सार
चीन नेपाल की सीमा पर ट्रांस-हिमालयी रेलवे पर काम कर रहा है जो मात्र राजनीतिक प्रतीकवाद है। सूत्रों की मानें तो इस प्रोजेक्ट का असली मकसद भारत को घेरना है। इसके जरिये चीन तेजी से अपने सैनिकों को नेपाल की सीमा में भेज सकता है।
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द एसके पोस्ट के अनुसार, चीन ने अपनी सीमाओं के अंदर रेल संपर्क पर काफी तेजी से प्रगति की है और अब वह नेपाल की सीमा पर ट्रांस-हिमालयी रेलवे पर काम कर रहा है जो मात्र राजनीतिक प्रतीकवाद है। सूत्रों की मानें तो इस प्रोजेक्ट का असली मकसद भारत को घेरना है। इसके जरिये चीन तेजी से अपने सैनिकों को नेपाल की सीमा में भेज सकता है।
काठमांडो में चीनी दूतावास ने नेपाली अधिकारियों को बताया कि बीजिंग प्रस्तावित चीन-नेपाल क्रॉस बॉर्डर रेलवे (सीएनआर) प्रोजेक्ट की व्यवहार्यता अध्ययन में सहायता की सुविधा के लिए एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने को तैयार है। यह प्रोजेक्ट तिब्बत में केयरोंग को काठमांडो से जोड़ेगा।
इससे पहले 2018 में चाइना रेलवे फर्स्ट सर्वे एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट (सीआरएफएसडीआई) ने केयरोंग से काठमांडो के बीच प्रस्तावित 121 किलोमीटर रेल मार्ग की तकनीकी अध्ययन किया था।
द एचके पोस्ट के अनुसार, सीआरएफएसडीआई के अध्ययन का अनुमान है कि केयरोंग-काठमांडो रेल ट्रैक को विकसित करने में नौ साल और 30 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल की ओर करीब 98 प्रतिशत रेलवे में सुरंग और पुल होंगे और इस प्रोजेक्ट पर वर्तमान अनुमान से कहीं अधिक लागत आएगी। इसके साथ ही चीन को निवेश की वसूली के लिए न्यूनतम 40 वर्षों की आवश्यकता होगी।
नेपाल दौरे के दौरान जिनपिंग ने किया था करार
ट्रांस-हिमालयन मल्टी-डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क को ट्रांस-हिमालयी नेटवर्क के रूप में भी जाना जाता है। यह नेपाल और चीन के बीच एक आर्थिक गलियारा है। यह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है जो विशेष रूप से पूरे यूरेशिया में कनेक्टिविटी विकसित करता है। 2019 में नेपाल की यात्रा के दौरान इस कॉरिडोर पर चीनी राष्ट्रपति और कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव शी जिनपिंग ने नेपाल के साथ समझौता किया था। इस कॉरिडोर में कई परिवहन बुनियादी ढांचा परियोजनाएं भी शामिल होंगी। प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजना चीन-नेपाल रेलवे है, जो वर्तमान में अध्ययन के चरण में है।
नेपाल को पड़ेगा काफी महंगा
हालांकि नेपाल को भी यह अच्छी तरह से पता है कि काठमांडो चीन रेल संपर्क उसके लिए काफी कठिनाई वाला और महंगा साबित होगा। नेपाल हिमालय में मुश्किल और महंगी सुरंगों के निर्माण की लागत चुका नहीं पाएगा।