वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 31 Jan 2022 08:17 PM IST
सार
विपक्षी दलों के असहमति नोट में कहा गया कि सरकार की तरफ से पास कराया गए बिल से ‘पाकिस्तान आधुनिक उपनिवेशवाद का सबसे बुरे किस्म का उदाहरण’ बन जाएगा। इसका असर चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर पर भी पड़ेगा। विपक्षी दलों ने कहा है कि इस बिल से पाकिस्तानी की विदेश नीति और पड़ोसी देशों से उसके रिश्ते प्रभावित होंगे…
इमरान खान
– फोटो : अमर उजाला (फाइल फोटो)
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की शर्तों के मुताबिक पाकिस्तान सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान बिल को बमुश्किल सीनेट से पारित करा लिया है, लेकिन इस मुद्दे पर वह सियासी मोर्चे पर घिर गई है। विपक्षी दलों ने इस मसले पर लोगों को गोलबंद करने का इरादा साफ जता दिया है। इसकी शुरुआत उन्होंने सदन में ही की, जहां उन्होंने सरकारी बिल के खिलाफ अपनी असहमति का दस्तावेज पेश किया। इस दस्तावेज में कहा गया है कि नए पारित हुए बिल का खराब असर पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति और राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ेगा।
सीनेट में सरकारी बिल सिर्फ एक वोट के अंतर से पारित हो सका। उसके पक्ष में 43 वोट पड़े, जबकि 42 सदस्यों ने विरोध में मतदान किया। स्टेट बैंक को पूर्ण स्वायतत्ता देने की शर्त आईएमएफ ने एक अरब डॉलर का कर्ज देने के बदले लगाई थी। पाकिस्तान ने और अधिक कर्ज के लिए आईएमएफ से गुहार की है।
प्रभावित होगी विदेश नीति
विपक्षी दलों के असहमति नोट में कहा गया कि सरकार की तरफ से पास कराया गए बिल से ‘पाकिस्तान आधुनिक उपनिवेशवाद का सबसे बुरे किस्म का उदाहरण’ बन जाएगा। इसका असर चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर पर भी पड़ेगा। विपक्षी दलों ने कहा है कि इस बिल से पाकिस्तानी की विदेश नीति और पड़ोसी देशों से उसके रिश्ते प्रभावित होंगे। साथ ही उन्होंने आशंका जताई है कि इसकी वजह से पाकिस्तान का रक्षा बजट और परमाणु कार्यक्रम भी प्रभावित हो सकता है।
विपक्षी दस्तावेज में कहा गया- ‘अब स्टेट बैंक में भी रक्षा खर्च का एक खाता होगा। उसकी जांच आईएमएफ करेगा। स्टेट बैंक अब एक आईएमएफ से नियंत्रित बैंक बन गया है, जिसकी निगरानी अमेरिका और भारत भी कर सकेंगे।’ पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि विपक्षी दलों ने इस बिल से बेहद संवेदनशील मुद्दे जोड़ दिए हैं। उन्हें आशा है कि इनके जरिए जन भावनाओं को इमरान खान सरकार के खिलाफ करने में उन्हें मदद मिलेगी। पर्यवेक्षकों ने इस ओर भी ध्यान खींचा है कि इस मुद्दे पर लगभग सारा विपक्ष एकजुट है। इन दलों ने सरकार पर पाकिस्तान को वित्तीय उपनिवेश बना देने और देश की राष्ट्रीय सुरक्षा एवं संपत्तियों को खतरे में डाल देने का गंभीर इल्जाम लगाया है।
सरकार नहीं जारी कर सकेगी सॉवरेन गारंटी
तटस्थ विश्लेषकों ने भी राय जताई है कि पारित हुआ विधेयक समस्याग्रसत है। इसके मुताबिक अब स्टेट बैंक संकट के समय में भी धन मुहैया नहीं करा सकेगा, जबकि वैसे मौकों पर मुद्रा की कमी पूरी करने की उम्मीद उससे ही होती थी। इसके अलावा अब सरकार आपात देनदारियों के रूप में सूचीबद्ध जायदाद के बदले सॉवरेन गारंटी जारी नहीं कर सकेगी। इस तरह सरकार के हाथ भी बंध गए हैं।
अनेक विशेषज्ञों ने स्टेट बैंक को सरकार से पूरी तरह स्वायत्त कर देने की आईएमएफ की शर्त की पहले भी आलोचना की थी। इस शर्त के मुताबिक अब स्टेट बैंक के गवर्नर और डिप्टी गवर्नरों को हटाने और सेवा शर्तें तय करने का अधिकार सरकार के पास नहीं रहेगा। उनकी नियुक्ति में भी सरकार के हाथ बंध गए हैं। बैंक की नीति तय करने के लिए उसकी अपनी एक कार्यसमिति गठित की जाएगी। इसमें सरकार कोई दखल नहीं दे सकेगी।
विस्तार
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की शर्तों के मुताबिक पाकिस्तान सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान बिल को बमुश्किल सीनेट से पारित करा लिया है, लेकिन इस मुद्दे पर वह सियासी मोर्चे पर घिर गई है। विपक्षी दलों ने इस मसले पर लोगों को गोलबंद करने का इरादा साफ जता दिया है। इसकी शुरुआत उन्होंने सदन में ही की, जहां उन्होंने सरकारी बिल के खिलाफ अपनी असहमति का दस्तावेज पेश किया। इस दस्तावेज में कहा गया है कि नए पारित हुए बिल का खराब असर पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति और राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ेगा।
सीनेट में सरकारी बिल सिर्फ एक वोट के अंतर से पारित हो सका। उसके पक्ष में 43 वोट पड़े, जबकि 42 सदस्यों ने विरोध में मतदान किया। स्टेट बैंक को पूर्ण स्वायतत्ता देने की शर्त आईएमएफ ने एक अरब डॉलर का कर्ज देने के बदले लगाई थी। पाकिस्तान ने और अधिक कर्ज के लिए आईएमएफ से गुहार की है।
प्रभावित होगी विदेश नीति
विपक्षी दलों के असहमति नोट में कहा गया कि सरकार की तरफ से पास कराया गए बिल से ‘पाकिस्तान आधुनिक उपनिवेशवाद का सबसे बुरे किस्म का उदाहरण’ बन जाएगा। इसका असर चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर पर भी पड़ेगा। विपक्षी दलों ने कहा है कि इस बिल से पाकिस्तानी की विदेश नीति और पड़ोसी देशों से उसके रिश्ते प्रभावित होंगे। साथ ही उन्होंने आशंका जताई है कि इसकी वजह से पाकिस्तान का रक्षा बजट और परमाणु कार्यक्रम भी प्रभावित हो सकता है।
विपक्षी दस्तावेज में कहा गया- ‘अब स्टेट बैंक में भी रक्षा खर्च का एक खाता होगा। उसकी जांच आईएमएफ करेगा। स्टेट बैंक अब एक आईएमएफ से नियंत्रित बैंक बन गया है, जिसकी निगरानी अमेरिका और भारत भी कर सकेंगे।’ पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि विपक्षी दलों ने इस बिल से बेहद संवेदनशील मुद्दे जोड़ दिए हैं। उन्हें आशा है कि इनके जरिए जन भावनाओं को इमरान खान सरकार के खिलाफ करने में उन्हें मदद मिलेगी। पर्यवेक्षकों ने इस ओर भी ध्यान खींचा है कि इस मुद्दे पर लगभग सारा विपक्ष एकजुट है। इन दलों ने सरकार पर पाकिस्तान को वित्तीय उपनिवेश बना देने और देश की राष्ट्रीय सुरक्षा एवं संपत्तियों को खतरे में डाल देने का गंभीर इल्जाम लगाया है।
सरकार नहीं जारी कर सकेगी सॉवरेन गारंटी
तटस्थ विश्लेषकों ने भी राय जताई है कि पारित हुआ विधेयक समस्याग्रसत है। इसके मुताबिक अब स्टेट बैंक संकट के समय में भी धन मुहैया नहीं करा सकेगा, जबकि वैसे मौकों पर मुद्रा की कमी पूरी करने की उम्मीद उससे ही होती थी। इसके अलावा अब सरकार आपात देनदारियों के रूप में सूचीबद्ध जायदाद के बदले सॉवरेन गारंटी जारी नहीं कर सकेगी। इस तरह सरकार के हाथ भी बंध गए हैं।
अनेक विशेषज्ञों ने स्टेट बैंक को सरकार से पूरी तरह स्वायत्त कर देने की आईएमएफ की शर्त की पहले भी आलोचना की थी। इस शर्त के मुताबिक अब स्टेट बैंक के गवर्नर और डिप्टी गवर्नरों को हटाने और सेवा शर्तें तय करने का अधिकार सरकार के पास नहीं रहेगा। उनकी नियुक्ति में भी सरकार के हाथ बंध गए हैं। बैंक की नीति तय करने के लिए उसकी अपनी एक कार्यसमिति गठित की जाएगी। इसमें सरकार कोई दखल नहीं दे सकेगी।
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