एसबीआई रिसर्च के अनुसार, कोविड-19 की पहली लहर के दौरान विभिन्न उद्योगों को वित्तीय सहायता के लिए 4.5 लाख करोड़ की गारंटी कर्ज योजना शुरू हुई थी। इसमें बांटे गए कुल कर्ज में से 93.7 फीसदी राशि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को दी गई।
इस कर्ज ने 13.5 लाख एमएसएमई को दिवालिया होने से बचा लिया और 1.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज भी एनपीए होने से बच गया। यह राशि एमएसएमई के कुल बकाया कर्ज का करीब 14 फीसदी है। अगर ये उद्यम बंद हो जाते तो करीब 1.5 करोड़ लोगों के हाथ से नौकरियां भी छिन जातीं। यानी एक नौकरीपेशा अगर चार लोगों का भरण-पोषण करता है, तो गारंटी वाली कर्ज योजना ने 6 करोड़ लोगों का जीवन-यापन बनाए रखा है।
कर्ज लेने वाली 55 फीसदी एमएसएमई का सुधरा कारोबार
एसबीआई रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि गारंटी योजना के तहत कर्ज लेने वाली 55 फीसदी एमएसएमई ने कारोबार में सुधार किया है। सबसे ज्यादा लाभ गुजरात के उद्यमों ने उठाया, जिसके बाद महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश का नंबर आता है। योजना के तहत मिले कर्ज की 100 फीसदी राशि पर सरकार गारंटी देती है और इसके लिए 41,600 करोड़ रुपये का फंड बनाया है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एमएसएमई को गारंटी सहित सस्ता कर्ज उपलब्ध कराने के बावजूद उद्यमियों के बीच यह योजना ज्यादा पसंदीदा नहीं है। इसके उलट कोलैटरेल वाली कर्ज योजनाएं ज्यादा पसंद की जाती हैं। हालांकि, इस योजना के तहत कर्ज लेने वाली 25 फीसदी एमएसएमई ही अपने कारोबार में सुधार कर पाती हैं।
2 करोड़ टर्नओवर तक जरूरी हो योजना…रिपोर्ट में एसबीआई रिसर्च के अर्थशास्त्रियों ने सुझाव दिया है कि 2 करोड़ सालाना टर्नओवर वाले सभी उद्यमों को गारंटी कर्ज योजना में शामिल किया जाना चाहिए। योजना के तहत अभी तक 90 फीसदी सूक्ष्म उद्यमों ने कर्ज लिया है।
लिहाजा इसका दायरा बढ़ाकर सभी को शामिल कर लेना चाहिए। देखा जाए तो दो दशक से चल रही सरकारी कर्ज योजना में शामिल होने वाले उद्यमों की संख्या आश्यर्चजनक रूप से बेहद कम महज 10 फीसदी के आसपास है। इसका प्रमुख कारण कर्ज लेने की सख्त शर्तें और कर्जदार के बेहतर रिकॉर्ड की जरूरत है।
पीएलआई योजना पर भारी पड़ सकता है महंगा आयात शुल्क
भारत की ओर से इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र पर लगाया जा रहा महंगा आयात शुल्क उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना पर भारी पड़ सकता है। इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक एसोसिएशन (आईसीईए) व इकध्वज एडवाइजर्स ने बृहस्पतिवार को एक साझा रिपोर्ट में बताया कि चीन और वियतनाम के मुकाबले भारत में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर ज्यादा आयात शुल्क वसूला जाता है। इससे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने वाली पीएलआई योजना और निर्यात प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंचेगा।
रिपोर्ट में 120 उत्पादों को शामिल किया गया है, जिन पर भारी-भरकम आयात शुल्क लगता है। यह आयात देश के 75 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक बाजार में से मोबाइल क्षेत्र के 80 फीसदी लागत के बराबर है। भारत में 120 उत्पादों में से 32 पर ही आयात शुल्क शून्य है, जबकि चीन में 53 और मैक्सिको में 74 उत्पादों पर कोई आयात शुल्क नहीं वसूला जाता है।
इकध्वज एडवाइजर्स के चेयरमैन हर्षवर्धन सिंह ने बताया कि कई उत्पादों पर 2014 के मुकाबले 2020 में आयात शुल्क और बढ़ गया है। अगर उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले इन उत्पादों पर ज्यादा आयात शुल्क वसूला जाएगा, तो पीएलआई में मिलने वाले प्रोत्साहन का असर कम हो जाएगा।
आईसीईए के चेयरमैन पंकज मोहिंद्रू ने कहा, 2026 तक हमने 300 अरब डॉलर के विनिर्माण का लक्ष्य बनाया है, जो बेहतर तालमेल और सरल नीतियों के जरिए ही पूरा होगा। अगर भारत को दुनिया की फैक्टरी बनना है तो उसे कच्चे उत्पादों पर आयात शुल्क अपने प्रतिस्पर्धियों से कम या बराबर ही रखना होगा।