वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, तेहरान
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 10 Aug 2021 05:54 PM IST
सार
रईसी ने बीते पांच अगस्त को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। उसके बाद ये चर्चा गर्म है कि उनके मंत्रिमंडल में ज्यादातर धार्मिक रूझान वाले लोग और कट्टरपंथी नेता शामिल किए जाएंगे। मंत्रिमंडल का एलान इसी हफ्ते होने की संभावना है…
ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी परमाणु वार्ता के लिए एक ऐसे व्यक्ति को अपना दूत नियुक्त करने जा रहे हैं, जिसे सख्त रुख वाला माना जाता है। रईसी भी सख्त रुख वाले नेता हैं। उनके राष्ट्रपति बनने के पहले से ही संयुक्त कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) यानी ईरान परमाणु डील का भविष्य अधर में लटका हुआ था। अब इस बारे में चिंताएं और बढ़ गई हैं। अनुमान है कि अगर हुसैन आमीर-अब्दुल्लाहियान को दूत बनाया गया, तो बात और उलझ सकती है। संभावना है कि आमीर-अब्दुल्लाहियान इस डील को पुनर्जीवित करने के लिए चल रही वार्ता में ईरान का अधिक कड़ा रुख पेश करेंगे।
रईसी ने बीते पांच अगस्त को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। उसके बाद ये चर्चा गर्म है कि उनके मंत्रिमंडल में ज्यादातर धार्मिक रूझान वाले लोग और कट्टरपंथी नेता शामिल किए जाएंगे। मंत्रिमंडल का एलान इसी हफ्ते होने की संभावना है। इसके अलावा राष्ट्रपति मजलिस (ईरानी संसद) में खाली पदों के लिए नियुक्तियां भी करेंगे। विश्लेषकों का कहना है कि उससे भी उनके रुख का संकेत मिलेगा।
आमिर-अब्दुल्लाहियान नए राष्ट्रपति के करीबी माने जाते हैं। ईरानी मीडिया में छपी रिपोर्टें के मुताबिक लंबे समय से राजनयिक रहे आमिर-अब्दुल्लाहियान को अब देश की कूटनीति संबंधी सर्वोच्च जिम्मेदारी दी जाने वाली है। ईरानी मीडिया के मुताबिक अगर राष्ट्रपति ने अमीर-अब्दुल्लाहियान को नामजद कर दिया, तो मजलिस से उनके नाम पर मुहर लगने में कोई दिक्कत नहीं होगी। इसकी वजह यह है कि आमिर-अब्दुल्लाहियान को सर्वोच्च धार्मिक नेता अली खमेनई का करीबी भी समझा जाता है। मजलिस में वैसे भी पश्चिम विरोधी कट्टरपंथियों का बहुमत है।
आमिर-अब्दुल्लाहियान इसके पहले बहरीन में ईरान के राजदूत रह चुके हैं। इसके अलावा 2011 से 2016 तक देश के अरब और अफ्रीकी मामलों के विदेश मंत्री भी थे। इससे साफ है कि वे कट्टरपंथी माने जाने वाले राष्ट्रपति महमूद अहमदीनिजाद और उदारवादी माने जाने वाले राष्ट्रपति हसन रूहानी दोनों के कार्यकाल में महत्वपूर्ण पद पर बने रहे। 2016 में जब तत्कालीन विदेश मंत्री जावाद जरीफ अमेरिका के ओबामा प्रशासन के साथ परमाणु डील की वार्ता में शामिल थे, तभी आमिर-अब्दुल्लाहियान को बर्खास्त कर दिया गया। बताया जाता है कि परमाणु मसले पर मतभेद के कारण आमिर-अब्दुल्लाहियान हटाए गए। इस बर्खास्तगी की तब देश के कट्टरपंथी नेताओं ने कड़ी आलोचना की थी।
ईरान में आमिर-अब्दुल्लाहियान को ‘क्रांतिकारी राजनयिक’ कहा जाता है। वे इराक, लेबनान, सीरिया और यमन में ईरान के हितों को आगे बढ़ाने के समर्थक रहे हैं। साथ ही वे फिलस्तीनी आंदोलन के जोरदार समर्थक हैं। वे सऊदी अरब के विरोधी हैं। ईरानी मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक 2016 में उनकी बर्खास्तगी की एक वजह यह भी थी कि वे सऊदी अरब से संबंध सुधारने की राष्ट्रपति रूहानी की कोशिशों का विरोध कर रहे थे। आमिर-अब्दुल्लाहियान 57 साल के हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय पर उन्होंने तेहरान यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ले रखी है।
विश्लेषकों का कहना है कि उनकी नियुक्ति का मतलब यह समझा जाएगा कि राष्ट्रपति रईसी परमाणु वार्ता में नरमी दिखाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं। उधर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडंन भी इस मामले में घरेलू दबाव के कारण सख्त रुख अपनाए हुए हैं। ऐसे में आमिर-अब्दुल्लाहियान की नियुक्ति को इस डील के पुनर्जीवित होने की संभावना पर एक आघात समझा जाएगा।
विस्तार
ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी परमाणु वार्ता के लिए एक ऐसे व्यक्ति को अपना दूत नियुक्त करने जा रहे हैं, जिसे सख्त रुख वाला माना जाता है। रईसी भी सख्त रुख वाले नेता हैं। उनके राष्ट्रपति बनने के पहले से ही संयुक्त कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) यानी ईरान परमाणु डील का भविष्य अधर में लटका हुआ था। अब इस बारे में चिंताएं और बढ़ गई हैं। अनुमान है कि अगर हुसैन आमीर-अब्दुल्लाहियान को दूत बनाया गया, तो बात और उलझ सकती है। संभावना है कि आमीर-अब्दुल्लाहियान इस डील को पुनर्जीवित करने के लिए चल रही वार्ता में ईरान का अधिक कड़ा रुख पेश करेंगे।
रईसी ने बीते पांच अगस्त को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। उसके बाद ये चर्चा गर्म है कि उनके मंत्रिमंडल में ज्यादातर धार्मिक रूझान वाले लोग और कट्टरपंथी नेता शामिल किए जाएंगे। मंत्रिमंडल का एलान इसी हफ्ते होने की संभावना है। इसके अलावा राष्ट्रपति मजलिस (ईरानी संसद) में खाली पदों के लिए नियुक्तियां भी करेंगे। विश्लेषकों का कहना है कि उससे भी उनके रुख का संकेत मिलेगा।
आमिर-अब्दुल्लाहियान नए राष्ट्रपति के करीबी माने जाते हैं। ईरानी मीडिया में छपी रिपोर्टें के मुताबिक लंबे समय से राजनयिक रहे आमिर-अब्दुल्लाहियान को अब देश की कूटनीति संबंधी सर्वोच्च जिम्मेदारी दी जाने वाली है। ईरानी मीडिया के मुताबिक अगर राष्ट्रपति ने अमीर-अब्दुल्लाहियान को नामजद कर दिया, तो मजलिस से उनके नाम पर मुहर लगने में कोई दिक्कत नहीं होगी। इसकी वजह यह है कि आमिर-अब्दुल्लाहियान को सर्वोच्च धार्मिक नेता अली खमेनई का करीबी भी समझा जाता है। मजलिस में वैसे भी पश्चिम विरोधी कट्टरपंथियों का बहुमत है।
आमिर-अब्दुल्लाहियान इसके पहले बहरीन में ईरान के राजदूत रह चुके हैं। इसके अलावा 2011 से 2016 तक देश के अरब और अफ्रीकी मामलों के विदेश मंत्री भी थे। इससे साफ है कि वे कट्टरपंथी माने जाने वाले राष्ट्रपति महमूद अहमदीनिजाद और उदारवादी माने जाने वाले राष्ट्रपति हसन रूहानी दोनों के कार्यकाल में महत्वपूर्ण पद पर बने रहे। 2016 में जब तत्कालीन विदेश मंत्री जावाद जरीफ अमेरिका के ओबामा प्रशासन के साथ परमाणु डील की वार्ता में शामिल थे, तभी आमिर-अब्दुल्लाहियान को बर्खास्त कर दिया गया। बताया जाता है कि परमाणु मसले पर मतभेद के कारण आमिर-अब्दुल्लाहियान हटाए गए। इस बर्खास्तगी की तब देश के कट्टरपंथी नेताओं ने कड़ी आलोचना की थी।
ईरान में आमिर-अब्दुल्लाहियान को ‘क्रांतिकारी राजनयिक’ कहा जाता है। वे इराक, लेबनान, सीरिया और यमन में ईरान के हितों को आगे बढ़ाने के समर्थक रहे हैं। साथ ही वे फिलस्तीनी आंदोलन के जोरदार समर्थक हैं। वे सऊदी अरब के विरोधी हैं। ईरानी मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक 2016 में उनकी बर्खास्तगी की एक वजह यह भी थी कि वे सऊदी अरब से संबंध सुधारने की राष्ट्रपति रूहानी की कोशिशों का विरोध कर रहे थे। आमिर-अब्दुल्लाहियान 57 साल के हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय पर उन्होंने तेहरान यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ले रखी है।
विश्लेषकों का कहना है कि उनकी नियुक्ति का मतलब यह समझा जाएगा कि राष्ट्रपति रईसी परमाणु वार्ता में नरमी दिखाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं। उधर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडंन भी इस मामले में घरेलू दबाव के कारण सख्त रुख अपनाए हुए हैं। ऐसे में आमिर-अब्दुल्लाहियान की नियुक्ति को इस डील के पुनर्जीवित होने की संभावना पर एक आघात समझा जाएगा।
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