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आपबीती: रूस के हमलों के बीच बीबीसी यूक्रेन की संपादक ने सामान बांधा और कीव से निकल गईं 

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला
Published by: Amit Mandal
Updated Fri, 25 Feb 2022 09:35 PM IST

सार

यूक्रेन पर रूस के हमले ने इस देश के लोगों को खौफजदा कर दिया है। लोग शहर छोड़कर गांवों की तरफ भाग रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं बीबीसी यूक्रेन की संपादक मार्टा शोकालो, जिन्होंने अपनी आपबीती कुछ इस तरह बयां की।  

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यूक्रेन पर रूस के हमले ने पूरे देश में भारी अफरातफरी मचा दी है। लगातार दूसरे दिन रूस ने यूक्रेन पर हमला जारी रखा। हमले में सैकड़ों लोग मारे गए हैं और घायल हुए हैं। इस बीच लोगों की बेबसी की कहानियां भी सामने आ रही है। क्या आम और क्या खास, हर किसी को रूस के हमले ने खौफजदा कर दिया है। खौफ की ऐसी ही आपबीती सुनाई बीबीसी यूक्रेन की संपादक मार्टा शोकालो ने जिन्हें आननफानन में कीव शहर छोड़कर जाना पड़ा। 

मार्टा की आपबीती 
मार्टा लिखती हैं, मैं तीन बजे उठी और समाचार देखा, और महसूस किय कि मुझे अपने अपने बेटे के साथ तुरंत कीव छोड़ना होगा। शहर की ओर उत्तर और दूसरी दिशाओं से टैंक आ रहे थे। साफ था कि रूसी सेना शहर को घेरने की कोशिश कर रही थी और जल्द कामयाब भी हो जाएगी। हवाई हमले की चेतावनियों से पता चला कि 8 बजे तक हमलों का खतरा था। खबर देखने के 30 मिनट बाद मुझे दूर से धमाकों की आवाज सुनाई दी। गुरुवार को कई लोग गाड़ियों में कीव से पश्चिमी शहर लविवि और पोलिश सीमा की ओर जा रहे थे।

10 साल का बेटा डर से कांपता रहा
मैंने अपने पति को फोन कि जो अभी घर से दूर हैं। मैंने पूर्व की ओर यूक्रेन के ग्रामीण इलाकों के अंदरूनी हिस्सों में रह रहे उनके माता-पिता के गांव में जाने की योजना बनाई। हमने अपने 10 साल के बेटे के लिए भी यह फैसला किया, जिसने गुरुवार का दिन डर के मारे कांपते हुए बिताया। मैं पैकिंग करने लगी। उतना ही सामना बांधा जो ऐसी स्थिति में लिया जाता है जब आप नहीं जानते कि आप कब लौटेंगे। मैंने स्वीमिंग कॉस्ट्यूम भी ले लिया, यग ,सोचकर कि शायद हमें गर्मियों में भी इसी देश में रहना पड़े। हम कर्फ्यू हटने के तुरंत बाद 7:30 बजे रवाना हुए और कीव से होते हुए पूर्व की ओर दूसरी तरफ से निकल गए। मैं जिस दिशा में यात्रा कर रहा थी, उधर सड़कें खाली थीं। शहर के बाहर हमने यूक्रेनी टैंकों को पार किया जो विपरीत दिशा में कीव की ओर बढ़ रहे थे।

जिंदा रहकर खुश थी…
मुझे नहीं पता था कि क्या मुझे रूसी सेना मिलेगी। मैं इस बात पर ध्यान केंद्रित कर रही थी कि हमें किसी भी तरह वहां पहुंचना है। मैं बीच-बीच में अपना फोन देखने के लिए रुकती रही और पता पता चला कि कीव के उत्तरी उपनगर ओबोलोन में सड़क पर लड़ाई हो रही है। वहां रहने वाले मेरे सहकर्मी निकलने की कोशिश में थे। इस तरह की भयानक चीजें हो रही थीं। फिर भी यह एक बढ़िया धूप वाली सुबह थी, जो ग्रामीण इलाकों में वसंत का संकेत है। दो घंटे बाद हम गांव पहुंचे। मैंने शहतूत के पेड़ को पार किया, जहां पिछली गर्मियों में हम फल इकट्ठा करके बहुत खुश थे। आज मैं फिर से खुश थी लेकिन पूरी तरह से अलग तरीके से। कीव से बाहर निकलकर खुश थी, जिंदा रहकर खुश थी, अपने बेटे के साथ सुरक्षित जगह पर पहुंचकर खुश थी।

सहयोगियों को भी अपने गांव बुलाया
अपने ससुराल वालों के साथ मैंने 24 घंटों में पहली बार ठीक से खाना खाया। बोर्श का एक बढ़िया कटोरा। मेरे पास यहां इंटरनेट कनेक्शन है और मैं काम कर सकती हूं। अगर बिजली कट जाए, तो हमारे पास जनरेटर है। मेरी मुख्य प्राथमिकता मेरे बीबीसी सहयोगियों की सुरक्षा है, जिनमें से कुछ दोस्तों और परिवार के साथ कीव से बाहर रहने के लिए जगह ढूंढ रहे हैं। मैंने अपने सास-ससुर के गांव के लिए उन्हें बुलावा भेजा, यहां खाली मकान हैं और इनके मालिक इन घरों के इस्तेमाल से खुश होंगे। हम मुख्य सड़क से दूर हैं, और मुझे उम्मीद है कि रूसी टैंक यहां कभी नहीं आएंगे। मैं कीव में अपने घर कब लौटूंगी और जब मैं वहां पहुंचूंगी तो यह किस हालत में होगा, ये जानना असंभव है।
 

विस्तार

यूक्रेन पर रूस के हमले ने पूरे देश में भारी अफरातफरी मचा दी है। लगातार दूसरे दिन रूस ने यूक्रेन पर हमला जारी रखा। हमले में सैकड़ों लोग मारे गए हैं और घायल हुए हैं। इस बीच लोगों की बेबसी की कहानियां भी सामने आ रही है। क्या आम और क्या खास, हर किसी को रूस के हमले ने खौफजदा कर दिया है। खौफ की ऐसी ही आपबीती सुनाई बीबीसी यूक्रेन की संपादक मार्टा शोकालो ने जिन्हें आननफानन में कीव शहर छोड़कर जाना पड़ा। 

मार्टा की आपबीती 

मार्टा लिखती हैं, मैं तीन बजे उठी और समाचार देखा, और महसूस किय कि मुझे अपने अपने बेटे के साथ तुरंत कीव छोड़ना होगा। शहर की ओर उत्तर और दूसरी दिशाओं से टैंक आ रहे थे। साफ था कि रूसी सेना शहर को घेरने की कोशिश कर रही थी और जल्द कामयाब भी हो जाएगी। हवाई हमले की चेतावनियों से पता चला कि 8 बजे तक हमलों का खतरा था। खबर देखने के 30 मिनट बाद मुझे दूर से धमाकों की आवाज सुनाई दी। गुरुवार को कई लोग गाड़ियों में कीव से पश्चिमी शहर लविवि और पोलिश सीमा की ओर जा रहे थे।

10 साल का बेटा डर से कांपता रहा

मैंने अपने पति को फोन कि जो अभी घर से दूर हैं। मैंने पूर्व की ओर यूक्रेन के ग्रामीण इलाकों के अंदरूनी हिस्सों में रह रहे उनके माता-पिता के गांव में जाने की योजना बनाई। हमने अपने 10 साल के बेटे के लिए भी यह फैसला किया, जिसने गुरुवार का दिन डर के मारे कांपते हुए बिताया। मैं पैकिंग करने लगी। उतना ही सामना बांधा जो ऐसी स्थिति में लिया जाता है जब आप नहीं जानते कि आप कब लौटेंगे। मैंने स्वीमिंग कॉस्ट्यूम भी ले लिया, यग ,सोचकर कि शायद हमें गर्मियों में भी इसी देश में रहना पड़े। हम कर्फ्यू हटने के तुरंत बाद 7:30 बजे रवाना हुए और कीव से होते हुए पूर्व की ओर दूसरी तरफ से निकल गए। मैं जिस दिशा में यात्रा कर रहा थी, उधर सड़कें खाली थीं। शहर के बाहर हमने यूक्रेनी टैंकों को पार किया जो विपरीत दिशा में कीव की ओर बढ़ रहे थे।

जिंदा रहकर खुश थी…

मुझे नहीं पता था कि क्या मुझे रूसी सेना मिलेगी। मैं इस बात पर ध्यान केंद्रित कर रही थी कि हमें किसी भी तरह वहां पहुंचना है। मैं बीच-बीच में अपना फोन देखने के लिए रुकती रही और पता पता चला कि कीव के उत्तरी उपनगर ओबोलोन में सड़क पर लड़ाई हो रही है। वहां रहने वाले मेरे सहकर्मी निकलने की कोशिश में थे। इस तरह की भयानक चीजें हो रही थीं। फिर भी यह एक बढ़िया धूप वाली सुबह थी, जो ग्रामीण इलाकों में वसंत का संकेत है। दो घंटे बाद हम गांव पहुंचे। मैंने शहतूत के पेड़ को पार किया, जहां पिछली गर्मियों में हम फल इकट्ठा करके बहुत खुश थे। आज मैं फिर से खुश थी लेकिन पूरी तरह से अलग तरीके से। कीव से बाहर निकलकर खुश थी, जिंदा रहकर खुश थी, अपने बेटे के साथ सुरक्षित जगह पर पहुंचकर खुश थी।

सहयोगियों को भी अपने गांव बुलाया

अपने ससुराल वालों के साथ मैंने 24 घंटों में पहली बार ठीक से खाना खाया। बोर्श का एक बढ़िया कटोरा। मेरे पास यहां इंटरनेट कनेक्शन है और मैं काम कर सकती हूं। अगर बिजली कट जाए, तो हमारे पास जनरेटर है। मेरी मुख्य प्राथमिकता मेरे बीबीसी सहयोगियों की सुरक्षा है, जिनमें से कुछ दोस्तों और परिवार के साथ कीव से बाहर रहने के लिए जगह ढूंढ रहे हैं। मैंने अपने सास-ससुर के गांव के लिए उन्हें बुलावा भेजा, यहां खाली मकान हैं और इनके मालिक इन घरों के इस्तेमाल से खुश होंगे। हम मुख्य सड़क से दूर हैं, और मुझे उम्मीद है कि रूसी टैंक यहां कभी नहीं आएंगे। मैं कीव में अपने घर कब लौटूंगी और जब मैं वहां पहुंचूंगी तो यह किस हालत में होगा, ये जानना असंभव है।

 

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