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आशंकित हैं पड़ोसी देश: चीन ने नया भूमि सीमा कानून क्यों बनाया, उसके निशाने पर कौन है?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, हांग कांग
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 01 Nov 2021 05:17 PM IST

सार

कानून में प्रावधान है कि चीनी सेना को सीमा की रक्षा संबंधी ड्यूटी में तैनात किया जा सकता है। दूसरे देशों की तरफ से घुसपैठ, सीमा अतिक्रमण, और भड़काऊ कार्यों से निटपने की जिम्मेदारी भी सेना को दी जा सकती है। इस कानून के जरिए सीमाई इलाकों में चीनी सेना की गतिविधियों को वैध रूप दे दिया गया है। इस कानून ने चीन सरकार को शांति वार्ता के अलावा सैनिक संघर्ष के जरिए भी सीमा विवाद हल करने का अधिकार दे दिया है…

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चीन के नए सीमा कानून को लेकर चीन के कई पड़ोसी देशों में आशंकाएं गहरा रही हैँ। चीन ने हाल में ये कानून बनाया है, जिसका मकसद भूमि सीमा से संबंधित सुरक्षा के मसलों को हल करना बताया गया है। साथ ही इस प्रक्रिया में चीन की सेना की भूमिका तय की गई है। नया कानून अगले एक जनवरी से अमल में आएगा। भारत पहले ही इस कानून को लेकर अपनी चिंता जता चुका है। भारत ने कहा है कि नए कानून से भारत और चीन के बीच जारी सीमा विवाद को हल करने में रुकावट पड़ सकती है।

सीमाई इलाकों में चीनी सेना को मिली छूट

चीन की संसद- नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के प्रवक्ता झांग येसुई ने हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा- ‘इस कानून की इसलिए जरूरत पड़ी, क्योंकि चीन के सीमा नियंत्रण की कोशिशों में तालमेल बिठाने वाला कोई खास कानून मौजूद नहीं था।’ उन्होंने कहा- ‘देश और विदेश में स्थिति बदल रही है। सीमा की रक्षा और नियंत्रण में कुछ नई समस्याएं और चुनौतियां खड़ी हुई हैं। इस व्यावहारिक घटनाक्रम से निपटने में मौजूदा नीतियां और नियम सक्षम नहीं हैं।’

कानून में प्रावधान है कि चीनी सेना को सीमा की रक्षा संबंधी ड्यूटी में तैनात किया जा सकता है। दूसरे देशों की तरफ से घुसपैठ, सीमा अतिक्रमण, और भड़काऊ कार्यों से निटपने की जिम्मेदारी भी सेना को दी जा सकती है। हांगकांग स्थित सैन्य टीकाकार सोंग झोंगपिंग के मुताबिक इस कानून के जरिए सीमाई इलाकों में चीनी सेना की गतिविधियों को वैध रूप दे दिया गया है। सोंग ने कहा कि इस कानून ने चीन सरकार को शांति वार्ता के अलावा सैनिक संघर्ष के जरिए भी सीमा विवाद हल करने का अधिकार दे दिया है।

पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि चीन की संसद ने ये कानून पिछले महीने 23 अक्तूबर को पारित किया। उसके कुछ दिन पहले ही चीन ने भूटान के साथ सीमा विवाद हल करने के लिए बातचीत तेज करने का समझौता किया था। पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन ने भूटान से समझौते को प्राथमिकता भी भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए दी है। लेकिन उनके मुताबिक चीन की चिंताएं भारत के अलावा भी हैं।

क्या तालिबान है वजह?

काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से चीन इस बात को लेकर चिंतित है कि अफगानिस्तान से आतंकवाद चीन की सीमा में प्रवेश कर सकता है। चीन के शिनजियांग प्रांत में उइघुर मुसलमानों के उग्रवाद के लिए चीन पहले अफगानिस्तान से घुसे आतंकवादियों को दोषी ठहराता रहा है। उधर चीन के यूनान प्रांत की सीमा म्यांमार से लगती है। यूनान के शहर रुइली को म्यांमार के लिए प्रवेश द्वार कहा जाता है। म्यांमार में सैनिक शासकों की कार्रवाई के कारण नस्लीय गुटों के साथ उसकी लड़ाई तेज हो रही है। खास कर ऐसी खबरें म्यांमार शान प्रांत से आई हैं। नए कानून का मकसद रुइली सीमा से जुड़ी समस्याओं से पार पाना भी है।

दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चाइनीज स्टडीज के प्रोफेसर कोंडापल्ली श्रीकांत ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा कि नया कानून टकराव क्षेत्रों में चीनी सेना की गतिविधियों को वैधता देने की एक और कोशिश है। लेकिन चीन के चेंगदू इंस्टीट्यूट ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स में दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ लोंग शिंगचुन ने इसी अखबार से कहा कि ये कानून सीमा के आंतरिक प्रबंधन का हिस्सा है।

विस्तार

चीन के नए सीमा कानून को लेकर चीन के कई पड़ोसी देशों में आशंकाएं गहरा रही हैँ। चीन ने हाल में ये कानून बनाया है, जिसका मकसद भूमि सीमा से संबंधित सुरक्षा के मसलों को हल करना बताया गया है। साथ ही इस प्रक्रिया में चीन की सेना की भूमिका तय की गई है। नया कानून अगले एक जनवरी से अमल में आएगा। भारत पहले ही इस कानून को लेकर अपनी चिंता जता चुका है। भारत ने कहा है कि नए कानून से भारत और चीन के बीच जारी सीमा विवाद को हल करने में रुकावट पड़ सकती है।

सीमाई इलाकों में चीनी सेना को मिली छूट

चीन की संसद- नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के प्रवक्ता झांग येसुई ने हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा- ‘इस कानून की इसलिए जरूरत पड़ी, क्योंकि चीन के सीमा नियंत्रण की कोशिशों में तालमेल बिठाने वाला कोई खास कानून मौजूद नहीं था।’ उन्होंने कहा- ‘देश और विदेश में स्थिति बदल रही है। सीमा की रक्षा और नियंत्रण में कुछ नई समस्याएं और चुनौतियां खड़ी हुई हैं। इस व्यावहारिक घटनाक्रम से निपटने में मौजूदा नीतियां और नियम सक्षम नहीं हैं।’

कानून में प्रावधान है कि चीनी सेना को सीमा की रक्षा संबंधी ड्यूटी में तैनात किया जा सकता है। दूसरे देशों की तरफ से घुसपैठ, सीमा अतिक्रमण, और भड़काऊ कार्यों से निटपने की जिम्मेदारी भी सेना को दी जा सकती है। हांगकांग स्थित सैन्य टीकाकार सोंग झोंगपिंग के मुताबिक इस कानून के जरिए सीमाई इलाकों में चीनी सेना की गतिविधियों को वैध रूप दे दिया गया है। सोंग ने कहा कि इस कानून ने चीन सरकार को शांति वार्ता के अलावा सैनिक संघर्ष के जरिए भी सीमा विवाद हल करने का अधिकार दे दिया है।

पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि चीन की संसद ने ये कानून पिछले महीने 23 अक्तूबर को पारित किया। उसके कुछ दिन पहले ही चीन ने भूटान के साथ सीमा विवाद हल करने के लिए बातचीत तेज करने का समझौता किया था। पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन ने भूटान से समझौते को प्राथमिकता भी भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए दी है। लेकिन उनके मुताबिक चीन की चिंताएं भारत के अलावा भी हैं।

क्या तालिबान है वजह?

काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से चीन इस बात को लेकर चिंतित है कि अफगानिस्तान से आतंकवाद चीन की सीमा में प्रवेश कर सकता है। चीन के शिनजियांग प्रांत में उइघुर मुसलमानों के उग्रवाद के लिए चीन पहले अफगानिस्तान से घुसे आतंकवादियों को दोषी ठहराता रहा है। उधर चीन के यूनान प्रांत की सीमा म्यांमार से लगती है। यूनान के शहर रुइली को म्यांमार के लिए प्रवेश द्वार कहा जाता है। म्यांमार में सैनिक शासकों की कार्रवाई के कारण नस्लीय गुटों के साथ उसकी लड़ाई तेज हो रही है। खास कर ऐसी खबरें म्यांमार शान प्रांत से आई हैं। नए कानून का मकसद रुइली सीमा से जुड़ी समस्याओं से पार पाना भी है।

दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चाइनीज स्टडीज के प्रोफेसर कोंडापल्ली श्रीकांत ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा कि नया कानून टकराव क्षेत्रों में चीनी सेना की गतिविधियों को वैधता देने की एक और कोशिश है। लेकिन चीन के चेंगदू इंस्टीट्यूट ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स में दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ लोंग शिंगचुन ने इसी अखबार से कहा कि ये कानून सीमा के आंतरिक प्रबंधन का हिस्सा है।

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