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आईक्यूएयर रिपोर्ट: भारत में वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर बड़ा असर, सालाना 150 अरब डॉलर होते हैं खर्च 

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Amit Mandal
Updated Wed, 23 Mar 2022 09:04 PM IST

सार

रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण का भारत में मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। यह बीमारी के लिए दूसरा सबसे बड़ा जोखिम कारक है। 

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एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण भारत में मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला दूसरा सबसे बड़ा कारक है और इसकी वजह से सालाना 150 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च होते हैं। स्विस संगठन आईक्यूएयर द्वारा तैयार और मंगलवार को वैश्विक स्तर पर जारी की गई विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2022 में पाया गया है कि भारत का पीएम 2.5 स्तर 2019 में प्री-कोविड लॉकडाउन के दौर की स्थिति में पहुंच गया है। 

बीमारी के लिए दूसरा सबसे बड़ा जोखिम कारक है वायु प्रदूषण
रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण का भारत में मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। यह बीमारी के लिए दूसरा सबसे बड़ा जोखिम कारक है और वायु प्रदूषण की आर्थिक लागत सालाना 150 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में वाहन उत्सर्जन, बिजली उत्पादन, औद्योगिक अपशिष्ट, खाना पकाने के लिए बायोमास दहन, निर्माण क्षेत्र और फसल जलने जैसी घटनाएं शामिल हैं।

2019 में पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) लागू किया था, जो सभी पहचाने गए गैर-लाभ वाले शहरों में 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) सांद्रता को 20 से 30 प्रतिशत तक कम करने, वायु गुणवत्ता की निगरानी बढ़ाने का प्रयास करता है। 

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम का प्रभाव लगाना मुश्किल
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन, प्रतिबंधों और परिणामी आर्थिक मंदी ने अकेले वायु प्रदूषण के स्तर के आधार पर एनसीएपी के प्रभाव को निर्धारित करना मुश्किल बना दिया है। शहर-आधारित कार्य योजनाओं के अलावा एनसीएपी द्वारा निर्धारित समय सीमा के तहत कोई अन्य योजना तैयार नहीं की गई है। इसके अलावा एनसीएपी से संबंधित गतिविधियों के बारे में बहुत कम जानकारी है, जिससे कार्यक्रम के तहत धीमी प्रगति के साथ जनता के असंतोष को दूर करना मुश्किल हो जाता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह अनुमान लगाया गया है कि कुल शहरी पीएम 2.5 सांद्रता का 20 से 35 प्रतिशत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मोटर वाहनों में आंतरिक इंजन दहन के कारण होता है। भारत में वार्षिक वाहन बिक्री में वृद्धि होने की उम्मीद है और अनुमानित संख्या 2030 में 10.5 मिलियन (105 करोड़) तक पहुंच जाएगी। 

विस्तार

एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण भारत में मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला दूसरा सबसे बड़ा कारक है और इसकी वजह से सालाना 150 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च होते हैं। स्विस संगठन आईक्यूएयर द्वारा तैयार और मंगलवार को वैश्विक स्तर पर जारी की गई विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2022 में पाया गया है कि भारत का पीएम 2.5 स्तर 2019 में प्री-कोविड लॉकडाउन के दौर की स्थिति में पहुंच गया है। 

बीमारी के लिए दूसरा सबसे बड़ा जोखिम कारक है वायु प्रदूषण

रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण का भारत में मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। यह बीमारी के लिए दूसरा सबसे बड़ा जोखिम कारक है और वायु प्रदूषण की आर्थिक लागत सालाना 150 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में वाहन उत्सर्जन, बिजली उत्पादन, औद्योगिक अपशिष्ट, खाना पकाने के लिए बायोमास दहन, निर्माण क्षेत्र और फसल जलने जैसी घटनाएं शामिल हैं।

2019 में पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) लागू किया था, जो सभी पहचाने गए गैर-लाभ वाले शहरों में 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) सांद्रता को 20 से 30 प्रतिशत तक कम करने, वायु गुणवत्ता की निगरानी बढ़ाने का प्रयास करता है। 

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम का प्रभाव लगाना मुश्किल

रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन, प्रतिबंधों और परिणामी आर्थिक मंदी ने अकेले वायु प्रदूषण के स्तर के आधार पर एनसीएपी के प्रभाव को निर्धारित करना मुश्किल बना दिया है। शहर-आधारित कार्य योजनाओं के अलावा एनसीएपी द्वारा निर्धारित समय सीमा के तहत कोई अन्य योजना तैयार नहीं की गई है। इसके अलावा एनसीएपी से संबंधित गतिविधियों के बारे में बहुत कम जानकारी है, जिससे कार्यक्रम के तहत धीमी प्रगति के साथ जनता के असंतोष को दूर करना मुश्किल हो जाता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह अनुमान लगाया गया है कि कुल शहरी पीएम 2.5 सांद्रता का 20 से 35 प्रतिशत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मोटर वाहनों में आंतरिक इंजन दहन के कारण होता है। भारत में वार्षिक वाहन बिक्री में वृद्धि होने की उम्मीद है और अनुमानित संख्या 2030 में 10.5 मिलियन (105 करोड़) तक पहुंच जाएगी। 

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