अमेरिका ने मददगारों को निकालने के लिए जिस ईगल बेस का इस्तेमाल किया, वह काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उत्तर में महज 4.5 किलोमीटर की दूरी पर है। अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान छोड़ने के साथ ही इस बेस को पूरी तरह तबाह कर दिया, ताकि आतंकियों को कोई भी खुफिया जानकारी न मिल पाए।
अमेरिका ने काबुल के बाहर मौजूद एक सीक्रेट सीआईए बेस से अपने नागरिकों को रेस्क्यू किया।
– फोटो : Amar Ujala
अमेरिका ने अफगानिस्तान में फंसे अपने लोगों और मददगारों को निकालने के लिए अगस्त के बीच में जो ऑपरेशन शुरू किया था, उसके 30 अगस्त तक खत्म होने का ऐलान भी कर दिया। इस बीच यह सवाल भी उठे कि आखिर अमेरिका ने इतनी जल्दी अपना मिशन खत्म कैसे कर लिया, वह भी तब जब अमेरिकी अफसर निकासी कार्यक्रम के जल्द खत्म होने पर शंका जता रहे थे। इस बीच अब सामने आया है कि अमेरिका ने अपने नागरिकों को निकालने के लिए सिर्फ काबुल के ही एयरपोर्ट का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि काबुल के बाहर तैयार किए गए एक सीक्रेट बेस का भी इस्तेमाल किया था।
बताया गया है कि अमेरिकी नागरिकों, कमांडो और अपने मददगारों को अफगानिस्तान से निकालने के लिए अमेरिकी सेना ने अपनी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा तैयार करवाए गए बेस का इस्तेमाल किया। जब निकासी कार्यक्रम के दौरान पूरे काबुल पर तालिबान और हक्कानी नेटवर्क का कब्जा हो गया और काबुल एयरपोर्ट पर आईएस आतंकियों के हमले का खतरे की खुफिया जानकारी मिलने लगी, तब यह बेस हजारों लोगों को गुपचुप तरीके से निकालने के काम आया।
अमेरिका की नागिरकों को निकालने की इस कोशिश का पहला जिक्र द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में मिलता है। बाद में अमेरिकी मैगजीन पॉलिटिको ने भी अफसरों के जरिए इस पूरे घटनाक्रम की पुष्टि की है। इस बारे में अब तक जो फ्लाइट डेटा निकला है, उसके मुताबिक कुछ लोगों को इस सीक्रेट बेस (जिसे ईगल बेस नाम दिया गया) से सीधा हेलिकॉप्टर-चॉपर के जरिए एयरपोर्ट पहुंचाया गया। इसकी वजह यह थी कि काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद शहर के हालात काफी संवेदनशील हो गए थे और सुरक्षा के लिए लगाई गई चेकिंग भी खतरनाक हो सकती थीं। ऐसे में अमेरिकी नागरिकों को सीधा एयरपोर्ट के अंदर पहुंचा दिया गया।
फ्लाइट डेटा के मुताबिक, इस मिशन के लिए अमेरिकी सेना ने अपने हेलिकॉप्टर या चॉपर नहीं, बल्कि रूस के बने एमआई-17 हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल किया, जिन्हें अक्सर अफगान सैनिक उड़ाते थे। इतना ही नहीं अमेरिकी नागरिकों और उनके मददगारों को एयरपोर्ट पहुंचाने के बाद सीधा अमेरिका की फ्लाइट में नहीं बिठाया गया, वर्ना आतंकियों को शक हो सकता था। उन्हें पहले अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टर के विमान में बिठाकर काबुल एयरपोर्ट से जर्मनी के रैमस्टीन एयरबेस पहुंचाया गया और बाद में अमेरिका भेजा गया।
सीआईए का ईगल बेस काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उत्तर में महज 4.5 किलोमीटर की दूरी पर है। अफगानिस्तान में पकड़े गए संदिग्ध आतंकियों से पूछताछ के लिए इस बेस का 2002 से लेकर 2004 तक इस्तेमाल किया गया। बाद में सीआईए ने इसे अफगानिस्तान की आतंकरोधी सेना को तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया।
रिपोर्ट्स की मानें तो अमेरिकी सेना ने आखिरी उड़ान से ठीक इस बेस को नष्ट कर दिया था, ताकि आतंकी ताकतें इसका और इसमें रखी गईं गोपनीय जानकारियों का इस्तेमाल न कर पाएं। दरअसल, सीआईए ने इसमें कई ऐसे रिकॉर्ड्स छिपा रखे थे, जिनका दुश्मन ताकतों के हाथ लगना अफगानिस्तान में रहने वाले मददगारों और उनके परिवारों के लिए खतरनाक साबित हो सकता था।
विस्तार
अमेरिका ने अफगानिस्तान में फंसे अपने लोगों और मददगारों को निकालने के लिए अगस्त के बीच में जो ऑपरेशन शुरू किया था, उसके 30 अगस्त तक खत्म होने का ऐलान भी कर दिया। इस बीच यह सवाल भी उठे कि आखिर अमेरिका ने इतनी जल्दी अपना मिशन खत्म कैसे कर लिया, वह भी तब जब अमेरिकी अफसर निकासी कार्यक्रम के जल्द खत्म होने पर शंका जता रहे थे। इस बीच अब सामने आया है कि अमेरिका ने अपने नागरिकों को निकालने के लिए सिर्फ काबुल के ही एयरपोर्ट का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि काबुल के बाहर तैयार किए गए एक सीक्रेट बेस का भी इस्तेमाल किया था।
किसने बनाई सीक्रेट बेस से लोगों को निकालने की योजना?
अमेरिका ने काबुल के बाहर मौजूद एक सीक्रेट सीआईए बेस से अपने नागरिकों को रेस्क्यू किया।
– फोटो : Amar Ujala
बताया गया है कि अमेरिकी नागरिकों, कमांडो और अपने मददगारों को अफगानिस्तान से निकालने के लिए अमेरिकी सेना ने अपनी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा तैयार करवाए गए बेस का इस्तेमाल किया। जब निकासी कार्यक्रम के दौरान पूरे काबुल पर तालिबान और हक्कानी नेटवर्क का कब्जा हो गया और काबुल एयरपोर्ट पर आईएस आतंकियों के हमले का खतरे की खुफिया जानकारी मिलने लगी, तब यह बेस हजारों लोगों को गुपचुप तरीके से निकालने के काम आया।
अमेरिका की नागिरकों को निकालने की इस कोशिश का पहला जिक्र द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में मिलता है। बाद में अमेरिकी मैगजीन पॉलिटिको ने भी अफसरों के जरिए इस पूरे घटनाक्रम की पुष्टि की है। इस बारे में अब तक जो फ्लाइट डेटा निकला है, उसके मुताबिक कुछ लोगों को इस सीक्रेट बेस (जिसे ईगल बेस नाम दिया गया) से सीधा हेलिकॉप्टर-चॉपर के जरिए एयरपोर्ट पहुंचाया गया। इसकी वजह यह थी कि काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद शहर के हालात काफी संवेदनशील हो गए थे और सुरक्षा के लिए लगाई गई चेकिंग भी खतरनाक हो सकती थीं। ऐसे में अमेरिकी नागरिकों को सीधा एयरपोर्ट के अंदर पहुंचा दिया गया।
अमेरिकी नागरिकों और मददगारों को लेकर सीधा अमेरिका नहीं गईं फ्लाइट्स
फ्लाइट डेटा के मुताबिक, इस मिशन के लिए अमेरिकी सेना ने अपने हेलिकॉप्टर या चॉपर नहीं, बल्कि रूस के बने एमआई-17 हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल किया, जिन्हें अक्सर अफगान सैनिक उड़ाते थे। इतना ही नहीं अमेरिकी नागरिकों और उनके मददगारों को एयरपोर्ट पहुंचाने के बाद सीधा अमेरिका की फ्लाइट में नहीं बिठाया गया, वर्ना आतंकियों को शक हो सकता था। उन्हें पहले अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टर के विमान में बिठाकर काबुल एयरपोर्ट से जर्मनी के रैमस्टीन एयरबेस पहुंचाया गया और बाद में अमेरिका भेजा गया।
क्या थी सीआईए के ईगल बेस की लोकेशन?
सीआईए का ईगल बेस काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उत्तर में महज 4.5 किलोमीटर की दूरी पर है। अफगानिस्तान में पकड़े गए संदिग्ध आतंकियों से पूछताछ के लिए इस बेस का 2002 से लेकर 2004 तक इस्तेमाल किया गया। बाद में सीआईए ने इसे अफगानिस्तान की आतंकरोधी सेना को तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया।
रिपोर्ट्स की मानें तो अमेरिकी सेना ने आखिरी उड़ान से ठीक इस बेस को नष्ट कर दिया था, ताकि आतंकी ताकतें इसका और इसमें रखी गईं गोपनीय जानकारियों का इस्तेमाल न कर पाएं। दरअसल, सीआईए ने इसमें कई ऐसे रिकॉर्ड्स छिपा रखे थे, जिनका दुश्मन ताकतों के हाथ लगना अफगानिस्तान में रहने वाले मददगारों और उनके परिवारों के लिए खतरनाक साबित हो सकता था।