। बीते 24 फरवरी को यूक्रेन के खिलाफ सैनिक कार्रवाई शुरू होने के तुरंत बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए। अमेरिका ने इन प्रतिबंधों के पीछे जिन मकसदों की चर्चा की, उनमें रूसी मुद्रा को तबाह करना भी था। 23 फरवरी को एक डॉलर की कीमत 76 रूबल थी। एक मार्च आते-आते ये कीमत लगभग 150 रूबल प्रति डॉलर हो गई। लेकिन मार्च के तीसरे हफ्ते के बाद रूबल का भाव फिर चढ़ने लगा। अब यह भाव 82 से 85 रूबल प्रति डॉलर के बीच चल रहा है।

एक ग्राम सोने की कीमत पांच हजार रूबल

वित्त विश्लेषकों के मुताबिक रूस ने डॉलर को संभालने के लिए जो कदम उठाए, उनमें सबसे अहम स्वर्ण की तुलना में रूबल की कीमत तय करना है। बैंक ऑफ रसा ने प्रति एक ग्राम सोने की कीमत पांच हजार रूबल फिक्स कर दी है। इस तरह रूस मुद्रा बाजार में गोल्ड स्टैंडर्ड की तरफ लौट गया है। 1971 तक गोल्ड स्टैंडर्ड ही दुनिया में मान्य व्यवस्था थी। तब अमेरिकी डॉलर की कीमत उसके पास मौजूद स्वर्ण भंडार से तय होती थी। लेकिन 1971 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने एक एकतरफा फैसले में इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया। इसके बदले उन्होंने डॉलर को ही स्टैंडर्ड बना दिया।

विश्लेषकों के मुताबिक रूस का दूसरा महत्त्वपूर्ण कदम यह है कि उसने अपनी मुद्रा को कच्चे तेल और गैस की खरीद-बिक्री की मुद्रा बना दी है। हालांकि अभी उसने ये व्यवस्था सिर्फ उन देशों के लिए लागू की है, जिन्हें उसने ‘अमित्र देशों’ की सूची में रखा है। इनमें अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया आदि शामिल हैं। अब अगर इन देशों को रूस से तेल या गैस की खरीदारी करनी है, तो उन्हें उसका भुगतान रूबल में करना होगा। इससे मुद्रा बाजार में रूबल की मांग बढ़ी है।

एक ग्राम सोने का भाव 62 डॉलर

विशेषज्ञों ने कहा है कि गोल्ड स्टैंडर्ड की तरफ लौटना एक ऐसा कदम है, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। अभी तक स्वर्ण की सारी खरीद-बिक्री डॉलर में होती रही है। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक ग्राम सोने का भाव 62 डॉलर है। इसका अर्थ यह हुआ कि रूस ने पांच हजार रूबल को 62 डॉलर के बराबर फिक्स कर दिया है। इस तरह रूस से कारोबार में विभिन्न देशों की मुद्राओं की अदला-बदली का सिस्टम अस्तित्व में गया है। जिन देशों को रूस को भुगतान करना होगा, उन्हें 62 डॉलर के बराबर अपनी मुद्रा उसे देनी होगी।

रूसी वेबसाइट Russia today पर प्रकाशित एक विश्लेषण में कहा गया है- ‘इस समय हम उस व्यवस्था को खत्म होते देख रहे हैं, जो 50 साल पहले कायम हुई थी। अब स्वर्ण और कॉमोडिटी (तेल-गैस) आधारित एक बहुपक्षीय मौद्रिक व्यवस्था अस्तित्व में आ रही है। रूसी संपत्तियों को पश्चिमी देशों ने जैसे जब्त कर लिया, उसी कारण रूस ये व्यवस्था बनाने के लिए प्रेरित हुआ। चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था और तेल-गैस का निर्यात करने वाले प्रमख देश जल्द ही यह महसूस कर सकते हैं कि अब अधिक न्यायपूर्ण मौद्रिक व्यवस्था को अपनाने का समय आ गया है। और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। ये देश ऐसी व्यवस्था बनाने को लेकर वर्षों से चर्चा करते रहे हैं।’

विस्तार

रूस ने जितनी तेजी से अपनी मुद्रा रूबल को संभाला है, उसको लेकर वित्तीय हलकों में गहरी चर्चा चल रही है। बीते 24 फरवरी को यूक्रेन के खिलाफ सैनिक कार्रवाई शुरू होने के तुरंत बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए। अमेरिका ने इन प्रतिबंधों के पीछे जिन मकसदों की चर्चा की, उनमें रूसी मुद्रा को तबाह करना भी था। 23 फरवरी को एक डॉलर की कीमत 76 रूबल थी। एक मार्च आते-आते ये कीमत लगभग 150 रूबल प्रति डॉलर हो गई। लेकिन मार्च के तीसरे हफ्ते के बाद रूबल का भाव फिर चढ़ने लगा। अब यह भाव 82 से 85 रूबल प्रति डॉलर के बीच चल रहा है।

एक ग्राम सोने की कीमत पांच हजार रूबल

वित्त विश्लेषकों के मुताबिक रूस ने डॉलर को संभालने के लिए जो कदम उठाए, उनमें सबसे अहम स्वर्ण की तुलना में रूबल की कीमत तय करना है। बैंक ऑफ रसा ने प्रति एक ग्राम सोने की कीमत पांच हजार रूबल फिक्स कर दी है। इस तरह रूस मुद्रा बाजार में गोल्ड स्टैंडर्ड की तरफ लौट गया है। 1971 तक गोल्ड स्टैंडर्ड ही दुनिया में मान्य व्यवस्था थी। तब अमेरिकी डॉलर की कीमत उसके पास मौजूद स्वर्ण भंडार से तय होती थी। लेकिन 1971 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने एक एकतरफा फैसले में इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया। इसके बदले उन्होंने डॉलर को ही स्टैंडर्ड बना दिया।

विश्लेषकों के मुताबिक रूस का दूसरा महत्त्वपूर्ण कदम यह है कि उसने अपनी मुद्रा को कच्चे तेल और गैस की खरीद-बिक्री की मुद्रा बना दी है। हालांकि अभी उसने ये व्यवस्था सिर्फ उन देशों के लिए लागू की है, जिन्हें उसने ‘अमित्र देशों’ की सूची में रखा है। इनमें अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया आदि शामिल हैं। अब अगर इन देशों को रूस से तेल या गैस की खरीदारी करनी है, तो उन्हें उसका भुगतान रूबल में करना होगा। इससे मुद्रा बाजार में रूबल की मांग बढ़ी है।

एक ग्राम सोने का भाव 62 डॉलर

विशेषज्ञों ने कहा है कि गोल्ड स्टैंडर्ड की तरफ लौटना एक ऐसा कदम है, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। अभी तक स्वर्ण की सारी खरीद-बिक्री डॉलर में होती रही है। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक ग्राम सोने का भाव 62 डॉलर है। इसका अर्थ यह हुआ कि रूस ने पांच हजार रूबल को 62 डॉलर के बराबर फिक्स कर दिया है। इस तरह रूस से कारोबार में विभिन्न देशों की मुद्राओं की अदला-बदली का सिस्टम अस्तित्व में गया है। जिन देशों को रूस को भुगतान करना होगा, उन्हें 62 डॉलर के बराबर अपनी मुद्रा उसे देनी होगी।

रूसी वेबसाइट Russia today पर प्रकाशित एक विश्लेषण में कहा गया है- ‘इस समय हम उस व्यवस्था को खत्म होते देख रहे हैं, जो 50 साल पहले कायम हुई थी। अब स्वर्ण और कॉमोडिटी (तेल-गैस) आधारित एक बहुपक्षीय मौद्रिक व्यवस्था अस्तित्व में आ रही है। रूसी संपत्तियों को पश्चिमी देशों ने जैसे जब्त कर लिया, उसी कारण रूस ये व्यवस्था बनाने के लिए प्रेरित हुआ। चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था और तेल-गैस का निर्यात करने वाले प्रमख देश जल्द ही यह महसूस कर सकते हैं कि अब अधिक न्यायपूर्ण मौद्रिक व्यवस्था को अपनाने का समय आ गया है। और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। ये देश ऐसी व्यवस्था बनाने को लेकर वर्षों से चर्चा करते रहे हैं।’

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