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राहत भरी खबर: महामारी के बावजूद भारत में बेहद गरीब लोगों की संख्या एक फीसदी से कम, आईएमएफ की रिपोर्ट में खुलासा

राहत भरी खबर: महामारी के बावजूद भारत में बेहद गरीब लोगों की संख्या एक फीसदी से कम, आईएमएफ की रिपोर्ट में खुलासा

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: दीपक चतुर्वेदी
Updated Thu, 07 Apr 2022 05:17 PM IST

सार

आईएमएफ का यह वर्किंग पेपर ऐसे समय में समाने आया है जबकि कई रिपोर्टों में जिक्र किया गया है कि भारत में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। पेपर में अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि भारत में बेहद गरीब लोगों की संख्या 0.8 फीसदी ही रह गई है और कोरोना के पहले से यानी 2019 से इसका निचला स्तर बरकरार है। 

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भारत के लिए एक राहत भरी खबर है, जो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से आई है। दरअसल, भारत में बेहद गरीबी में जीवन-यापन करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम रह गई है। आईएफएफ के नए वर्किंग पेपर के अनुसार, ऐसे लोगों का आंकड़ा अब एक फीसदी से भी कम रह गया है। इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि असमानता का दायरा भी कम हुआ है। 

असमानता 30 साल के निम्न स्तर पर
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का यह वर्किंग पेपर अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला, अरविंद विरमानी और करण भसीन ने तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि भारत में बेहद गरीब लोगों की संख्या कोरोना महामारी के संकट काल में भी इसी स्तर पर स्थिर रही है। अर्थशास्त्रियों ने कहा कि देश में असमानता का स्तर 30 सालों के निचले स्तर पर पहुंच गया है।  पेपर में आंकड़ों के साथ कहा गया कि देश में खाद्य सब्सिडी के बाद की असमानता अब 0.294 के स्तर पर है जो कि 1993/94 में देखे गए अपने निम्नतम 0.284 के स्तर के बेहद करीब है।

0.8 फीसदी बेहद गरीब भारतीय
गौरतबल है कि आईएमएफ का यह वर्किंग पेपर ऐसे समय में समाने आया है जबकि कई रिपोर्टों में इस बात का जिक्र किा गया है कि भारत में अमीरों और गरीबों के बीच जो खाई है वो लगातार बढ़ती जा रही है। इस वर्किंग पेपर को पांच अप्रैल को पब्लिश किया गया था। इसमें आईएमएफ के अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि भारत में बेहद गरीब लोगों की संख्या 0.8 फीसदी ही रह गई है और कोरोना के पहले से यानी 2019 से इसका निचला स्तर बरकरार है। यह पेपर 2004-05 से 2020-21 तक प्रत्येक वर्ष के लिए भारत में गरीबी और उपभोग असमानता का अनुमान प्रदर्शित करता है।

सरकारी योजनाओं को दिया श्रेय
पेपर में पहली बार, गरीबी और असमानता पर अपनी तरह की खाद्य सब्सिडी का प्रभाव शामिल किया गया है। इस उपलब्धि के लिए आईएमएफ के अर्थशास्त्रियों ने भारत सरकार की ओर से देश में संचालित की जा रहीं लाभकारी योजनाओं को श्रेय दिया है। खासतौर से उन योजनाओं को जो कि राशन से जुड़ी हुई हैं। पेपर में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) का जिक्र किया गया और इसे मील का पत्थर करार दिया गया है। कहा गया है कि राशन यह सुनिश्चित करने में अहम रहा है कि कोरोना महामारी के साल 2020 में बेहद गरीब लोगों की संख्या नहीं बढ़ी। पेपर में कहा गया कि भारत में खाद्य सब्सिडी प्रोग्राम के तहत मिली सामजिक सुरक्षा ने महामारी के असर को कम करने का काम किया है।

2020 में शुरू की गई थी योजना
बता दें कि पीएमजीकेवाई योजना के तहत मुफ्त अनाज की आपूर्ति वित्त अप्रैल-जून 2020 के लिए शुरू हुई थी, जिसे बाद में नवंबर, 2020 तक बढ़ाया गया था। महामारी की दूसरी लहर के मद्देनजर, इसे फिर मई 2021 में शुरू कर दिया गया और वित्त वर्ष 22-अंत तक बढ़ा दिया गया। हाल ही में, इसे सितंबर 2022 तक बढ़ाया गया है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत, 81.35 करोड़ से अधिक लोग प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलो मुफ्त गेहूं और  चावल के साथ-साथ प्रत्येक परिवार को प्रति माह एक किलो मुफ्त साबुत चना के पात्र हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की ओर से इस योजना में किए गए नवीनतम विस्तार से केंद्र के 80,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

विस्तार

भारत के लिए एक राहत भरी खबर है, जो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से आई है। दरअसल, भारत में बेहद गरीबी में जीवन-यापन करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम रह गई है। आईएफएफ के नए वर्किंग पेपर के अनुसार, ऐसे लोगों का आंकड़ा अब एक फीसदी से भी कम रह गया है। इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि असमानता का दायरा भी कम हुआ है। 

असमानता 30 साल के निम्न स्तर पर

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का यह वर्किंग पेपर अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला, अरविंद विरमानी और करण भसीन ने तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि भारत में बेहद गरीब लोगों की संख्या कोरोना महामारी के संकट काल में भी इसी स्तर पर स्थिर रही है। अर्थशास्त्रियों ने कहा कि देश में असमानता का स्तर 30 सालों के निचले स्तर पर पहुंच गया है।  पेपर में आंकड़ों के साथ कहा गया कि देश में खाद्य सब्सिडी के बाद की असमानता अब 0.294 के स्तर पर है जो कि 1993/94 में देखे गए अपने निम्नतम 0.284 के स्तर के बेहद करीब है।

0.8 फीसदी बेहद गरीब भारतीय

गौरतबल है कि आईएमएफ का यह वर्किंग पेपर ऐसे समय में समाने आया है जबकि कई रिपोर्टों में इस बात का जिक्र किा गया है कि भारत में अमीरों और गरीबों के बीच जो खाई है वो लगातार बढ़ती जा रही है। इस वर्किंग पेपर को पांच अप्रैल को पब्लिश किया गया था। इसमें आईएमएफ के अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि भारत में बेहद गरीब लोगों की संख्या 0.8 फीसदी ही रह गई है और कोरोना के पहले से यानी 2019 से इसका निचला स्तर बरकरार है। यह पेपर 2004-05 से 2020-21 तक प्रत्येक वर्ष के लिए भारत में गरीबी और उपभोग असमानता का अनुमान प्रदर्शित करता है।

सरकारी योजनाओं को दिया श्रेय

पेपर में पहली बार, गरीबी और असमानता पर अपनी तरह की खाद्य सब्सिडी का प्रभाव शामिल किया गया है। इस उपलब्धि के लिए आईएमएफ के अर्थशास्त्रियों ने भारत सरकार की ओर से देश में संचालित की जा रहीं लाभकारी योजनाओं को श्रेय दिया है। खासतौर से उन योजनाओं को जो कि राशन से जुड़ी हुई हैं। पेपर में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) का जिक्र किया गया और इसे मील का पत्थर करार दिया गया है। कहा गया है कि राशन यह सुनिश्चित करने में अहम रहा है कि कोरोना महामारी के साल 2020 में बेहद गरीब लोगों की संख्या नहीं बढ़ी। पेपर में कहा गया कि भारत में खाद्य सब्सिडी प्रोग्राम के तहत मिली सामजिक सुरक्षा ने महामारी के असर को कम करने का काम किया है।

2020 में शुरू की गई थी योजना

बता दें कि पीएमजीकेवाई योजना के तहत मुफ्त अनाज की आपूर्ति वित्त अप्रैल-जून 2020 के लिए शुरू हुई थी, जिसे बाद में नवंबर, 2020 तक बढ़ाया गया था। महामारी की दूसरी लहर के मद्देनजर, इसे फिर मई 2021 में शुरू कर दिया गया और वित्त वर्ष 22-अंत तक बढ़ा दिया गया। हाल ही में, इसे सितंबर 2022 तक बढ़ाया गया है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत, 81.35 करोड़ से अधिक लोग प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलो मुफ्त गेहूं और  चावल के साथ-साथ प्रत्येक परिवार को प्रति माह एक किलो मुफ्त साबुत चना के पात्र हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की ओर से इस योजना में किए गए नवीनतम विस्तार से केंद्र के 80,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

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