विशेषज्ञों के मुताबिक, हलम समुदाय की उप जनजाति कारबोंग को लगातार शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव झेलना पड़ा है, जिसके चलते शेष आबादी का भी जीना मुहाल हो गया है। कारबोंग के जानकार हरिहर देबनाथ का कहना है, माणिक्य शासकों द्वारा जनजाति के लोगों को शिक्षित करने के लिए स्कूल और शिक्षकों की व्यवस्था का प्रयास किया था लेकिन वह सफल साबित नहीं हुआ।
स्वायत्त जिला परिषद ने 1989 में कारबोंगपारा गांव में प्राथमिक स्कूल बनाया था, जो चार साल बाद शुरू हुआ था। देबनाथ ने बताया, स्कूल में तीन शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी और 15 कारबोंग छात्र भर्ती कराए गए थे। लेकिन उनमें से ज्यादातर ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी।
बुनियादी सुविधाओं की कमी से जीवन मुश्किल
स्थानीय अधिकारियों का कहना है, फिलहाल पश्चिम त्रिपुरा जिले के चंपक नगर में एक आदिवासी बस्ती में कारबोंग उप जनजाति के करीब 40 से 50 परिवार रहते हैं। वहीं, 10 से 15 परिवार धलाई जिले में रह रहे हैं। समुदाय के एक बुजुर्ग रबीमोहन कारबोंग ने कहा, शिक्षण संस्थानों, स्वास्थ्य देखभाल और पीने के पानी जैसी सुविधाओं की कमी के कारण हमारे परिवारों का जीवन मुश्किल हो गया है। अभी 60 से 70 परिवारों में जनजाति के बामुश्किल 250 लोग ही बचे हैं।
अंतर्जातीय विवाह, गरीबी और अच्छी पढ़ाई-लिखाई के अभाव में हमारी आबादी तेजी से घट रही है। कुछ अन्य बुजुर्गों ने कहा, कारबोंग के लोगों की संख्या साल दर साल कम हुई है। अन्य सभी जनजातियों से अलग भाषा होने के बावजूद कारबोंग को एक उप जनजाति माना जाता है। इसके चलते देश की जनगणना में उन्हें अलग से नहीं गिना जाता।
कोर्ट के निर्देश के बाद सुर्खियों में आई जनजाति
18 अक्तूबर को त्रिपुरा हाईकोर्ट द्वारा केंद्र और राज्य सरकारों से विशेषज्ञ समिति बनाकर कारबोंग की मौजूदा स्थिति का आकलन करने का निर्देश देने के बाद यह उप जनजाति सुर्खियों में आई थी। अदालत ने सरकारों को नौ नवंबर तक हलफनामा भी देने को कहा है।
सभी कारबोंग हिंदू धर्म को मानते हैं, भाषा से खुद को करते हैं अलग
1940 की गजट अधिसूचना के मुताबिक, त्रिपुरा में 19 आदिवासी समूह हैं, जिनमें कारबोंग को हलम समुदाय में शामिल किया गया है। हाल ही में उन्हें केंद्र द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है, लुप्तप्राय कारबोंग अपनी भाषा के जरिए अन्य स्वदेशी आदिवासी समूहों से खुद को अलग करते हैं। यह त्रिपुरा के अधिकांश आदिवासी समूहों की भाषा कोकबोरोक से अलग है। सभी कारबोंग हिंदू धर्म को मानते हैं।