न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पटना
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Wed, 20 Apr 2022 11:06 PM IST
सार
जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि बोचहां विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में मिली हार से बचने के लिए बिहार में एनडीए में स्थितियां दुरुस्त करने के लिए एक समन्वय समिति की जरूरत है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक प्रमुख राजनीतिक सहयोगी ने राज्य में हाल ही में हुए महत्वपूर्ण उप चुनाव में भाजपा की हार के लिए एनडीए सरकार में समन्वय की कमी के जिम्मेदार ठहराया है। जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि बोचहां विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में मिली हार से बचने के लिए बिहार में एनडीए में स्थितियां दुरुस्त करने के लिए एक समन्वय समिति की जरूरत है। इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी को राजद उम्मीदवार के 36000 से अधिक वोटों से हार मिली थी।
कुशवाहा ने कहा, ‘इस बात से इनकार करने का कोई तुक नहीं है कि एनडीए में तालमेल अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। यह वह कारण हो सकता है जिसके चलते बोचहां में हमें हार का सामना करना पड़ा। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को इसमें दखल देना चाहिए और बिहार में समन्वय समिति की स्थापना पर विचार करना चाहिए, जिसकी मांग जदयू की ओर से लंबे समय से की जा रही है।
उपेंद्र कुशवाहा का यह बयान काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि जदयू इस समय राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की सबसे बड़ी गठबंधन भागीदार है। एनडीए ने पिछले कुछ वर्षों में अपने कई महत्वपूर्ण सहयोगियों को खो दिया है। इनमें महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में अकाली दल और आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी जैसी पार्टियां शामिल हैं।
वीआईपी ने दिया भाजपा को धोखा
बिहार की आरक्षित विधानसभा सीट बोचहां पर उप चुनाव वहां के विधायक मुसाफिर पासवान के निधन की वजह से हुआ था। वह 2002 के विधानसभा चुनाव में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के टिकट पर विधायक बने थे। इस पार्टी की स्थापना बॉलीवुड के सेड डिजाइनर से राजनेता बने मुकेश साहनी ने की थी। साहनी को भाजपा के कहने पर एनडीए में लाया गया था। साहनी अपनी विधानसभा सीट पर चुनाव हार गए थे इसके बाद भी भाजपा ने उन्हें राज्य कैबिनेट में शामिल करने के लिए दबाव बनाया था।
निषाद नेता मुकेश साहनी भाजपा की एक सीट से विधान परिषद के लिए भी चुना गया था। लेकिन, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने भाजपा के विरोध में रुख अपना लिया था। यहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ तेज अभियान भी चलाया था। भाजपा ने इस पर पलटवार किया था और वीआईपी के तीन विधायकों को हटा दिया था। इसके साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लिखित अनुरोध करके मुकेश साहनी को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था।
विस्तार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक प्रमुख राजनीतिक सहयोगी ने राज्य में हाल ही में हुए महत्वपूर्ण उप चुनाव में भाजपा की हार के लिए एनडीए सरकार में समन्वय की कमी के जिम्मेदार ठहराया है। जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि बोचहां विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में मिली हार से बचने के लिए बिहार में एनडीए में स्थितियां दुरुस्त करने के लिए एक समन्वय समिति की जरूरत है। इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी को राजद उम्मीदवार के 36000 से अधिक वोटों से हार मिली थी।
कुशवाहा ने कहा, ‘इस बात से इनकार करने का कोई तुक नहीं है कि एनडीए में तालमेल अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। यह वह कारण हो सकता है जिसके चलते बोचहां में हमें हार का सामना करना पड़ा। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को इसमें दखल देना चाहिए और बिहार में समन्वय समिति की स्थापना पर विचार करना चाहिए, जिसकी मांग जदयू की ओर से लंबे समय से की जा रही है।
उपेंद्र कुशवाहा का यह बयान काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि जदयू इस समय राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की सबसे बड़ी गठबंधन भागीदार है। एनडीए ने पिछले कुछ वर्षों में अपने कई महत्वपूर्ण सहयोगियों को खो दिया है। इनमें महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में अकाली दल और आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी जैसी पार्टियां शामिल हैं।
वीआईपी ने दिया भाजपा को धोखा
बिहार की आरक्षित विधानसभा सीट बोचहां पर उप चुनाव वहां के विधायक मुसाफिर पासवान के निधन की वजह से हुआ था। वह 2002 के विधानसभा चुनाव में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के टिकट पर विधायक बने थे। इस पार्टी की स्थापना बॉलीवुड के सेड डिजाइनर से राजनेता बने मुकेश साहनी ने की थी। साहनी को भाजपा के कहने पर एनडीए में लाया गया था। साहनी अपनी विधानसभा सीट पर चुनाव हार गए थे इसके बाद भी भाजपा ने उन्हें राज्य कैबिनेट में शामिल करने के लिए दबाव बनाया था।
निषाद नेता मुकेश साहनी भाजपा की एक सीट से विधान परिषद के लिए भी चुना गया था। लेकिन, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने भाजपा के विरोध में रुख अपना लिया था। यहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ तेज अभियान भी चलाया था। भाजपा ने इस पर पलटवार किया था और वीआईपी के तीन विधायकों को हटा दिया था। इसके साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लिखित अनुरोध करके मुकेश साहनी को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था।
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