सार
कई अफगान लड़कियों और युवतियों ने तालिबान सरकार से उन्हें अपनी खेल गतिविधियों को जारी रखने की अनुमति देने के लिए कहा है। महिला खिलाड़ियों को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है।कई महिलाएं खिलाड़ी तालिबान सरकार के डर से या तो देश में छिप गईं है या उन्होंने देश छोड़ दिया है।
अफगानिस्तान महिला क्रिकेट टीम 20 नवंबर 2020 को काबुल में अभ्यास मैच के दौरान
– फोटो : Twitter :@ESPNcricinfo
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद महिलाओं की जिंदगी में सन्नाटा पसर हुआ है। महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव के कारण महिलाओं को अपनी जिंदगी में नाउम्मीदी दिखाई दे रही है। ऐसे में उन अफगान लड़कियों को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी हैं जो खेल में अपना करियर बनाना चाहती थीं। लड़कियों ने इस्लामिक अमीरात से अपनी खेल गतिविधियों को जारी रखने की गुजारिश की है। लड़कियों का कहना है कि उन्हें अपनी उपलब्धियों को खो देने का डर है। उन्हें अब तक जो हासिल किया है वे उन्हें गंवा सकती है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 17 साल की कादरिया ने कहा कि उसने दो साल तक मार्शल आर्ट का अभ्यास किया है और देश के अंदर आयोजित प्रतियोगिताओं में तीन स्वर्ण पदक हासिल किए हैं। उन्होंने कहा मै मौजूदा सरकार से हमें अपनी गतिविधियों को सार्वजनिक रूप से करने की अनुमति देने के लिए कह रही हूं। हम नहीं चाहते कि हमारी दो साल की मेहनत बर्बाद हो।”
एक अन्य एथलीट करीमा ने मीडिया से कहा कि सत्ता बदलाव के बाद वह अपने घर के अंदर ही फंसी हुई हैं और उसे डर है कि उसकी कड़ी मेहनत और उपलब्धियां बेकरा हो जाएंगी। मीडिया रिपोर्स के मुताबिक करीमा ने कहा “हम आज खेलों का अभ्यास नहीं कर सकते, क्योंकि हमें डर है कि कहीं तालिबान हम पर हमला न कर दे। यहां तक कि हमारे प्रशिक्षक भी हमें प्रशिक्षित नहीं करना चाहते।”
इस बीच, कुछ अन्य महिला एथलीटों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी इस मुद्दे पर ध्यान देने की अपील की है। एक अन्य एथलीट पेरिसा अमीरी ने कहा “हम चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठन हमारे अधिकारों के बारे में चुप न रहे।”
वहीं, इस्लामिक अमीरात ने कहा कि महिला एथलीटों को इस्लामी नियमों और ढांचे के तहत अपनी गतिविधियों को करने की अनुमति है। इस्लामिक अमीरात के उप प्रवक्ता बिलाल करीमी के बयान के मुताबिक “किसी के अधिकारों का हनन नहीं किया जाएगा। हम सभी को शरिया और इस्लामी नियमों के अनुसार अधिकार और दर्जा देते हैं, और हम इस्लामी ढांचे के आधार पर लड़कियों को अधिकार देंगे। ”
इससे पहले तालिबान ने साफ कहा था कि महिलाएं क्रिकेट सहित अन्य खेलों में हिस्सा नहीं ले सकतीं क्योंकि खेल गतिविधियां उनके शरीर को एक्सपोज कर देंगी। तालिबान के सांस्कृतिक आयोग के प्रमुख अहमदुल्ला वासीक ने मीडिया से कहा था ‘महिलाओं के लिए खेल गतिविधियां जरूरी नहीं हैं’।
तालिबान ने पुरूष क्रिकेट को अपनी गतिविधियां जारी रखने की मंजूरी दे दी है। पर महिलाओं को क्रिकेट खेलने की इजाजत नहीं मिली है क्योंकि तालिबान का मानना है कि ऐसी स्थिति आ सकती है जब खिलाड़ियों का चेहरा और शरीर ढका नहीं रह सकता है।
दो दशकों में हासिल की बड़ी उपलब्धियां
अफगान महिलाओं और लड़कियों ने पिछले दो दशकों में खेल में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। हालांकि, राजनीतिक परिवर्तन के कारण उन्हें अब सब कुछ अनिश्चित लग रहा है। नवंबर 2020 में, पच्चीस महिला क्रिकेटरों के साथ अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने केंद्रीय अनुबंध किया। अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने काबुल में 40 महिला क्रिकेटरों के लिए 21 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित किया था।
महिला फुटबॉल की क्या है स्थिति
अफगानिस्तान की महिला राष्ट्रीय फुटबॉल टीम को अगस्त 2021 से पहले अफगानिस्तान फुटबॉल महासंघ नियंत्रित कर रहा था। 15 अगस्त को तालिबान के कब्जे के बाद 75 अफगान महिला फुटबॉल खिलाड़ियों ने अपने रिश्तेदारों के साथ अगस्त महीने में काबुल छोड़ दिया। वहीं कतर सरकार ने भी हाल ही में राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के सदस्यों सहित कम से कम 100 महिला फुटबॉलरों को अफगानिस्तान से बाहर निकाला है। अफगान महिला फुटबॉल टीम 2007 में बनाई गई थी। तालिबान के सत्ता में आने के बाद किसी भी तरह की कार्रवाई से बचने में मदद के लिए इन खिलाड़ियों को सोशल मीडिया पोस्ट और टीम के साथ उनकी तस्वीरों को हटाने की सलाह दी गई थी।
महिला वॉलीबॉल
अफगानिस्तान की महिला वॉलीबॉल टीम अंतरराष्ट्रीय महिला वॉलीबॉल प्रतियोगिताओं और मैत्रीपूर्ण मैचों में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व कर चुकी है। 2011 में, सोलह महिला वॉलीबॉल खिलाड़ी, तीन कोच और तीन अन्य प्रतिनिधियों ने ताजिकिस्तान में एक अभ्यास सत्र में भाग लिया। यह पहली बार हुआ था जब अफगान राष्ट्रीय महिला वॉलीबॉल टीम व्यवहारिक सत्र के लिए विदेश गई थी। उस समय, अफगान ओलंपिक समिति ने कहा था कि वह देश के बाहर अफगान राष्ट्रीय महिला टीमों के लिए और अधिक प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने का प्रयास करेगी।
अफगान महिला मुक्केबाजी टीम
महिला मुक्केबाजी टीम की स्थापना 2007 में हुई थी। शुरुआत में केवल चार लड़कियां आगे आईं, लेकिन धीरे-धीरे लड़कियों की संख्या बढ़ने लगी। महिला मुक्केबाज टीम में शामिल सदफ लंदन ओलंपिक के लिए चुनी गई थीं लेकिन अफगान ओलंपिक समिति ने खेलों से एक महीने पहले उन्हें हटा दिया और उनकी जगह एक पुरुष मुक्केबाज को रखा गया। महिला राष्ट्रीय टीम का गठन सरकार की अनुमति से किया गया था और शुरुआत में उसे अफगान ओलंपिक समिति और फेडरेशन का समर्थन प्राप्त था। अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सदफ ने अपने परिवार के साथ अफगानिस्तान छोड़ दिया है और माना जा रहा है कि इसके साथ ही अब तालिबान के शासन में महिला मुक्केबाजी की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है।
विस्तार
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद महिलाओं की जिंदगी में सन्नाटा पसर हुआ है। महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव के कारण महिलाओं को अपनी जिंदगी में नाउम्मीदी दिखाई दे रही है। ऐसे में उन अफगान लड़कियों को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी हैं जो खेल में अपना करियर बनाना चाहती थीं। लड़कियों ने इस्लामिक अमीरात से अपनी खेल गतिविधियों को जारी रखने की गुजारिश की है। लड़कियों का कहना है कि उन्हें अपनी उपलब्धियों को खो देने का डर है। उन्हें अब तक जो हासिल किया है वे उन्हें गंवा सकती है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 17 साल की कादरिया ने कहा कि उसने दो साल तक मार्शल आर्ट का अभ्यास किया है और देश के अंदर आयोजित प्रतियोगिताओं में तीन स्वर्ण पदक हासिल किए हैं। उन्होंने कहा मै मौजूदा सरकार से हमें अपनी गतिविधियों को सार्वजनिक रूप से करने की अनुमति देने के लिए कह रही हूं। हम नहीं चाहते कि हमारी दो साल की मेहनत बर्बाद हो।”
एक अन्य एथलीट करीमा ने मीडिया से कहा कि सत्ता बदलाव के बाद वह अपने घर के अंदर ही फंसी हुई हैं और उसे डर है कि उसकी कड़ी मेहनत और उपलब्धियां बेकरा हो जाएंगी। मीडिया रिपोर्स के मुताबिक करीमा ने कहा “हम आज खेलों का अभ्यास नहीं कर सकते, क्योंकि हमें डर है कि कहीं तालिबान हम पर हमला न कर दे। यहां तक कि हमारे प्रशिक्षक भी हमें प्रशिक्षित नहीं करना चाहते।”
इस बीच, कुछ अन्य महिला एथलीटों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी इस मुद्दे पर ध्यान देने की अपील की है। एक अन्य एथलीट पेरिसा अमीरी ने कहा “हम चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठन हमारे अधिकारों के बारे में चुप न रहे।”
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