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कारगिल विजय दिवस: सेना को और अधिक मजबूत करने और पूर्व सैनिकों के लिए आयोग की उठी मांग

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Mon, 26 Jul 2021 09:43 PM IST

सार

भारत तिब्बत समन्वय संघ ने कारगिल विजय दिवस के मौके पर एक वेबिनार आयोजित किया। इसमें कारगिल नायकों ने अपने विचार रखे।

वेबिनार में विचार रखते मेजर दीपक गुलाटी
– फोटो : self

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कारगिल विजय दिवस के मौके पर आयोजित एक वेबिनार में इस युद्ध के नायक रहे मेजर दीपक गुलाटी ने कहा है कि ऐसी जंग की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सेना को और अधिक मजबूत करने की जरूरत है। साथ ही सरकार को पूर्व सैनिकों के लिए भी एक आयोग का गठन करना चाहिए। 

मेजर गुलाटी भारत तिब्बत समन्वय संघ के कारगिल विजय दिवस पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध अभी तक लड़े गए बाकी युद्धों से बिल्कुल अलग तरह का युद्ध था। कारगिल का युद्ध 12 हजार से 16 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था। भारतीय सेना के लिए यह इस तरह का यह पहला युद्ध था। अन्य किसी भी साधारण युद्ध में हमलावर बनाम रक्षक का अनुपात 3 व 1 का होता है, लेकिन कारगिल युद्ध में परिस्थितियां इतनी कठिन थी कि वहां पर यह अनुपात 9 व 1 का था। दुश्मन ऐसी जगह पर बैठा था कि वहां से वह सीधे हमारी सेना के जवानों के सिर का निशाना लगा सकता था।

मैदानी तोपखाना यानी 4 फील्ड रेजीमेंट में तैनात रहे मेजर दीपक गुलाटी ने भारतीय तोप खाने की विशेषता बताते हुए कहा कि कारगिल युद्ध ने यह साबित किया कि भारतीय तोपखाना यानी आर्टिलरी कोई सहयोगी इकाई नहीं बल्कि लड़ाकू इकाई है। पूर्व सैनिकों की पीड़ा व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि सेना की सेवा से वापस आने के बाद एक सैनिक के लिए सिविल सोसाइटी से जुड़ना काफी मुश्किल होता है इसलिए हमेशा उनकी मदद करें। उन्होंने कहा कि देश में जिस तरह बहुत सारे आयोग बने हैं, उसी प्रकार पूर्व सैनिकों के लिए भी आयोग का गठन करना चाहिए।

पाकिस्तानी सेना से तीन तरीकों से निपटे: ग्रुप कैप्टन वोहरा
ग्रुप कैप्टन जीएस वोहरा ने कहा कि कारगिल युद्ध तीन मई 1999 को शुरू हुआ था और 26 जुलाई 1999 तक चला। 11 मई को सेना ने वायुसेना से हेलिकॉप्टर मांगे, लेकिन 25 मई को अनुमति मिली और तब भी एलओसी पार करने की छूट नहीं मिली। हमने पाकिस्तानी सेना का मुकाबला करने के लिए तीन तरीकों का इस्तेमाल किया था। पहला टोही था, जिसका अर्थ है कि पायलट जगुआर विमान से जा के क्षेत्र की रेकी करते थे। दूसरा मिग 21 के साथ हवाई हमला और तीसरा था युद्ध क्षति आकलन। 

‘ऑपरेशन सफेद सागर’ कहा गया
कैप्टन वोहरा ने कहा कि इस मिशन को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ कहा गया। वास्तव में यह थल सेना और वायु सेना का संयुक्त अभियान था लेकिन शुरू में काफी समय केवल अनुमति देने में बर्बाद हुआ और लगभग 20 दिनों के युद्ध के बाद ही वायु सेना ऑपरेशन में शामिल हुई। कारगिल युद्ध से हमें जो सबक सीखने की जरूरत है, वह यह है कि जब ऐसी कोई स्थिति पैदा होती है तो सेना और वायु सेना को संयुक्त रूप से शुरुआत में ही मिशन की योजना बनानी चाहिए।

दुश्मन कहीं का नहीं रहा : कर्नल राणा
वेबिनार के समन्वयक कर्नल हरि राज सिंह राणा ने इस मौके पर कहा कि कारगिल युध्द दुनिया के कठिन युद्धों में एक था, लेकिन भारत की सेना के अदम्य साहस के सामने दुश्मन कहीं का न रहा। 

चीन कर रहा था पाक की मदद
बीटीएसएस के राष्ट्रीय महामंत्री विजय मान ने कहा कि कारगिल युद्ध कहने को भारत व पाक के बीच लड़ा माना गया, लेकिन चीन ने इस लड़ाई में पीछे से मदद पाकिस्तान की कर रहा था। इस अवसर पर गोरक्ष प्रांत के युवा विभाग के अध्यक्ष व कवि पंकज प्रखर के गीत, छंदों व कविताओं ने देशभक्ति का अलख जगाया। कर्नल राजेश तंवर ने भी अपने विचार रखे। वेबिनार का संचालन अखिलेश पाठक ने किया। 

विस्तार

कारगिल विजय दिवस के मौके पर आयोजित एक वेबिनार में इस युद्ध के नायक रहे मेजर दीपक गुलाटी ने कहा है कि ऐसी जंग की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सेना को और अधिक मजबूत करने की जरूरत है। साथ ही सरकार को पूर्व सैनिकों के लिए भी एक आयोग का गठन करना चाहिए। 

मेजर गुलाटी भारत तिब्बत समन्वय संघ के कारगिल विजय दिवस पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध अभी तक लड़े गए बाकी युद्धों से बिल्कुल अलग तरह का युद्ध था। कारगिल का युद्ध 12 हजार से 16 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था। भारतीय सेना के लिए यह इस तरह का यह पहला युद्ध था। अन्य किसी भी साधारण युद्ध में हमलावर बनाम रक्षक का अनुपात 3 व 1 का होता है, लेकिन कारगिल युद्ध में परिस्थितियां इतनी कठिन थी कि वहां पर यह अनुपात 9 व 1 का था। दुश्मन ऐसी जगह पर बैठा था कि वहां से वह सीधे हमारी सेना के जवानों के सिर का निशाना लगा सकता था।

मैदानी तोपखाना यानी 4 फील्ड रेजीमेंट में तैनात रहे मेजर दीपक गुलाटी ने भारतीय तोप खाने की विशेषता बताते हुए कहा कि कारगिल युद्ध ने यह साबित किया कि भारतीय तोपखाना यानी आर्टिलरी कोई सहयोगी इकाई नहीं बल्कि लड़ाकू इकाई है। पूर्व सैनिकों की पीड़ा व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि सेना की सेवा से वापस आने के बाद एक सैनिक के लिए सिविल सोसाइटी से जुड़ना काफी मुश्किल होता है इसलिए हमेशा उनकी मदद करें। उन्होंने कहा कि देश में जिस तरह बहुत सारे आयोग बने हैं, उसी प्रकार पूर्व सैनिकों के लिए भी आयोग का गठन करना चाहिए।

पाकिस्तानी सेना से तीन तरीकों से निपटे: ग्रुप कैप्टन वोहरा

ग्रुप कैप्टन जीएस वोहरा ने कहा कि कारगिल युद्ध तीन मई 1999 को शुरू हुआ था और 26 जुलाई 1999 तक चला। 11 मई को सेना ने वायुसेना से हेलिकॉप्टर मांगे, लेकिन 25 मई को अनुमति मिली और तब भी एलओसी पार करने की छूट नहीं मिली। हमने पाकिस्तानी सेना का मुकाबला करने के लिए तीन तरीकों का इस्तेमाल किया था। पहला टोही था, जिसका अर्थ है कि पायलट जगुआर विमान से जा के क्षेत्र की रेकी करते थे। दूसरा मिग 21 के साथ हवाई हमला और तीसरा था युद्ध क्षति आकलन। 

‘ऑपरेशन सफेद सागर’ कहा गया

कैप्टन वोहरा ने कहा कि इस मिशन को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ कहा गया। वास्तव में यह थल सेना और वायु सेना का संयुक्त अभियान था लेकिन शुरू में काफी समय केवल अनुमति देने में बर्बाद हुआ और लगभग 20 दिनों के युद्ध के बाद ही वायु सेना ऑपरेशन में शामिल हुई। कारगिल युद्ध से हमें जो सबक सीखने की जरूरत है, वह यह है कि जब ऐसी कोई स्थिति पैदा होती है तो सेना और वायु सेना को संयुक्त रूप से शुरुआत में ही मिशन की योजना बनानी चाहिए।

दुश्मन कहीं का नहीं रहा : कर्नल राणा

वेबिनार के समन्वयक कर्नल हरि राज सिंह राणा ने इस मौके पर कहा कि कारगिल युध्द दुनिया के कठिन युद्धों में एक था, लेकिन भारत की सेना के अदम्य साहस के सामने दुश्मन कहीं का न रहा। 

चीन कर रहा था पाक की मदद

बीटीएसएस के राष्ट्रीय महामंत्री विजय मान ने कहा कि कारगिल युद्ध कहने को भारत व पाक के बीच लड़ा माना गया, लेकिन चीन ने इस लड़ाई में पीछे से मदद पाकिस्तान की कर रहा था। इस अवसर पर गोरक्ष प्रांत के युवा विभाग के अध्यक्ष व कवि पंकज प्रखर के गीत, छंदों व कविताओं ने देशभक्ति का अलख जगाया। कर्नल राजेश तंवर ने भी अपने विचार रखे। वेबिनार का संचालन अखिलेश पाठक ने किया। 

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