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विमोचन: संघ प्रमुख भागवत बोले- शिक्षकों को भी करें शिक्षित, ताकि बच्चों को बता सकें भारत का वैभव

डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Tue, 10 Aug 2021 10:44 PM IST

सार

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को दिल्ली में ‘भारत वैभव’ पुस्तक का विमोचन किया। इस मौके पर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी मौजूद थे। 
 

‘भारत वैभव’ पुस्तक का विमोचन करते संघ प्रमुख मोहन भागवत
– फोटो : amar ujala

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संघ प्रमुख मोहन राव भागवत ने मंगलवार शाम को दिल्ली के नेशनल बुक ट्रस्ट के ऑडिटोरियम में लेखक ओम प्रकाश पांडे कि पुस्तक ‘भारत वैभव’ का विमोचन किया। इस कार्यक्रम में केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान भी बतौर अतिथि शामिल थे।
समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि, देश अपनी आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर जो अमृत महोत्सव मना रहा है, उससे पहले ‘भारत वैभव’ किताब का आना एक बेहद शुभ संकेत है। आज हमें अपने शिक्षकों को भारत के गौरव और वैभव को लेकर शिक्षित करने की जरूरत है ताकि वो नई पीढ़ी के बच्चों को इसके बारे में सिखा और बता सकें।
नई शिक्षा नीति का जिक्र करते हुए संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि आज हमें शिक्षा नीति के जरिए फिर से भारतीय मूल्यों की ओर लौटने की जरूरत है। जब हम अपने मूल्यों की ओर लौटते हैं तो इस पर उल्टी सीधी चर्चाएं होती है और इस पर भी होगी।
उन्होंने आगे कहा, हम लोग अपने ज्ञान और संस्कृति के कारण कट्टरता से दूर हैं। इसी कारण हम कभी किसी पर आक्रमण करने जाते हैं, न ही किसी अन्य देश पर राज करने के लिए जाते हैं। हम ज्ञान व संस्कृति के माध्यम से ही दिल जीतते हैं।
भागवत ने आगे कहा, किसी भी समाज, देश या व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए आत्मविश्वास की जरूरत होती है। इसके बिना कुछ भी संभव नहीं होता है। देश में सिकंदर के आने से पहले ही अन्य लोगों का आक्रमण के लिए तांता लगाना शुरू हो गया था। सभी आक्रमणों से देश लगातार लड़ता रहा और जीत हासिल करता रहा। इससे कभी भी हमारी संपूर्ण भूमि गुलाम नहीं हुई। जब कोई आक्रमणकारी देश पर आक्रमण की कोशिश करना शुरू करता था, उसी दिन से उसे उखाड़ने की शुरुआत हो जाती थी।
उन्होंने आगे कहा कि, अंग्रेजों के रूप में भारत में एक दुष्ट शासक ऐसा भी आया, जिसने हमारी संस्कृति और समाज को तोड़ने की पूरी कोशिश की। वे लोग इस काम में कुछ समय तक सफल भी हुए। उन्होंने कुछ विदेशी और स्वदेशी लेखकों को पैसे देकर मनगढ़ंत ग्रंथ और इतिहास भी लिखवाया। जिसे हम आजादी के बाद भी अपने समाज को पढ़ाते रहे। हमें आजादी के बाद फिर से अपनी संस्कृति के तरफ लौटना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब हम धीरे धीरे अपनी संस्कृति की तरफ लौट रहे हैं।

विस्तार

संघ प्रमुख मोहन राव भागवत ने मंगलवार शाम को दिल्ली के नेशनल बुक ट्रस्ट के ऑडिटोरियम में लेखक ओम प्रकाश पांडे कि पुस्तक ‘भारत वैभव’ का विमोचन किया। इस कार्यक्रम में केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान भी बतौर अतिथि शामिल थे।

समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि, देश अपनी आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर जो अमृत महोत्सव मना रहा है, उससे पहले ‘भारत वैभव’ किताब का आना एक बेहद शुभ संकेत है। आज हमें अपने शिक्षकों को भारत के गौरव और वैभव को लेकर शिक्षित करने की जरूरत है ताकि वो नई पीढ़ी के बच्चों को इसके बारे में सिखा और बता सकें।

नई शिक्षा नीति का जिक्र करते हुए संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि आज हमें शिक्षा नीति के जरिए फिर से भारतीय मूल्यों की ओर लौटने की जरूरत है। जब हम अपने मूल्यों की ओर लौटते हैं तो इस पर उल्टी सीधी चर्चाएं होती है और इस पर भी होगी।

उन्होंने आगे कहा, हम लोग अपने ज्ञान और संस्कृति के कारण कट्टरता से दूर हैं। इसी कारण हम कभी किसी पर आक्रमण करने जाते हैं, न ही किसी अन्य देश पर राज करने के लिए जाते हैं। हम ज्ञान व संस्कृति के माध्यम से ही दिल जीतते हैं।

भागवत ने आगे कहा, किसी भी समाज, देश या व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए आत्मविश्वास की जरूरत होती है। इसके बिना कुछ भी संभव नहीं होता है। देश में सिकंदर के आने से पहले ही अन्य लोगों का आक्रमण के लिए तांता लगाना शुरू हो गया था। सभी आक्रमणों से देश लगातार लड़ता रहा और जीत हासिल करता रहा। इससे कभी भी हमारी संपूर्ण भूमि गुलाम नहीं हुई। जब कोई आक्रमणकारी देश पर आक्रमण की कोशिश करना शुरू करता था, उसी दिन से उसे उखाड़ने की शुरुआत हो जाती थी।

उन्होंने आगे कहा कि, अंग्रेजों के रूप में भारत में एक दुष्ट शासक ऐसा भी आया, जिसने हमारी संस्कृति और समाज को तोड़ने की पूरी कोशिश की। वे लोग इस काम में कुछ समय तक सफल भी हुए। उन्होंने कुछ विदेशी और स्वदेशी लेखकों को पैसे देकर मनगढ़ंत ग्रंथ और इतिहास भी लिखवाया। जिसे हम आजादी के बाद भी अपने समाज को पढ़ाते रहे। हमें आजादी के बाद फिर से अपनी संस्कृति के तरफ लौटना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब हम धीरे धीरे अपनी संस्कृति की तरफ लौट रहे हैं।

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