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टीकाकरण की धीमी रफ्तार: कोरोना वैक्सीन लगवाने को मजबूर करने के लिए अब यूरोप में सख्ती का सहारा

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ब्रसेल्स
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 27 Jul 2021 02:59 PM IST

सार

आलोचकों ने कहा है कि सरकारें नए नियमों के जरिए युवा आबादी को खासा निशाना बना रही हैं। मसलन, बार और नाइट क्लबों में बिना सर्टिफिकेट के जाने पर रोक लगाई जा रही है। कई युवाओं ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि चाहे जितनी जबर्दस्ती की जाए, वे टीका नहीं लगवाएंगे…

कोरोना वैक्सीनेशन
– फोटो : PTI (फाइल फोटो)

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यूरोप में अनिच्छुक नागरिकों को वैक्सीन लगवाने के लिए कैसे राजी किया जाए, यह वहां की सरकारों के लिए बड़ी दुविधा बना हुआ है। हाल के समय में यूरोप में टीकाकरण की रफ्तार धीमी हुई है। यूरोपियन यूनियन (ईयू) के अधिकारियों का अनुमान है कि अब तक ईयू क्षेत्र में लगभग 55 फीसदी बालिग लोगों का टीकाकरण हुआ है। जबकि ईयू ने जुलाई के अंत तक 70 फीसदी लोगों का टीकाकरण कर देने का लक्ष्य रखा था। अब ये साफ है कि यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सकेगा। जर्मनी और फ्रांस जैसे बड़े देशों में तो अभी तक आधे से भी कम लोगों को वैक्सीन लगी है।

फ्रांस में संक्रमण के ताजा सामने आए मामलों में आधे से ज्यादा पीड़ित लोग 10 वर्ष से 29 वर्ष तक की उम्र के हैं। जर्मनी में भी युवा लोगों में संक्रमण के मामले हाल में बढ़े रहे हैं। इसे देखते हुए टीकाकरण की रफ्तार तेज करना सरकारों की प्राथमिकता है। लेकिन समस्या ऐसे लोगों से आ रही है, जो टीका लगवाने के लिए तैयार नहीं हैं। यूरोपीय देशों में पहले टीकाकरण के लिए कई प्रोत्साहन स्कीम घोषित की गईं। इनमें नकद भुगतान, फ्री फोन डेटा देना, फुटबॉल मैचों के मुफ्त टिकट देना, मुफ्त में ग्रिल्ड मीट देना आदि शामिल है।

लेकिन इन उपायों के बावजूद टीकाकरण की रफ्तार गिर जाने से ईयू में चिंता बढ़ी है। इसलिए अब कुछ देशों की सरकारें सख्ती बरतने का इरादा जता रही हैं। फ्रांस में संसद ने एक बिल पारित किया है, जिसके तहत रेस्तरां या बार में जाने, ट्रेन या विमान में चढ़ने आदि से पहले टीकाकरण का सबूत या निगेटिव आरटी-पीसीआर टेस्ट का प्रमाण पत्र दिखाना जरूरी हो जाएगा। ये नियम एक अगस्त से लागू हो जाएंगे। इटली में भी इंडोर स्थलों में जाने के इच्छुक लोगों पर ऐसे ही नियम लागू करने की घोषणा की गई है।

ऐसे नियमों के खिलाफ कई यूरोपीय देशों में विरोध भड़क उठा है। साथ ही वहां के मीडिया में ये बहस तेज हो गई है कि टीका लगवाने या न लगवाने का फैसला व्यक्ति का अधिकार है या इस मामले में सरकार जबर्दस्ती कर सकती हैं। लंदन के इम्पेरियल कॉलेज में कोविड-19 संक्रमण पर अनुसंधान कर रहे डॉ. ओलिवर वॉटसन ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा- ‘ये देखना दिलचस्प होगा कि कोविड-19 टीकाकरण प्रमाण पत्र के नियम को लोग कितना बर्दाश्त करते हैं। मार्च 2020 के पहले ये सोचना भी मुश्किल था कि किसी पश्चिमी देश में लॉकडाउन हो सकता है। लेकिन असल में ऐसा हुआ।’ वॉटसन ने कहा कि टीका के मामले में जबर्दस्ती कामयाब होगी या नहीं, यह अभी साफ नहीं है।

आलोचकों ने कहा है कि सरकारें नए नियमों के जरिए युवा आबादी को खासा निशाना बना रही हैं। मसलन, बार और नाइट क्लबों में बिना सर्टिफिकेट के जाने पर रोक लगाई जा रही है। कई युवाओं ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि चाहे जितनी जबर्दस्ती की जाए, वे टीका नहीं लगवाएंगे। फ्रांस में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान आरोप लगाया गया कि सरकारें लोगों की निजी आजादी छीन रही हैं। जबकि सरकारों का कहना है कि महामारी पर काबू पाने के लिए अब सख्ती के अलावा कोई और रास्ता नहीं रह गया है।

विस्तार

यूरोप में अनिच्छुक नागरिकों को वैक्सीन लगवाने के लिए कैसे राजी किया जाए, यह वहां की सरकारों के लिए बड़ी दुविधा बना हुआ है। हाल के समय में यूरोप में टीकाकरण की रफ्तार धीमी हुई है। यूरोपियन यूनियन (ईयू) के अधिकारियों का अनुमान है कि अब तक ईयू क्षेत्र में लगभग 55 फीसदी बालिग लोगों का टीकाकरण हुआ है। जबकि ईयू ने जुलाई के अंत तक 70 फीसदी लोगों का टीकाकरण कर देने का लक्ष्य रखा था। अब ये साफ है कि यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सकेगा। जर्मनी और फ्रांस जैसे बड़े देशों में तो अभी तक आधे से भी कम लोगों को वैक्सीन लगी है।

फ्रांस में संक्रमण के ताजा सामने आए मामलों में आधे से ज्यादा पीड़ित लोग 10 वर्ष से 29 वर्ष तक की उम्र के हैं। जर्मनी में भी युवा लोगों में संक्रमण के मामले हाल में बढ़े रहे हैं। इसे देखते हुए टीकाकरण की रफ्तार तेज करना सरकारों की प्राथमिकता है। लेकिन समस्या ऐसे लोगों से आ रही है, जो टीका लगवाने के लिए तैयार नहीं हैं। यूरोपीय देशों में पहले टीकाकरण के लिए कई प्रोत्साहन स्कीम घोषित की गईं। इनमें नकद भुगतान, फ्री फोन डेटा देना, फुटबॉल मैचों के मुफ्त टिकट देना, मुफ्त में ग्रिल्ड मीट देना आदि शामिल है।

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