अमर उजाला रिसर्च डेस्क, वाशिंगटन।
Published by: देव कश्यप
Updated Sun, 21 Nov 2021 05:01 AM IST
सार
22 देशों के 45 संस्थानों के 57 वैज्ञानिकों ने कहा है कि महासागरों और समुद्री तटीय क्षेत्रों के जल में ऑक्सीजन की कमी के मसले को गंभीरता से लेना होगा। दुनियाभर में मूंगा चट्टान और मछलीपालन को बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर निगरानी करनी होगी।
जलवायु परिवर्तन (प्रतीकात्मक तस्वीर)
– फोटो : अमर उजाला
जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का दुष्प्रभाव महासागरों और समुद्र के तटीय क्षेत्रों के जल में भी दिखने लगा है। सात महाद्वीपों के वैज्ञानिकों ने महासागरों और समुद्र के जल में ऑक्सीजन का मूल्यांकन करने की सलाह दी है। वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि महासागरों और कुछ तटीय क्षेत्रों के जल में ऑक्सीजन की कमी से डेड जोन बन सकता है, जहां कोई भी जीव या पौधा किसी स्थिति में जीवित नहीं रह सकता है। ये घटना दुनिया के लिए नई चुनौती बन सकती है।
वैश्विक स्तर पर निगरानी का वक्त
22 देशों के 45 संस्थानों के 57 वैज्ञानिकों ने कहा है कि महासागरों और समुद्री तटीय क्षेत्रों के जल में ऑक्सीजन की कमी के मसले को गंभीरता से लेना होगा। दुनियाभर में मूंगा चट्टान और मछलीपालन को बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर निगरानी करनी होगी। महासागरों में ऑक्सीजन की कमी से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी नुकसान होगा।
जीवाश्म ईंधन और महासागर
ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन को लेकर आयोजित कॉप-26 बैठक में भी जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को लेकर चर्चा हुई थी। अब वैज्ञानिकों ने कहा है कि जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण महासागरों में गर्मी का स्तर बढ़ रहा है। जीवाश्म ईंधन के जलने से महासागर और समुद्री क्षेत्र भी प्रदूषित हो रहे हैं। दुनियाभर में इसके गंभीर नतीजे मानव जीवन के साथ मछली पालन और ईको सिस्टम पर पड़ना तय है।
कम ऑक्सीजन वाले हॉटस्पॉट की पहचान जरूरी
न्यूयॉर्क के स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रो. करिन लिमबर्ग ने सलाह दी है कि वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में महासागरों के जल में ऑक्सीजन की स्थिति को मापने का वक्त है। वैज्ञानिकों का एक दल कम ऑक्सीजन वाले हॉटस्पॉट की पहचान करे जिससे वहां पर भविष्य के लिए तैयारी की जा सके। जरा सी चूक पूरे जलीय संपदा को नुकसान पहुंचा सकती है, जिसका बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है।
विस्तार
जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का दुष्प्रभाव महासागरों और समुद्र के तटीय क्षेत्रों के जल में भी दिखने लगा है। सात महाद्वीपों के वैज्ञानिकों ने महासागरों और समुद्र के जल में ऑक्सीजन का मूल्यांकन करने की सलाह दी है। वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि महासागरों और कुछ तटीय क्षेत्रों के जल में ऑक्सीजन की कमी से डेड जोन बन सकता है, जहां कोई भी जीव या पौधा किसी स्थिति में जीवित नहीं रह सकता है। ये घटना दुनिया के लिए नई चुनौती बन सकती है।
वैश्विक स्तर पर निगरानी का वक्त
22 देशों के 45 संस्थानों के 57 वैज्ञानिकों ने कहा है कि महासागरों और समुद्री तटीय क्षेत्रों के जल में ऑक्सीजन की कमी के मसले को गंभीरता से लेना होगा। दुनियाभर में मूंगा चट्टान और मछलीपालन को बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर निगरानी करनी होगी। महासागरों में ऑक्सीजन की कमी से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी नुकसान होगा।
जीवाश्म ईंधन और महासागर
ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन को लेकर आयोजित कॉप-26 बैठक में भी जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को लेकर चर्चा हुई थी। अब वैज्ञानिकों ने कहा है कि जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण महासागरों में गर्मी का स्तर बढ़ रहा है। जीवाश्म ईंधन के जलने से महासागर और समुद्री क्षेत्र भी प्रदूषित हो रहे हैं। दुनियाभर में इसके गंभीर नतीजे मानव जीवन के साथ मछली पालन और ईको सिस्टम पर पड़ना तय है।
कम ऑक्सीजन वाले हॉटस्पॉट की पहचान जरूरी
न्यूयॉर्क के स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रो. करिन लिमबर्ग ने सलाह दी है कि वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में महासागरों के जल में ऑक्सीजन की स्थिति को मापने का वक्त है। वैज्ञानिकों का एक दल कम ऑक्सीजन वाले हॉटस्पॉट की पहचान करे जिससे वहां पर भविष्य के लिए तैयारी की जा सके। जरा सी चूक पूरे जलीय संपदा को नुकसान पहुंचा सकती है, जिसका बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है।
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