‘क्लाइमेट चेंज 2022 : इम्पैक्ट, एडॉप्शन एंड वल्नरेबिलिटी’ शीर्षक से जारी आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जलवायु संबंधी घटनाओं और परिस्थितियों की एक विस्तृत शृंखला मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालेगी। जिस रास्ते से जलवायु की घटनाएं मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं, वे विविध, जटिल और अन्य गैर-जलवायु प्रभावों से जुड़े हुए हैं जो भेद्यता पैदा करते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु जोखिम के प्रत्यक्ष प्रभाव में लंबे समय तक उच्च तापमान का अनुभव करना शामिल हो सकता है जबकि परोक्ष रूप में कुपोषण या विस्थापन के मानसिक स्वास्थ्य दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि उत्सर्जन खत्म न करने से दुनिया को गंभीर नुकसान होगा। इसमें दक्षिण एशिया में असहनीय गर्मी, भोजन और पानी की कमी व समुद्री स्तर में वृद्धि भी शामिल होगी।
आत्महत्या, मादक द्रव्यों की लत बढ़ेगी
200 देशों द्वारा अनुमोदित रिपोर्ट में गैर-जलवायु मॉडरेटिंग प्रभावों का भी जिक्र किया गया है जो किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व और संरचनात्मक असमानताओं तक को प्रभावित कर सकता है। जलवायु घटनाओं के चलते मानसिक सेहत भी बिगड़ सकती है। जिसमें चिंता, अवसाद या तनाव विकार तथा आत्महत्या और मादक द्रव्यों की बढ़ती प्रवृत्ति भी शामिल हैं।
भारतीय कृषि पर प्रतिकूल असर
संयुक्त राष्ट्र की आईपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार, इसका भारतीय कृषि पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। तमाम कोशिशों के बावजूद इकोसिस्टम में सुधार होता नहीं दिख रहा है। इसमें कहा गया है, अगर तापमान में 1 से 4 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि होती है तो भारत में चावल का उत्पादन 10 से 30 प्रतिशत तक, जबकि मक्के का उत्पादन 25 से 70 प्रतिशत तक घट सकता है।
खाद्य सुरक्षा, जल संकट, आग-बाढ़ बढ़ेंगे
रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान का जिक्र करने के साथ-साथ इसे घटाने के तरीके पर भी चर्चा की गई है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 3.6 अरब की आबादी ऐसे इलाकों में रहती है जहां जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर हो सकता है।
अगले दो दशक में दुनियाभर में तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। तापमान बढ़ने के कारण खाद्य सुरक्षा, जल संकट, जंगल की आग, परिवहन प्रणाली, शहरी ढांचा, बाढ़ जैसी समस्याएं बढ़ने का अनुमान जताया गया है।