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आजादी का अमृत महोत्सव : अंग्रेजों को नहीं मिला सावरकर के घर का कोई खरीदार

सार

देश को बनाने में जिन्होंने अपना जीवन दिया, उनकी विरासत और स्मृतियों से पाठकों को रूबरू कराने की कड़ी में पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, गोपीनाथ बारदोलोई और सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म स्थान से रिपोर्ट आपने पढ़ी। इस बार वीर सावरकर की जन्मस्थली…

विनायक दामोदर सावरकर और उनके घर की पुरानी तस्वीर।
– फोटो : Amar Ujala

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अंग्रेजी हुकूमत ने सावरकर के घर को नीलाम करने की तैयारी कर ली थी। कीमत 300 रुपये रखी गई थी। लेकिन गांव के किसी व्यक्ति ने नीलामी में भाग नहीं लिया। इसके बाद गांव का ही एक व्यक्ति इस मकान की देखरेख करता रहा और आजादी के बहुत बाद सरकार ने इसे सावरकर स्मारक बना दिया।

गांव के लोगों का कहना है, जब अंग्रेजों ने सावरकर को गिरफ्तार किया, तब आसपास के क्षेत्रों में उनकी पहचान बढ़ी, लेकिन कांग्रेसी विचारधारा के लोग सावरकर को लेकर कभी सहज नहीं हुए। आजादी से पहले और बाद में भी सावरकर को लेकर खूब भ्रम फैलाया।

स्मारक के लिए लंबे समय तक संघर्ष करने वाले एकनाथरावजी शेटे ने बताया कि तत्कालीन सरकार स्मारक बनाने के लिए राजी नहीं थी। सावरकर के बारे में भ्रम फैलाए गए। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी वीर गाथा को भी धूमिल करने के प्रयास हुए, पर गांव वालों ने हार नहीं मानी। आंदोलन किए। मुंबई कूच हुए। बालासाहेब ठाकरे से मिले। 1993 में महाराष्ट्र सरकार ने स्मारक बनाने का आदेश दिया।

अब राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा मांग रहे गांव वाले
गांव के लोगों की मेहनत रंग लाई और दिसंबर, 1993 में स्मारक बनाने का काम शुरू हुआ। अब इसे राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने की मांग चल रही है। इसके लिए हस्ताक्षर अभियान चल रहा है।

कम उम्र में छिन गया था माता-पिता का साया
विनायक सावरकर 7 साल के थे तो 1890 में प्लेग की महामारी से पिता दामोदर पंत का निधन हो गया। नौ साल के हुए तो मां राधाबाई भी साथ छोड़ गईं। बड़े भाई गणेश (बाबाराव) पर पूरी जिम्मेदारी आ गई। वीर के एक और भाई नारायण दामोदर और बहन नैनाबाई थी। 1901 में नासिक के स्कूल से मैट्रिक की। इसके बाद यमुना बाई से उनका विवाह हुआ। 1905 में पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से बीए किया।

..हम वीर के गांव से आए हैं
गांव के मनोज कुंवर कहते हैं कि हम लोग जब महाराष्ट्र से बाहर जाते हैं तो सावरकर की तस्वीर लेकर जाते हैं या उनकी किताबें। बड़ी शान से कहते हैं कि हम वीर के गांव से आए हैं। गांव के ही भूषण का कहना है कि जब कोई हमारे गांव के वीर के बारे में चर्चा करता है तो विशेष गर्व की अनुभूति होती है।

अंग्रेजों से माफी के सवाल पर गांव के युवा कहते हैं कि साजिश के तहत भ्रम फैलाया गया है। सावरकर ने अधिवक्ता होने के नाते पिटीशन दायर किया था। हर राजनीतिक बंदी को यह पिटीशन दायर करने की छूट थी। इसमें लिखी गई भाषा को लेकर भ्रम फैलाए जाते हैं। उनकी छवि धूमिल करने के लिए कुचक्र रचा गया, जो सफल नहीं हो पाया।

सावरकर का सफर

  • 28 मई 1883-जन्म
  • 1901 में नासिक के शिवाजी हाईस्कूल से मैट्रिक
  • 1905 में पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलवाई
  • 1906 में कानून की पढ़ाई करने लंदन गए
  • 13 मार्च 1910 को लंदन में गिरफ्तार किया गया
  • 24 दिसंबर 1910 को आजीवन कारावास की सजा
  • 31 जनवरी 1911 को फिर आजीवन कारावास
  • 2 मई 1921 को उन्हें रत्नागिरी जेल भेजा गया
  • 1924 में उन्हें कुछ शर्तों के साथ रिहाई मिली
  • 23 जनवरी 1924 को रत्नागिरी हिंदू सभा का गठन
  • 1937 में हिंदू महासभा के अध्यक्ष चुने गए
  • 1948 में गांधी की हत्या के षड्यंत्र के आरोप में गिरफ्तार हुए। 1949 में बरी कर दिया गया
  • 26 फरवरी 1966 को देहावसान  
  • 1970 में उन पर डाक टिकट जारी किया गया

विस्तार

अंग्रेजी हुकूमत ने सावरकर के घर को नीलाम करने की तैयारी कर ली थी। कीमत 300 रुपये रखी गई थी। लेकिन गांव के किसी व्यक्ति ने नीलामी में भाग नहीं लिया। इसके बाद गांव का ही एक व्यक्ति इस मकान की देखरेख करता रहा और आजादी के बहुत बाद सरकार ने इसे सावरकर स्मारक बना दिया।

गांव के लोगों का कहना है, जब अंग्रेजों ने सावरकर को गिरफ्तार किया, तब आसपास के क्षेत्रों में उनकी पहचान बढ़ी, लेकिन कांग्रेसी विचारधारा के लोग सावरकर को लेकर कभी सहज नहीं हुए। आजादी से पहले और बाद में भी सावरकर को लेकर खूब भ्रम फैलाया।

स्मारक के लिए लंबे समय तक संघर्ष करने वाले एकनाथरावजी शेटे ने बताया कि तत्कालीन सरकार स्मारक बनाने के लिए राजी नहीं थी। सावरकर के बारे में भ्रम फैलाए गए। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी वीर गाथा को भी धूमिल करने के प्रयास हुए, पर गांव वालों ने हार नहीं मानी। आंदोलन किए। मुंबई कूच हुए। बालासाहेब ठाकरे से मिले। 1993 में महाराष्ट्र सरकार ने स्मारक बनाने का आदेश दिया।

अब राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा मांग रहे गांव वाले

गांव के लोगों की मेहनत रंग लाई और दिसंबर, 1993 में स्मारक बनाने का काम शुरू हुआ। अब इसे राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने की मांग चल रही है। इसके लिए हस्ताक्षर अभियान चल रहा है।

कम उम्र में छिन गया था माता-पिता का साया

विनायक सावरकर 7 साल के थे तो 1890 में प्लेग की महामारी से पिता दामोदर पंत का निधन हो गया। नौ साल के हुए तो मां राधाबाई भी साथ छोड़ गईं। बड़े भाई गणेश (बाबाराव) पर पूरी जिम्मेदारी आ गई। वीर के एक और भाई नारायण दामोदर और बहन नैनाबाई थी। 1901 में नासिक के स्कूल से मैट्रिक की। इसके बाद यमुना बाई से उनका विवाह हुआ। 1905 में पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से बीए किया।

..हम वीर के गांव से आए हैं

गांव के मनोज कुंवर कहते हैं कि हम लोग जब महाराष्ट्र से बाहर जाते हैं तो सावरकर की तस्वीर लेकर जाते हैं या उनकी किताबें। बड़ी शान से कहते हैं कि हम वीर के गांव से आए हैं। गांव के ही भूषण का कहना है कि जब कोई हमारे गांव के वीर के बारे में चर्चा करता है तो विशेष गर्व की अनुभूति होती है।

अंग्रेजों से माफी के सवाल पर गांव के युवा कहते हैं कि साजिश के तहत भ्रम फैलाया गया है। सावरकर ने अधिवक्ता होने के नाते पिटीशन दायर किया था। हर राजनीतिक बंदी को यह पिटीशन दायर करने की छूट थी। इसमें लिखी गई भाषा को लेकर भ्रम फैलाए जाते हैं। उनकी छवि धूमिल करने के लिए कुचक्र रचा गया, जो सफल नहीं हो पाया।

सावरकर का सफर

  • 28 मई 1883-जन्म
  • 1901 में नासिक के शिवाजी हाईस्कूल से मैट्रिक
  • 1905 में पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलवाई
  • 1906 में कानून की पढ़ाई करने लंदन गए
  • 13 मार्च 1910 को लंदन में गिरफ्तार किया गया
  • 24 दिसंबर 1910 को आजीवन कारावास की सजा
  • 31 जनवरी 1911 को फिर आजीवन कारावास
  • 2 मई 1921 को उन्हें रत्नागिरी जेल भेजा गया
  • 1924 में उन्हें कुछ शर्तों के साथ रिहाई मिली
  • 23 जनवरी 1924 को रत्नागिरी हिंदू सभा का गठन
  • 1937 में हिंदू महासभा के अध्यक्ष चुने गए
  • 1948 में गांधी की हत्या के षड्यंत्र के आरोप में गिरफ्तार हुए। 1949 में बरी कर दिया गया
  • 26 फरवरी 1966 को देहावसान  
  • 1970 में उन पर डाक टिकट जारी किया गया

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