सार
विश्लेषकों ने कहा है कि एक बार काबुल की सत्ता पर काबिज होने के बाद तालिबान को चीन की आज जितनी जरूरत नहीं रह जाएगी। उनके मुताबिक तालिबान नेतृत्व ने जरूर हाल में कहा है कि वह चीन को दोस्त देश मानता है, लेकिन तालिबान के अंदर सबकी ऐसी सोच है, इसके कोई ठोस संकेत नहीं हैं…
चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ तालिबान के नेता
– फोटो : Agency (File Photo)
इस बात के साफ संकेत हाल में मिले हैं कि तालिबान और चीन करीब आ रहे हैं। जिस समय तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लेने की संभावना बढ़ती जा रही है, इस घटनाक्रम को चीन की सफलता के रूप में देखा गया है। लेकिन तालिबान ने चीन से जो वादे किए हैं, उन पर वह कायम रहेगा, इस पर अफगान पर्यवेक्षकों को शक है।
तालिबान ने चीन से मुख्य वादा यह किया है कि वह आतंकवादी गुट, ईस्ट तुर्केमेनिस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) को अफगानिस्तान की धरती से अपनी गतिविधियां नहीं चलाने देगा। यही गुट चीन के शिनजियांग प्रांत में पहले हुए आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। पिछले दिनों जब तालिबान के नेता मुल्ला बरादर के नेतृत्व में तालिबानी प्रतिनिधिमंडल चीन गया था, तब चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने उससे बातचीत में साफ कहा था कि तालिबान को आतंकवादी गुटों से संबंध तोड़ लेना चाहिए।
ईटीआईएम को संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादियों की अपनी सूची में रखा हुआ है। इस गुट का घोषित मकसद शिनजियांग प्रांत को चीन से अलग कर पूर्वी तुर्केस्तान नाम के देश की स्थापना करना है। इस गुट को चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना के लिए एक खतरा माना जाता है। बताया जाता है कि ईटीआईएम का अफगानिस्तान में बड़ा आधार है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस गुट के तकरीबन 500 आतंकवादी चीन की सीमा के आसपास सक्रिय रहे हैं। लेकिन 2018 के बाद इस गुट ने चीन में कोई हमला नहीं किया है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि ईटीआईएम ने अपनी गतिविधियों पर जो लगाम लगाई है, उसके पीछे तालिबान की कितनी भूमिका है, यह साफ नहीं है। फिलहाल, तालिबान की प्राथमिकता चीन के साथ संबंध बनाने की है। अमेरिकी फौज की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर अपना दबदबा कायम करने के लिहाज से इसे वह जरूरी समझता है। लेकिन जानकारों के मुताबिक इसके लिए वह ईटीआईएम के आधार को तोड़ने को कोशिश करेगा, इसकी संभावना नहीं है।
वेबसाइट एशिया टाइम्स में छपे एक विश्लेषण के मुताबिक हाल में अफगानिस्तान में तालिबान को जो कामयाबियां मिली हैं, उनके पीछे ईटीआईएम जैसे गुटों के सहयोग की भी भूमिका रही है। इस विश्लेषण के मुताबिक तालिबान ऐसे गुटों का इस्तेमाल करने में माहिर है। लेकिन वह चीन के लिए ईटीआईएम से दुश्मनी मोल लेगा, यह उसके लिए फायदे का सौदा नहीं होगा।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी ने हाल में कहा था कि आज का तालिबान 1990 के दशक के तालिबान से अलग है। अब यह ऐसे आतंकवादी गुटों का एक मेल है, जो कई देशों में सक्रिय हैं। विश्लेषकों का कहना है कि ईटीआईएम भी इन गुटों में एक है। उनके मुताबिक अगर तालिबान ने उसके खिलाफ कार्रवाई की, तो उससे वह उन गुटों का भी भरोसा खो देगा, जो उसकी ताकत का आधार हैं। ऐसे में तालिबान खुद अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारेगा, इसकी संभावना नहीं है।
विश्लेषकों ने कहा है कि एक बार काबुल की सत्ता पर काबिज होने के बाद तालिबान को चीन की आज जितनी जरूरत नहीं रह जाएगी। उनके मुताबिक तालिबान नेतृत्व ने जरूर हाल में कहा है कि वह चीन को दोस्त देश मानता है, लेकिन तालिबान के अंदर सबकी ऐसी सोच है, इसके कोई ठोस संकेत नहीं हैँ।
विस्तार
इस बात के साफ संकेत हाल में मिले हैं कि तालिबान और चीन करीब आ रहे हैं। जिस समय तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लेने की संभावना बढ़ती जा रही है, इस घटनाक्रम को चीन की सफलता के रूप में देखा गया है। लेकिन तालिबान ने चीन से जो वादे किए हैं, उन पर वह कायम रहेगा, इस पर अफगान पर्यवेक्षकों को शक है।
तालिबान ने चीन से मुख्य वादा यह किया है कि वह आतंकवादी गुट, ईस्ट तुर्केमेनिस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) को अफगानिस्तान की धरती से अपनी गतिविधियां नहीं चलाने देगा। यही गुट चीन के शिनजियांग प्रांत में पहले हुए आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। पिछले दिनों जब तालिबान के नेता मुल्ला बरादर के नेतृत्व में तालिबानी प्रतिनिधिमंडल चीन गया था, तब चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने उससे बातचीत में साफ कहा था कि तालिबान को आतंकवादी गुटों से संबंध तोड़ लेना चाहिए।
ईटीआईएम को संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादियों की अपनी सूची में रखा हुआ है। इस गुट का घोषित मकसद शिनजियांग प्रांत को चीन से अलग कर पूर्वी तुर्केस्तान नाम के देश की स्थापना करना है। इस गुट को चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना के लिए एक खतरा माना जाता है। बताया जाता है कि ईटीआईएम का अफगानिस्तान में बड़ा आधार है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस गुट के तकरीबन 500 आतंकवादी चीन की सीमा के आसपास सक्रिय रहे हैं। लेकिन 2018 के बाद इस गुट ने चीन में कोई हमला नहीं किया है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि ईटीआईएम ने अपनी गतिविधियों पर जो लगाम लगाई है, उसके पीछे तालिबान की कितनी भूमिका है, यह साफ नहीं है। फिलहाल, तालिबान की प्राथमिकता चीन के साथ संबंध बनाने की है। अमेरिकी फौज की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर अपना दबदबा कायम करने के लिहाज से इसे वह जरूरी समझता है। लेकिन जानकारों के मुताबिक इसके लिए वह ईटीआईएम के आधार को तोड़ने को कोशिश करेगा, इसकी संभावना नहीं है।
वेबसाइट एशिया टाइम्स में छपे एक विश्लेषण के मुताबिक हाल में अफगानिस्तान में तालिबान को जो कामयाबियां मिली हैं, उनके पीछे ईटीआईएम जैसे गुटों के सहयोग की भी भूमिका रही है। इस विश्लेषण के मुताबिक तालिबान ऐसे गुटों का इस्तेमाल करने में माहिर है। लेकिन वह चीन के लिए ईटीआईएम से दुश्मनी मोल लेगा, यह उसके लिए फायदे का सौदा नहीं होगा।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी ने हाल में कहा था कि आज का तालिबान 1990 के दशक के तालिबान से अलग है। अब यह ऐसे आतंकवादी गुटों का एक मेल है, जो कई देशों में सक्रिय हैं। विश्लेषकों का कहना है कि ईटीआईएम भी इन गुटों में एक है। उनके मुताबिक अगर तालिबान ने उसके खिलाफ कार्रवाई की, तो उससे वह उन गुटों का भी भरोसा खो देगा, जो उसकी ताकत का आधार हैं। ऐसे में तालिबान खुद अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारेगा, इसकी संभावना नहीं है।
विश्लेषकों ने कहा है कि एक बार काबुल की सत्ता पर काबिज होने के बाद तालिबान को चीन की आज जितनी जरूरत नहीं रह जाएगी। उनके मुताबिक तालिबान नेतृत्व ने जरूर हाल में कहा है कि वह चीन को दोस्त देश मानता है, लेकिन तालिबान के अंदर सबकी ऐसी सोच है, इसके कोई ठोस संकेत नहीं हैँ।
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