वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, दुबई
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Wed, 24 Nov 2021 06:32 PM IST
सार
पर्यवेक्षकों के मुताबिक अमेरिका, इस्राइल, यूएई और जॉर्डन के बीच जिस ऊर्जा परियोजना पर सहमति बनी है, वह इस क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग की सबसे बड़ी परियोजना होगी। इसके तहत यूएई की कंपनी मसदार जॉर्डन के रेगिस्तान में सोलर एनर्जी फार्म की स्थापना करेगी। उधर जॉर्डन इस्राइल को दिए जाने वाले पानी की मात्रा दोगुना कर देगा…
यूएई में चीनी बंदरगाह
– फोटो : Agency
अमेरिका, इस्राइल, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई). और जॉर्डन के बीच जल के बदले ऊर्जा परियोजना पर बनी सहमति के ठीक पहले ये खबर आई कि अबू धाबी में चीन की एक निर्माण परियोजना पर काम रोक दिया गया है। बताया जाता है कि चीनी की परियोजना को रुकवाने के लिए अमेरिका ने यूएई पर जोरदार दबाव डाला।
जबकि एक ऐसी परियोजना पर सहमति बनी है, जिससे अमेरिका के सहयोगी देश इस्राइल को फायदा होगा। पश्चिम एशिया में यूएई और जॉर्डन उन देशों में हैं, जिन्हें अमेरिकी प्रभाव क्षेत्र में समझा जाता है। अमेरिकी प्रभाव के कारण ही इन दोनों देशों ने पिछले कुछ समय में इस्राइल से अपने रिश्ते सामान्य बनाए हैं।
इस्राइल की सुरक्षा पुख्ता होगी
पर्यवेक्षकों के मुताबिक अमेरिका, इस्राइल, यूएई और जॉर्डन के बीच जिस ऊर्जा परियोजना पर सहमति बनी है, वह इस क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग की सबसे बड़ी परियोजना होगी। इसके तहत यूएई की कंपनी मसदार जॉर्डन के रेगिस्तान में सोलर एनर्जी फार्म की स्थापना करेगी। उधर जॉर्डन इस्राइल को दिए जाने वाले पानी की मात्रा दोगुना कर देगा। इस्राइल सौर ऊर्जा परियोजना के लिए मसदार कंपनी और जॉर्डन की सरकार को 18 करोड़ डॉलर का सालाना भुगतान करेगा। कहा गया है कि इस परियोजना के पूरा होने पर इससे जुड़े सभी पक्षों को लाभ होगा। इसमें अमेरिका का फायदा यह है कि इस क्षेत्र के देशों में बेहतर रिश्ते बनने से उसके सहयोगी इस्राइल की सुरक्षा पुख्ता होगी।
इस बीच अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन ने खबर दी है कि अमेरिकी दबाव में चीन की एक बंदरगाह परियोजना यूएई ने रोक दी है। अमेरिका की राय है कि इस चीनी परियोजना से यूएई में सुरक्षा संबंधी चिंताएं पैदा होतीं। इस परियोजना पर काम रुक गया है, इसकी खबर सबसे पहले अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने दी। बाद में सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि काम अमेरिकी दबाव में रोका गया है।
अमेरिकी सैन्य अड्डों को खतरा
सीएनएन के मुताबिक हाल के महीनों में अमेरिकी कूटनीतिकों ने लगातार यूएई से संपर्क बनाए रखा। उधर कुछ अमेरिकी सांसदों ने ये धमकी दी थी कि अगर ये परियोजना नहीं रोकी गई, तो यूईए को होने वाली अमेरिकी लड़ाकू विमानों और अन्य हथियारों की बिक्री को वो रोकने की कोशिश करेंगे।
खबरों के मुताबिक चीन अबू धाबी के खलीफा बंदरगाह में निर्माण कर रहा था। ये व्यापारिक बंदरगाह है, जबकि अमेरिका को शक था कि चीन वहां सैन्य सुविधाएं बना रहा है। अमेरिका का यूएई में सैनिक अड्डा है। उसकी दूरी अबू धाबी से 32 किलोमीटर दूर है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक अमेरिका नहीं चाहता है कि उसके प्रभाव क्षेत्र में चीन की किसी प्रकार की पैठ बने।
उस निर्माण के लिए हुए करार के बारे में यूएई और चीन ने कहा था कि वह विशुद्ध रूप से व्यापारिक उद्देश्य से है। चीन इस समय दुनिया भर के बहुत से देशों में बंदरगाह बना रहा है। उसने श्रीलंका और पकिस्तान में भी ऐसे निर्माण किए हैं। अमेरिक को शक रहा है कि इन बंदरगाहों का आगे चल कर सैनिक मकसदों से इस्तेमाल किया जा सकता है। सीएनएन ने बाइडन प्रशासन के सूत्रों के हवाले से कहा है कि इसीलिए अमेरिका ने यूएई पर दबाव डाला।
विस्तार
अमेरिका, इस्राइल, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई). और जॉर्डन के बीच जल के बदले ऊर्जा परियोजना पर बनी सहमति के ठीक पहले ये खबर आई कि अबू धाबी में चीन की एक निर्माण परियोजना पर काम रोक दिया गया है। बताया जाता है कि चीनी की परियोजना को रुकवाने के लिए अमेरिका ने यूएई पर जोरदार दबाव डाला।
जबकि एक ऐसी परियोजना पर सहमति बनी है, जिससे अमेरिका के सहयोगी देश इस्राइल को फायदा होगा। पश्चिम एशिया में यूएई और जॉर्डन उन देशों में हैं, जिन्हें अमेरिकी प्रभाव क्षेत्र में समझा जाता है। अमेरिकी प्रभाव के कारण ही इन दोनों देशों ने पिछले कुछ समय में इस्राइल से अपने रिश्ते सामान्य बनाए हैं।
इस्राइल की सुरक्षा पुख्ता होगी
पर्यवेक्षकों के मुताबिक अमेरिका, इस्राइल, यूएई और जॉर्डन के बीच जिस ऊर्जा परियोजना पर सहमति बनी है, वह इस क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग की सबसे बड़ी परियोजना होगी। इसके तहत यूएई की कंपनी मसदार जॉर्डन के रेगिस्तान में सोलर एनर्जी फार्म की स्थापना करेगी। उधर जॉर्डन इस्राइल को दिए जाने वाले पानी की मात्रा दोगुना कर देगा। इस्राइल सौर ऊर्जा परियोजना के लिए मसदार कंपनी और जॉर्डन की सरकार को 18 करोड़ डॉलर का सालाना भुगतान करेगा। कहा गया है कि इस परियोजना के पूरा होने पर इससे जुड़े सभी पक्षों को लाभ होगा। इसमें अमेरिका का फायदा यह है कि इस क्षेत्र के देशों में बेहतर रिश्ते बनने से उसके सहयोगी इस्राइल की सुरक्षा पुख्ता होगी।
इस बीच अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन ने खबर दी है कि अमेरिकी दबाव में चीन की एक बंदरगाह परियोजना यूएई ने रोक दी है। अमेरिका की राय है कि इस चीनी परियोजना से यूएई में सुरक्षा संबंधी चिंताएं पैदा होतीं। इस परियोजना पर काम रुक गया है, इसकी खबर सबसे पहले अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने दी। बाद में सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि काम अमेरिकी दबाव में रोका गया है।
अमेरिकी सैन्य अड्डों को खतरा
सीएनएन के मुताबिक हाल के महीनों में अमेरिकी कूटनीतिकों ने लगातार यूएई से संपर्क बनाए रखा। उधर कुछ अमेरिकी सांसदों ने ये धमकी दी थी कि अगर ये परियोजना नहीं रोकी गई, तो यूईए को होने वाली अमेरिकी लड़ाकू विमानों और अन्य हथियारों की बिक्री को वो रोकने की कोशिश करेंगे।
खबरों के मुताबिक चीन अबू धाबी के खलीफा बंदरगाह में निर्माण कर रहा था। ये व्यापारिक बंदरगाह है, जबकि अमेरिका को शक था कि चीन वहां सैन्य सुविधाएं बना रहा है। अमेरिका का यूएई में सैनिक अड्डा है। उसकी दूरी अबू धाबी से 32 किलोमीटर दूर है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक अमेरिका नहीं चाहता है कि उसके प्रभाव क्षेत्र में चीन की किसी प्रकार की पैठ बने।
उस निर्माण के लिए हुए करार के बारे में यूएई और चीन ने कहा था कि वह विशुद्ध रूप से व्यापारिक उद्देश्य से है। चीन इस समय दुनिया भर के बहुत से देशों में बंदरगाह बना रहा है। उसने श्रीलंका और पकिस्तान में भी ऐसे निर्माण किए हैं। अमेरिक को शक रहा है कि इन बंदरगाहों का आगे चल कर सैनिक मकसदों से इस्तेमाल किया जा सकता है। सीएनएन ने बाइडन प्रशासन के सूत्रों के हवाले से कहा है कि इसीलिए अमेरिका ने यूएई पर दबाव डाला।
Source link
Share this:
-
Click to share on Facebook (Opens in new window)
-
Like this:
Like Loading...