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अफगानिस्तान में लौटा विदेशी हस्तक्षेप!: फिर शुरू हो गई है बड़ी ताकतों के बीच खींचतान

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Fri, 21 Jan 2022 06:26 PM IST

सार

रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने इन चर्चाओं को अफवाह बताया कि रूस पंजशीर प्रांत में सक्रिय बागी गुट नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट ऑफ अफगानिस्तान को हथियार दे रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसी अफवाह अमेरिकी सूत्र फैला रहे हैं…

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अफगानिस्तान में विदेशी हस्तक्षेप का दौर लौट आया है। इससे बीते अगस्त में काबुल पर तालिबान कब्जे के बाद बनी ये उम्मीद टूट रही है कि अब अफगानिस्तान का भविष्य वहां के नागरिक ही तय करेंगे। हाल में सबसे ज्यादा चर्चा रूसी दखल की रही है। इसके बीच इसी हफ्ते रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने इन चर्चाओं को अफवाह बताया कि रूस पंजशीर प्रांत में सक्रिय बागी गुट नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट ऑफ अफगानिस्तान को हथियार दे रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसी अफवाह अमेरिकी सूत्र फैला रहे हैं।

हथियार देने का रूस ने किया खंडन

जखारोवा ने कहा- ‘हमें अनुमान है कि ऐसे फेक न्यूज (फर्जी खबरें) आने वाले दिनों में भी फैलाए जाएंगे। इसलिए हम यह स्पष्ट कर देना चाहते है, रूस ने अफगानिस्तान में संघर्षरत पक्षों में से किसी को हथियार नहीं दिया है, न ही आगे वह ऐसा करेगा। ऐसा करना खुद उसके अपने हित में नहीं है।’ जखारोवा ने कहा कि अफगानिस्तान में अगर नस्लीय टकराव बढ़ा तो उसके गृह युद्ध तक पहुंचने का खतरा रहेगा। उससे अफगानिस्तान में स्थिरता कायम करने में कोई मदद नहीं मिलेगी।

पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि रूसी विदेश मंत्रालय ने यह स्पष्टीकरण पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर हुई बातचीत के कुछ समय बाद दिया। खान और पुतिन के बीच बीते सोमवार को बातचीत हुई थी। इस बातचीत के बाद क्रेमलिन (रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय) की तरफ से जारी बयान में इसका जिक्र नहीं था कि दोनों नेताओं के बीच अफगानिस्तान के मसले पर भी बात हुई। लेकिन इस्लामाबाद में जारी बयान में इसका उल्लेख था। उस बयान के मुताबिक इमरान खान ने पुतिन से कहा कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता का बने रहना अति महत्त्वपूर्ण है।

अमेरिका ने बनाए हक्कानी के साथ वित्तीय संपर्क

इसके पहले इसी महीने ईरानी मीडिया में छपी रिपोर्टों में चेतावनी दी गई थी कि अमेरिका का तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के साथ वित्तीय संपर्क बनाने के हालिया फैसले से रूस, चीन, और दूसरी क्षेत्रीय सरकारों के साथ तालिबान के संबंध की दिशा प्रभावित होगी। अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने कुछ समय पहले तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के साथ वित्तीय संपर्क बनाने का निर्णय लिया था। ईरानी रिपोर्टों में कहा गया कि अब अमेरिका तालिबान पर से दबाव हटा कर उसकी सद्भावना पाने की कोशिश में जुटा है। उसका असर तालिबान के रूस, चीन, ईरान और पाकिस्तान से रिश्तों पर पड़ सकता है।

ऐसे और भी संकेत हैं, जिनसे लगता है कि अमेरिका तालिबान और पाकिस्तान के बीच पैदा हुई दूरी का लाभ उठाने की कोशिश में हैं। वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में हाल में आयोजित एक चर्चा में अनुमान लगाया गया कि अफगान-पाक सीमा पर हाल में जो तनाव दिखा, उसका परिणाम तालिबान और पाकिस्तान के संबंध टूटने के रूप में सामने आ सकता है। फिलहाल, पाकिस्तान ने तालिबान के साथ सीमा विवाद दूर कर लिया है। लेकिन ये आम समझ है कि अब इन दोनों के बीच संबंध पहले जैसे मधुर नहीं रह गए हैं। इसके बीच संकेत हैं कि अमेरिका अफगानिस्तान में अपने लिए फिर से जगह बनाने की कोशिश कर रहा है।

विस्तार

अफगानिस्तान में विदेशी हस्तक्षेप का दौर लौट आया है। इससे बीते अगस्त में काबुल पर तालिबान कब्जे के बाद बनी ये उम्मीद टूट रही है कि अब अफगानिस्तान का भविष्य वहां के नागरिक ही तय करेंगे। हाल में सबसे ज्यादा चर्चा रूसी दखल की रही है। इसके बीच इसी हफ्ते रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने इन चर्चाओं को अफवाह बताया कि रूस पंजशीर प्रांत में सक्रिय बागी गुट नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट ऑफ अफगानिस्तान को हथियार दे रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसी अफवाह अमेरिकी सूत्र फैला रहे हैं।

हथियार देने का रूस ने किया खंडन

जखारोवा ने कहा- ‘हमें अनुमान है कि ऐसे फेक न्यूज (फर्जी खबरें) आने वाले दिनों में भी फैलाए जाएंगे। इसलिए हम यह स्पष्ट कर देना चाहते है, रूस ने अफगानिस्तान में संघर्षरत पक्षों में से किसी को हथियार नहीं दिया है, न ही आगे वह ऐसा करेगा। ऐसा करना खुद उसके अपने हित में नहीं है।’ जखारोवा ने कहा कि अफगानिस्तान में अगर नस्लीय टकराव बढ़ा तो उसके गृह युद्ध तक पहुंचने का खतरा रहेगा। उससे अफगानिस्तान में स्थिरता कायम करने में कोई मदद नहीं मिलेगी।

पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि रूसी विदेश मंत्रालय ने यह स्पष्टीकरण पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर हुई बातचीत के कुछ समय बाद दिया। खान और पुतिन के बीच बीते सोमवार को बातचीत हुई थी। इस बातचीत के बाद क्रेमलिन (रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय) की तरफ से जारी बयान में इसका जिक्र नहीं था कि दोनों नेताओं के बीच अफगानिस्तान के मसले पर भी बात हुई। लेकिन इस्लामाबाद में जारी बयान में इसका उल्लेख था। उस बयान के मुताबिक इमरान खान ने पुतिन से कहा कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता का बने रहना अति महत्त्वपूर्ण है।

अमेरिका ने बनाए हक्कानी के साथ वित्तीय संपर्क

इसके पहले इसी महीने ईरानी मीडिया में छपी रिपोर्टों में चेतावनी दी गई थी कि अमेरिका का तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के साथ वित्तीय संपर्क बनाने के हालिया फैसले से रूस, चीन, और दूसरी क्षेत्रीय सरकारों के साथ तालिबान के संबंध की दिशा प्रभावित होगी। अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने कुछ समय पहले तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के साथ वित्तीय संपर्क बनाने का निर्णय लिया था। ईरानी रिपोर्टों में कहा गया कि अब अमेरिका तालिबान पर से दबाव हटा कर उसकी सद्भावना पाने की कोशिश में जुटा है। उसका असर तालिबान के रूस, चीन, ईरान और पाकिस्तान से रिश्तों पर पड़ सकता है।

ऐसे और भी संकेत हैं, जिनसे लगता है कि अमेरिका तालिबान और पाकिस्तान के बीच पैदा हुई दूरी का लाभ उठाने की कोशिश में हैं। वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में हाल में आयोजित एक चर्चा में अनुमान लगाया गया कि अफगान-पाक सीमा पर हाल में जो तनाव दिखा, उसका परिणाम तालिबान और पाकिस्तान के संबंध टूटने के रूप में सामने आ सकता है। फिलहाल, पाकिस्तान ने तालिबान के साथ सीमा विवाद दूर कर लिया है। लेकिन ये आम समझ है कि अब इन दोनों के बीच संबंध पहले जैसे मधुर नहीं रह गए हैं। इसके बीच संकेत हैं कि अमेरिका अफगानिस्तान में अपने लिए फिर से जगह बनाने की कोशिश कर रहा है।

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