न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: प्रांजुल श्रीवास्तव
Updated Sat, 27 Nov 2021 12:44 PM IST
सार
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि कृषि कानूनों की वापसी की प्रक्रिया शुरू हो गई है अब किसान आंदोलन का कोई औचित्य नहीं बनता है। किसान बड़े मन का परिचय दें। प्रधानमंत्री की घोषणा का आदर करें और अपने-अपने घर लौटना सुनिश्चित करें।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पराली जलाने पर किया बड़ा एलान।
– फोटो : Amar Ujala
देश में अब पराली जलाना अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। यह घोषणा केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शनिवार को की। उन्होंने कहा कि यह किसान संगठनों की बड़ी मांगों में से एक मांग थी कि पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा जाए, इसलिए किसानों की यह मांग केंद्र सरकार ने मान ली है। दरअसल, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दस दिसंबर 2015 को फसल अवशेषों पर जलाने का प्रतिबंध लगा दिया था। पराली जलाने पर कानूनी तौर पर कार्रवाई भी की जाती थी। पराली जलाते पकड़े जाने पर दो एकड़ भूमि तक 2,500 रुपये, दो से पांच एकड़ भूमि तक 5,000 रुपये और पांच एकड़ से ज्यादा भूमि पर 15,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता था।
इस दौरान कृषि मंत्री ने किसान संगठनों से आंदोलन खत्म करने की अपील करते हुए कहा कि कृषि कानूनों की वापसी की प्रक्रिया शुरू हो गई है अब किसान आंदोलन का कोई औचित्य नहीं बनता है। किसान बड़े मन का परिचय दें। प्रधानमंत्री की घोषणा का आदर करें और अपने-अपने घर लौटना सुनिश्चित करें।
संसद के पहले दिन सूचीबद्ध होगा कृषि कानून वापसी का विधेयक
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि शीतकालीन सत्र के पहले दिन 29 नवंबर को ही तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के विधेयक को सूचीबद्ध किया जाएगा। पीएम मोदी द्वारा तीनों कृषि कानून बिल को वापस लिए जाने की घोषणा के बाद मोदी कैबिनेट ने भी प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी।
किसानों की समस्या हल करने के लिए बनाई गई कमेटी
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार की ओर से किसानों की समस्याओं के निवारण के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है। उन्होंने कहा कि इस कमेटी के गठन से किसानों की एमएसपी संबंधित मांग भी पूरी हो गई है। उन्होंने कहा कि एमएसपी में पारदर्शिता, जीरो बजट खेती और फसल विविधीकरण लाने के लिए एक समिति का गठन करने की घोषणा की है इस समिति में किसान प्रतिनिधि होंगे।
किसानों पर मुकदमे और मुआवजे का निर्णय राज्य का
कृषि मंत्री ने कहा कि आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज किए गए मुकदमों को वापस लिए जाने और उन्हें मुआवजा दिए जाने का अधिकार राज्य सरकारों का है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में राज्य सरकारें मुकदमे की गंभीरता को देखते हुए अपने-अपने राज्य की नीति के अनुसार निर्णय ले सकती हैं।
विस्तार
देश में अब पराली जलाना अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। यह घोषणा केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शनिवार को की। उन्होंने कहा कि यह किसान संगठनों की बड़ी मांगों में से एक मांग थी कि पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा जाए, इसलिए किसानों की यह मांग केंद्र सरकार ने मान ली है। दरअसल, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दस दिसंबर 2015 को फसल अवशेषों पर जलाने का प्रतिबंध लगा दिया था। पराली जलाने पर कानूनी तौर पर कार्रवाई भी की जाती थी। पराली जलाते पकड़े जाने पर दो एकड़ भूमि तक 2,500 रुपये, दो से पांच एकड़ भूमि तक 5,000 रुपये और पांच एकड़ से ज्यादा भूमि पर 15,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता था।
इस दौरान कृषि मंत्री ने किसान संगठनों से आंदोलन खत्म करने की अपील करते हुए कहा कि कृषि कानूनों की वापसी की प्रक्रिया शुरू हो गई है अब किसान आंदोलन का कोई औचित्य नहीं बनता है। किसान बड़े मन का परिचय दें। प्रधानमंत्री की घोषणा का आदर करें और अपने-अपने घर लौटना सुनिश्चित करें।
संसद के पहले दिन सूचीबद्ध होगा कृषि कानून वापसी का विधेयक
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि शीतकालीन सत्र के पहले दिन 29 नवंबर को ही तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के विधेयक को सूचीबद्ध किया जाएगा। पीएम मोदी द्वारा तीनों कृषि कानून बिल को वापस लिए जाने की घोषणा के बाद मोदी कैबिनेट ने भी प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी।
किसानों की समस्या हल करने के लिए बनाई गई कमेटी
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार की ओर से किसानों की समस्याओं के निवारण के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है। उन्होंने कहा कि इस कमेटी के गठन से किसानों की एमएसपी संबंधित मांग भी पूरी हो गई है। उन्होंने कहा कि एमएसपी में पारदर्शिता, जीरो बजट खेती और फसल विविधीकरण लाने के लिए एक समिति का गठन करने की घोषणा की है इस समिति में किसान प्रतिनिधि होंगे।
किसानों पर मुकदमे और मुआवजे का निर्णय राज्य का
कृषि मंत्री ने कहा कि आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज किए गए मुकदमों को वापस लिए जाने और उन्हें मुआवजा दिए जाने का अधिकार राज्य सरकारों का है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में राज्य सरकारें मुकदमे की गंभीरता को देखते हुए अपने-अपने राज्य की नीति के अनुसार निर्णय ले सकती हैं।
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